सुन चरख़े दी मिठ्ठी मिठ्ठी

सुन चरख़े दी मिठ्ठी मिठ्ठी कूक

माहिया मैनू याद आवंदा

मेरे दिल विचहो उठती ऐ हूँक

माहिया मैनू याद आवंदा


मेरी ईद वाला चन कदों चढ़ेगा

अल्लाह जाने माही कदों वेडे वड़ेगा

दुख ढाडे ने ते ए ज़िन्दहि मलूक


माही आवेगा ते ए खुशियाँ मनवांगी ए

उदेहे राहाँ विच अखियाँ विछावंगी ए

जाँन छडीये है विछोरोएँ ने फूंक ए


ताने मारदे ने अपने शरिक वे

लिख चिट्ठी विच औन दी तरिक वे

काली रात वाली डंगे मैनु शूक


कता पूरियाँ ते हंजु मेरे वघदे

हुन हासे वि नही मैनू चंगे लगदे

किवेएँ भुल जवां उदे मैं सलूक


सुन चरख़े दी मिठ्ठी मिठ्ठी कूक

माहिया मैनू याद आवंदा

आफरीं-आफरीं

हुस्न-ए-जाना की तारीफ़ मुमकिन नहीं

आफरीं-आफरीं

तू भी देखे अगर, तो कहे हमनशीं

आफरीं-आफरीं

हुस्न-ए-जाना... 


ऐसा देखा नहीं खूबसूरत कोई

जिस्म जैसे अजंता की मूरत कोई

जिस्म जैसे निगाहों पे जादू कोई

जिस्म नगमा कोई, जिस्म खुशबू कोई

जिस्म जैसे मचलती हुई रागिनी

जिस्म जैसे महकती हुई चांदनी

जिस्म जैसे के खिलता हुआ इक चमन

जिस्म जैसे के सूरज की पहली किरण

जिस्म तरशा हुआ दिलकश-ओ-दिलनशीं

संदली-संदली, मरमरी-मरमरी

हुस्न-ए-जाना की तारीफ़ मुमकिन नहीं


चेहरा इक फूल की तरह शादाब है

चेहरा उसका है या कोई महताब है

चेहरा जैसे ग़ज़ल, चेहरा जाने ग़ज़ल

चेहरा जैसे कली, चेहरा जैसे कँवल

चेहरा जैसे तसव्वुर भी, तस्वीर भी

चेहरा इक ख्वाब भी, चेहरा ताबीर भी

चेहरा कोई अलिफ़ लैल की दास्ताँ

चेहरा इक पल यकीं, चेहरा इक पल गुमां

चेहरा जैसा के चेहरा कहीं भी नहीं

माहरू-माहरू, महजबीं-महजबीं

हुस्न-ए-जाना की तारीफ़ मुमकिन नहीं


आँखें देखी तो मैं देखता रह गया

जाम दो और दोनों ही दो आतशां

आँखें या मयकदे की ये दो बाब हैं

आँखें इनको कहूँ, या कहूँ ख्वाब हैं

आँखें नीचे हुईं तो हया बन गयीं

आँखें ऊँची हुईं तो दुआ बन गयीं

आँखें उठकर झुकीं तो अदा बन गयीं

आँखें झुककर उठीं तो कदा बन गयीं

आँखें जिनमें है क़ैद आसमां और ज़मीं

नरगिसी-नरगिसी, सुरमई-सुरमई

हुस्न-ए-जाना की तारीफ़ मुमकिन नहीं


ज़ुल्फ़-ए-जाना की भी लम्बी है दास्ताँ

ज़ुल्फ़ की मेरे दिल पर है परछाईयाँ

ज़ुल्फ़ जैसे के उमड़ी हुई हो घटा

ज़ुल्फ़ जैसे के हो कोई काली बला

ज़ुल्फ़ उलझे तो दुनिया परेशान हो

ज़ुल्फ़ सुलझे तो ये दीद आसान हो

ज़ुल्फ़ बिखरे सियाह रात छाने लगी

ज़ुल्फ़ लहराए तो रात जाने लगी

ज़ुल्फ़ ज़ंजीर है, फिर भी कितनी हसीं

रेशमी-रेशमी, अम्बरी-अम्बरी

हुस्न-ए-जाना की तारीफ़ मुमकिन नहीं

आफरीं-आफरीं

छाप तिलक सब छीनी रे

 

