मयक़दा बन गईं मस्त आँखें

 मयक़दा बन गईं मस्त आँखें 

ज़ुल्फ़ काली घटा हो गई है 

क्या हो मय का नशा ज़िन्दगी में 

ज़िन्दगी खुद नशा हो गई है 


हर तबस्सुम ख़फ़ा हो गया है 

हर मुसर्रत जुदा हो गई है 

ऐ ग़म-ए -इश्क़ तेरी बदौलत 

ज़िन्दगी क्या से क्या हो गई है 


मैं  असीर-ए-ग़म-ए-हिज्र ठेहरा 

और इससे भी ज़्यादा कहूं क्या 

मुझको ज़ुर्म-ए-महौब्बत में यारों 

उम्र भर की सजा हो गई है 


पहले तो देखना मुस्कुराना 

फिर नज़र फेरना रूठ जाना 

हो गया खून कितनों का नाहक़ 

आप की तो अदा हो गई है 

 

दे इज्जाजत तेरे नक्श-ए-पा को 

चूम कर खुद पशेमान हूँ मैं 

होश में इतनी जुर्रत ना होती 

बेखुदी में खता हो गयी है 


कौन है दोस्त है कौन दुश्मन  

अक्स पेश-ए-नज़र है सभी का 

जब से हसरत चढ़ा दिल का  पारा  

ज़िन्दगी आइना हो गयी है 


बात तेरी भी रखनी है साकी 

ज़र्फ़ को भी न रुस्वा करेंगे 

जाम दे या ना दे आज हम को 

मयकदे में सवेरा करेंगे 


इस तरफ अपना दामन जलेगा 

उस तरफ उनकी महफ़िल चलेगी 

हम अंधेरे को घर में बुलाकर 

उनके घर में उजाला करेंगे 


हमको झूठी तस्सल्ली न दीजिये 

ग़म में अब और इज्जाफा न कीजिये 

जिस से आँखों में आजायें आँसूं 

वो ख़ुशी लेके हम क्या करेंगे 





मेरा पिया घर आया ओ लाल नी

 आवो नी सय्यो रल दियो नी वधाई

मन वर पाया सोणा माही

घडिया देवो निकालनी 

मेरा पिया घर आया


मेरा पिया घर आया ओ लाल नी


ऐ पिया घर आया सानु अल्लाह मिलाया

हूं होया फजल कमालनी


मेरा पिया घर आया ओ लाल नी



घडी घडी घड़ियाल बजावे

रेन वस्ल दी पिया घटावे

मेरे मन दी बात ना पावे

हाथो जा सुत्तो घड़ियाल नी


अनहद बाजा बजे शहाना

मुतरब सुगरा तान तराना

भूल गया ऐ नमाज़ दोगाना

मद प्याले देन कलाल नी


मेरा पिया घर आया ओ लाल नी


बुल्ले शाह दी सेज प्यारी

नी में तारन हारन तारी

अल्लाह मिलाया हूं आरी वार

हूं विछडन होया मुहाल नी


मेरा पिया घर आया ओ लाल नी

मेरा पिया घर आया ओ लाल नी

मेरा पिया घर आया ओ लाल नी

गरदिशों के है मारे हुए ना

 गरदिशों के है मारे हुए ना

दुश्मनों के सताए हुए है

जितने भी जख्म है मेरे दिल पर

दोस्तों के लगाए हुए है


इश्क को रोग मार देते है 

अक्ल को सोग मार देते है

आदमी खुद-ब-खुद नहीं मरता

दुसरे लोग मर देते है


जितने भी जख्म है मेरे दिल पर

दोस्तों के लगाए हुए है


लोग काँटों से बचके चलते है

हमने फूलों से जख्म खाए है

तुम तो गैरों की बात करते हो

हमने अपने भी आजमाए है


जितने भी जख्म है मेरे दिल पर

दोस्तों के लगाए हुए है


कासा-ए-दीद लेके दुनिया में

मैंने दीदार की गदाई की

मेरे जितने भी यार थे सबने

हस्बे तौफिक बेवफाई की


जितने भी जख्म है मेरे दिल पर

दोस्तों के लगाए हुए है


जबसे देखा तेरा कद्दो कामत

