मत-वर्षा के इस दादुर-शोर में - धूमिल
मत-वर्षा के इस दादुर-शोर में
मैंने देखा हर तरफ
रंग-बिरंगे झण्डे फहरा रहे हैं
गिरगिट की तरह रंग बदलते हुये
गुट से गुट टकरा रहे हैं
वे एक- दूसरे से दाँता-किलकिल कर रहे हैं
एक दूसरे को दुर-दुर,बिल-बिल कर रहे हैं
हर तरफ तरह-तरह के जन्तु हैं
श्रीमान् किन्तु हैं
मिस्टर परन्तु हैं
कुछ रोगी हैं
कुछ भोगी हैं
कुछ हिंजड़े हैं
कुछ रोगी हैं
तिजोरियों के प्रशिक्षित दलाल हैं
आँखों के अन्धे हैं
घर के कंगाल हैं
गूँगे हैं
बहरे हैं
उथले हैं,गहरे हैं।
गिरते हुये लोग हैं
अकड़ते हुये लोग हैं
भागते हुये लोग हैं
पकड़ते हुये लोग हैं
गरज़ यह कि हर तरह के लोग हैं
एक दूसरे से नफ़रत करते हुये वे
इस बात पर सहमत हैं कि इस देश में
असंख्य रोग हैं
और उनका एकमात्र इलाज-
चुनाव है।
-धूमिल
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