 छाप तिलक सब छीनी रे

आ पिया इन नैनन में  पलक ढाँप तोहे लूँ 

न में देखूँ गैर को, न तोहे देखन दूँ 

काजर डारूँ किरकिरा जो सुरमा दिया न जाए 

जिन नैनन में पी बसें तो दूजा कौन समाये 


खुसरो रैन सुहाग की जो मैं जागी पी के संग

तन मोरा मन पिया का जो दोनो एक ही रंग


खुसरो दरिया प्रेम का जो उल्टी वा की धार

जो उभरा सो डूब गया जो डूबा सो पार


अपनी छब बनाइके जो मैं पी के पास गयी

छब देखी जब पिया की मोहे अपनी भूल गयी


छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलाई के

बात अघम कह दीनी रे मोसे नैना मिलाई के


बल बल जाऊँ मैं तोरे रंग रजवा

ऐसी रंग रंग दे, रंग नाही छूटे, धोबिया धोए चाहे सारी उमरिया


बल बल जाऊँ मैं तोरे रंग रजवा

अपनी सी रंग दीनी रे मोसे नैना मिलाई के


प्रेम भटी का मधवा पिलाई के 

मतवारी कर दीनी रे मोसे नैना मिलाई के


गोरी गोरी बइयाँ हरी हरी चूड़ियां

बहियाँ पकड़ हर लीनी रे मोसे नैना मिलाई के


खुसरो निज़ाम के बल बल जाइयाँ

मोहे सुहागन कीनी रे मोसे नैना मिलाई के


बहुत कठिन है डगर पनघट की

कैसे भर लाऊँ मैं जमुना से मटकी


ख़्वाजा निज़ामुद्दीन ख़्वाजा निज़ामुद्दीन

लाज राखो मोरे घूंघट पट की


खुसरो निज़ाम के बल बल जाइयाँ

मोहे सुहागन कीनी रे मोसे नैना मिलाई के

तेरे दरवाजे पे चिलमन नहीं देखी जाती

ये कजरवी ना मेरी जान इख़्तियार करो

जो तुमसे प्यार करे तुम भी उससे प्यार करो

कहा जो मैं ने के दिल बेक़रार है मेरा

तो हँस के कहने लगे और बेक़रार करो


दिखाओं जाम ना भर कर मैं  वादा खार नहीं

मेरी नज़र को नज़र से गुनाहगार करो

महक उठेगी जवानी गुलाब की सूरत

हसीन बाँहों को मेरे गले का हार करो


मुझको तस्लीम मैं शराबी हूं

फिर भी फितरत अजीब पाई है

मैं नज़र से शराब पिता हु

मेरी रिंदी भी पारसाई है


फ़िक्र - ए - सूद- ओ- जिया तो छुटेगी

मिन्नत-ए-इन-ओ-आं तो छूटेगी

खैर दोजख में मय मिले ना मिले

शैख़ साहिब से जां तो छूटेगी


शिकन ना डाल जबी पर शराब देते हुए

ये मुस्कुराती हुई चीज मुस्कुरा के पिला

सुरूर चीज़ की मिकदार पे नहीं मौकूफ

शराब कम है तो साकी नज़र मिला के पिला


कुछ मुरक्के है जिंदगानी के

चन्द उन्वान है कहानी के

चांदनी, ज़ुल्फ़, रक्स, शेर, शराब

मुख्तलिफ नाम है जवानी के


शराब-ए-शौक को मस्ती में ला के पीता हूं

मैं माँ सिवा की नज़र से छूपा के पीता हूं

रुकू से जो बचे सजदे में जाके पीता हूँ 

वो रिंद हूं जो खुदा को दिखा के पिता हूं


तेरे दरवाजे पे चिलमन नहीं देखी जाती

जानेजा हमसे ये उलझन नहीं देखी जाती


रुख पे ये ज़ुल्फ़ की उलझन नहीं देखी जाती

