क्या था जो घड़ी भर को तुम लौट के आ जाते
बीमार-ए-मोहौबत को सूरत तो दिखा जाते
आ जाते, तुम लौट के आ जाते .....
शेर-
क़ासिद पायाम-ए-खत को देना बहुत मौखूफ
बस मुख़्तसर ये कहना के आँखें तरस गईं
आ जाते, तुम लौट के आ जाते .....
शेर-
यूँ ज़िन्दगी गुज़ार रहा हूँ तेरे बगैर
जैसे कोई गुनाह किये जा रहा हूँ
आ जाते, तुम लौट के आ जाते .....
शेर-
नाज़ुक तेरे मरीज़-ए-महौबत का हाल है
दिन कट गया है रात का कटना मुहाल है
आ जाते, तुम लौट के आ जाते .....
शेर-
आ जा के आस टूटने वाली है प्यार की
बुझने लगी है शमा तेरे इंतज़ार की
इतने तो करम करते दुःख दर्द मुझे देकर
शेर-
तसुववर में चले आते तुम्हारा क्या बिगड़ जाता
तेरा पर्दा बना रहता मुझे दीदार हो जाता
इतने तो करम करते दुःख दर्द मुझे देकर
शेर-
जाती हुई मैय्यत देख के भी वल्लाह तुम उठ के आ न सके
दो चार कदम तो दुश्मन भी तकलीफ गवारा करते हैं
इतने तो करम करते दुःख दर्द मुझे देकर
इक बार मेरे आंसूँ दामन से सूखा जाते
क्या था जो घड़ी भर को तुम लौट के आ जाते
आ जाते, तुम लौट के आ जाते .....
फिर दर्द-ए-जुदाई को महसूस न मैं करता
अच्छा था अगर मुझको दीवाना बना जाते
क्या था जो घड़ी भर को तुम लौट के आ जाते
मुझ पर गम-ए -फुरक़त की तौहमत न कभी लगती
आंखों में अगर अपनी तस्वीर बना जाते
क्या था जो घड़ी भर को तुम लौट के आ जाते
फिर उनसे फना मुझको रहता न गिला कोई
तरमाना मेरा करते दीदार करा जाते
क्या था जो घड़ी भर को तुम लौट के आ जाते
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