दिल पे टूटी हुई है क़यामत

हर बला से रहे तू सलामत

दिन जवानी के आए हुए है


और दे मुझको दे और साकी

होश रहता है थोडा सा बाकी

आज तल्खी भी है इन्तिहा की

आज वो भी पराए हुए है


कल थे आबाद पहलू मे मेरे 

अब है गैरों की महफ़िल में डेरे

मेरी महफ़िल में करके अँधेरे

अपनी महफ़िल सजाए हुए है


अपने हाथो से खंजर चला कर

कितना मासूम चेहरा बना कर

अपने कांधों पे अब मेरे कातिल

मेरी मैय्यत उठाए हुए है


महवासों को वफ़ा से क्या मतलब

इन बुतों को खुदा से क्या मतलब

इनकी मासूम नज़रों ने नासिर 

लोग पागल बनाए हुए है


गरदिशों के है मारे हुए ना

दुश्मनों के सताए हुए है

तुम अगर यूँ ही नज़रे मिलते रहे

 तुम अगर यूँ ही नज़रे मिलाते रहे

मयकशी मेरे घर से कहाँ जाएँगी

और ये सिलसिला मुस्तकिल हो तो फिर

बेखुदी मेरे घर से कहाँ जाएगी


इक ज़माने के बाद आई है शाम-ए-गम

शाम-ए-गम मेंरे घर से कहाँ जाएँगी

मेरी किस्मत में है जो तम्हारी कमी

वो कमी मेरे घर से कहाँ जाएगी


शम्मा की अब मुझे कुछ जरूरत नहीं

नाम को भी शब-ए-गम में ज़ुल्मत नहीं

मेरा हर दाग-ए-दिल कम नहीं चाँद से

चांदनी मेरे घर से कहाँ जाएगी


तूने जो गम दिए वो ख़ुशी से लिए

तुझको देखा नहीं फिर भी सजदे किए

इतना मजबूत जब अकीदा मेरा

बंदगी मेरे घर से कहाँ जाएगी


जर्फ़ वाला कोई सामने आए तो

में भी देखू ज़रा किसको अपनाए वो

मेरी हमराज ये इसका हमराज में

बेकसी मेरे घर से कहाँ जाएगी


जो कोई भी तेरी राह में मर गया

अपनी हस्ती को वो जाविदा कर गया

में शहीद-ए-वफ़ा हो गया हूं तो क्या

ज़िन्दगी मेरे घर से कहाँ जाएगी


तुम अगर यूँ ही नज़रे मिलते रहे

मयकशी मेरे घर से कहा जाएँगी

अंगड़ाई पर अंगड़ाई लेती है रात जुदाई की

 अंगड़ाई पर अंगड़ाई लेती है रात जुदाई की

तुम क्या समझो तुम क्या जानो बात मेरी तन्हाई की


कौन सियाही घोल रहा है  वक़्त के बहते दरिया में

मैंने आँख झुकी देखी है आज किसी हरजाई की


वस्ल की रात न जाने क्यूँ इसरार था उनको जाने पर

वक़्त से पहले डूब गए तारों ने बड़ी दानाई की


उड़ते.उड़ते आस का पंछी दूर उफ़क़ में डूब गया

रोते-रोते बैठ गई आवाज़ किसी सौदाई की

दिल पे ज़ख्म खाते है

 दिल पे ज़ख्म खाते है 

जान से गुजरते है 

जुर्म सिर्फ इतना है 

उनको प्यार करते है


एतबार बढ़ता है और भी मोहब्बत का

जब वो अनजबी बन कर पास से गुजरते है


उनकी अंजुमन भी है तार भी रसन भी है

देखना है दीवाने अब कहाँ ठहरते है


उनके एक तगाफुल  से टूटते है दिल कितने

उनकी एक तवज्जो से कितने जख्म भरते है


जो पले है जुम्लत में क्या सहर को पहचाने

तीरगी के सैदाई रौशनी से डरते है


लाख वो गुरेज़ां हो लाख दुश्मन-ए-जान हो

दिल तो क्या करे साहिब हम उन्ही पे मरते है


दिल पे ज़ख्म खाते है 

जान से गुजरते है