दर्द से मेरे है तुझको बेकरारी - राहत फतेह आली ख़ान

 दर्द से मेरे है तुझको बेकरारी - राहत फतेह आली ख़ान 


दर्द हो दिल में तो दवा कीजे

दिल ही जब दर्द हो तो क्या कीजे

हमको फरियाद करनी आती है

आप सुनते नहीं तो क्या कीजे

रंज उठाने से भी ख़ुशी होगी

पहले दिल दर्द आशना कीजे

मौत आती नहीं कहीं ग़ालिब

कब तक अफ़सोस जीस्त का कीजे


दर्द से मेरे है तुझ को बे-क़रारी हाए हाए 

क्या हुई ज़ालिम तेरी ग़फ़लत-शिआरी हाए हाए 


शेर-

अपनी हस्ती ही से हो जो कुछ हो 

आगही गर नहीं ग़फ़लत ही सही  


दर्द से मेरे है तुझ को बे-क़रारी हाए हाए 

क्या हुई ज़ालिम तेरी ग़फ़लत-शिआरी हाए हाए  


तेरे दिल में गर न था आशोब-ए-ग़म का हौसला 

तू ने फिर क्यूँ की थी मेरी ग़म-गुसारी हाए हाए 


क्यूँ मेरी ग़म-ख़्वार्गी का तुझ को आया था ख़याल 

दुश्मनी अपनी थी मेरी दोस्त-दारी हाए हाए 


उम्र भर का तू ने पैमान-ए-वफ़ा बाँधा तो क्या 

उम्र को भी तो नहीं है पाएदारी हाए हाए 


ज़हर लगती है मुझे आब-ओ-हवा-ए-ज़िंदगी 

यानी तुझ से थी इसे ना-साज़गारी हाए हाए 


शेर - 

ज़िंदगी अपनी जब इस शक्ल से गुज़री 'गालिब' 

हम भी क्या याद करेंगे कि ख़ुदा रखते थे 


गुल-फ़िशानी-हा-ए-नाज़-ए-जल्वा को क्या हो गया 

ख़ाक पर होती है तेरी लाला-कारी हाए हाए


शर्म-ए-रुस्वाई से जा छुपना नक़ाब-ए-ख़ाक में 

ख़त्म है उल्फ़त की तुझ पर पर्दा-दारी हाए हाए 


ख़ाक में नामूस-ए-पैमान-ए-मोहब्बत मिल गई 

उठ गई दुनिया से राह-ओ-रस्म-ए-यारी हाए हाए 


इश्क़ ने पकड़ा न था 'गालिब' अभी वहशत का रंग 


शेर-

इश्क़ मुझ को नहीं वहशत ही सही 

मेरी वहशत तेरी शोहरत ही सही 


इश्क़ ने पकड़ा न था 'गालिब' अभी वहशत का रंग 

रह गया था दिल में जो कुछ ज़ौक़-ए-ख़्वारी हाए हाए 



दर्द से मेरे है तुझको बेकरारी हाय हाय


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