फुल की गोद में नागन नहीं देखी जाती


बेहिजाबा ना मिलो हमसे ये पर्दा कैसा

बंद डोली में सुहागन नहीं देखी जाती


जाम में हो तो नज़र आए गुलाबी जोड़ा

हमसे बोतल में ये दुल्हन नहीं देखी जाती


घर बनाए किसी सेहरा में मुहब्बत के लिए

शहर वालो से ये जोगन नहीं देखी जाती


हम नज़र बाज है दिखला हमे देवी का जमाल

मूर्ती हमसे बरामन नहीं देखी जाती


ऐ फ़ना कह दे हवा से के उडा लेजाए

हमसे ये खाक-ए-नशेमन नहीं देखी जाती

साँसों की माला पे

साँसों की माला पे  


आ पिया इन नैनन में

जो पल्क डाप तोहे दू

ना मैं देखूँ गैर को

ना  मैं तोहे देखन दू


काजर डारु किरकरा

सुरमा दिया ना जाए

जिन नैनन में पिया बसे

भला दूजा कोन समाए


नील गगन से भी परे

सैयां जी का गाँव

दर्शन जल की कामना

पत रखियों है राम 


अब किस्मत के हाथ है 

इस बंदन की लाज

मेने तो मन लिख दिया 

सावरिया के नाम


जाने कोन से भेष में 

सावरिया मिल जाए

झुक झुक कर संसार में

सबको करू सलाम


वो चातर है कामनी 

वो है सुन्दर नार

जिस पगली ने कर लिया

साजन का मन राम


जबसे राधा श्याम के 

नैन हुए है चार

श्याम बने है राधिका

राधा बन गई श्याम


साँसों की माला पे सिमरु मैं पी का नाम

साँसों की माला पे सिमरु मैं पी का नाम


अपने मन की मैं  जानू और पी के मन की राम

साँसों की माला पे सिमरु मैं पी का नाम


यही मेरी बंदगी है,

यही मेरी पूजा


साँसों की माला पे सिमरु मैं पी का नाम


एक का साजिद मंदिर में 

और एक का प्रीतम मस्जिद में

पर मैं ,


साँसों की माला पे सिमरु मैं पी का नाम


हम और नहीं कछु काम के

मतवारे पी के नाम के है


साँसों की माला पे सिमरु मैं पी का नाम


सजनी पाती तब लिखू

जो प्रीतम हो परदेश

तन में, मन में पिया बसे

अब भेजू किसे संदेस


साँसों की माला पे सिमरु मैं पी का नाम


हर हर में है हर बसे

इसमें, उसमे, तुझमे, मुझमे

हर हर में है हर बसे

हर हर को हर की आस

हर को हर हर ढूढ़ फिरी

हर हर है मोरे पास


साँसों की माला पे सिमरु मैं पी का नाम


प्रेम के रंग में ऐसी डूबी बन गया एक ही रूप 

प्रेम की माला जपते जपते

आप बनी मैं श्याम

साँसों की माला पे सिमरु में पी का नाम


प्रीतम का कुछ दोष नहीं है

वो तो है निर्दोष

अपने आप से बाते करके

हो गई मैं बदनाम

साँसों की माला पे सिमरु मैं पी का नाम


प्रेम पियाला जबसे पीया है

जी का है ये हाल

अंगारों पे नींद आये

काँटों पे आराम

साँसों की माला पे सिमरु मैं पी का नाम


जीवन का श्रुंगार है प्रीतम

मांग का है सिंदूर

प्रीतम की नजरो से गिरकर 

है जीना किस काम

साँसों की माला पे सिमरु मैं पी का नाम