दिल से तेरी निगाह - राहत फतेह आली खान
जब जोफ़ बड़ा तो खुशबयानी आई
तब बहर-ए-तबियत में रवानी आई
जितनी बढती गई पीरी ग़ालिब
उतनी मेरे शेरो पे जवानी आई
दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गई
ज़ख़्म ने दाद न दी तंगी-ए-दिल की या रब
तीर भी सीना-ए-बिस्मिल से पर-अफ़्शाँ निकला
दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गई
कोई मेरे दिल से पूछे तेरे तीर-ए-नीम-कश को
ये ख़लिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता
दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गई
हम थे मरने को खड़े पास न आया न सही
आख़िर उस शोख़ के तरकश में कोई तीर भी था
दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गई
वो निगाहें क्यूँ हुई जाती हैं या-रब दिल के पार
जो मेरी कोताही-ए-क़िस्मत से मिज़्गाँ हो गईं
दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गई
दोनों को इक अदा में रजामंद कर गई
वो बादा-ए-शबाना की सरमस्तियाँ कहाँ
उठिए बस अब कि लज्जत-ए-ख्वाब-ए-सहर गई
उड़ती फिरे है खाक मेरी कू-ए-यार में
खाक मेरी कू-ए-यार में
खाक मेरी कू-ए-यार में
खाक मेरी कू-ए-यार में
सब कहाँ कुछ लाला-ओ-गुल में नुमायाँ हो गईं
ख़ाक में क्या सूरतें होंगी कि पिन्हाँ हो गईं
खाक मेरी कू-ए-यार में
खाक मेरी कू-ए-यार में
उड़ती फिरे है ख़ाक मिरी कू-ए-यार में
बारे अब ऐ हवा हवस-ए-बाल-ओ-पर गई
देखो तो दिल-फ़रेबी-ए-अंदाज़-ए-नक़्श-ए-पा
नक़्श-ए-पा , अंदाज-ए-नक़्श-ए-पा
नक़्श-ए-पा , अंदाज-ए-नक़्श-ए-पा
जहाँ तेरा नक्श-ए-कदम देखते हैं
ख़ियाबां-ख़ियाबां इरम देखते है
नक़्श-ए-पा , अंदाज-ए-नक़्श-ए-पा
नक़्श-ए-पा , अंदाज-ए-नक़्श-ए-पा
देखो तो दिल-फ़रेबी-ए-अंदाज़-ए-नक़्श-ए-पा
मौज-ए-ख़िराम-ए-यार भी क्या गुल कतर गई
नज़्ज़ारे ने भी काम किया वाँ नक़ाब का
मस्ती से हर निगह तेरे रुख़ पर बिखर गई
मारा ज़माने ने असदुल्लाह ख़ाँ तुम्हें
वो वलवले कहाँ वो जवानी किधर गई
वो वलवले कहाँ वो जवानी किधर गई
वो वलवले कहाँ वो जवानी किधर गई
कोई दिन गर जिंदगानी और है
अपने जी में हम ने ठानी और है
हो चुकीं 'गालिब' बलाएँ सब तमाम
एक मर्ग-ए-ना-गहानी और है
वो वलवले कहाँ वो जवानी किधर गई
वो वलवले कहाँ वो जवानी किधर गई
दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गई