शेर-
नज़र से नज़र अब मिलाई गई है
मैं पीता नहीं था पिलाई गई है
मैं नज़र से पी रहा हूँ
ये समा बदल ना जाए
शेर-
वो कोन है जो तेरे मयकदे से बच निकला
तेरी नज़र का तो आलम शिकार है साकी
में नज़र से पी रहा हूँ
ये समा बदल ना जाए
ना झुकाओ तुम निगाहे
कही रात ढल ना जाए
मेरे अश्क भी है इसमें
ये शराब उबल ना जाए
मेरा जाम छूने वाले
तेरा हाथ जल ना जाए
मेरी ज़िन्दगी के मालिक
मेरे दिल पे हाथ रख दे
तेरे आने की ख़ुशी में
मेरा दम निकल ना जाए
अभी रात कुछ है बाकि
ना उठा नकाब साकी
तेरा रिंद गिरते गिरते
कही फिर सम्भल ना जाए
मुझे फूकने से पहले
मेरा दिल निकाल लेना
ये किसी की है अमानत
मेरे साथ जल ना जाए
में नज़र से पी रहा हूँ
ये समा बदल ना जाए
ना झुकाओ तुम निगाहे
कही रात ढल ना जाए
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