अच्छी सूरत को सवरने की जरूरत क्या है
सादगी में भी क़यामत की अदा होती है
तुम जो आ जाते हो मस्जिद में अदा करने नमाज़
तुम को मालूम है कितनों की कज़ा होती है
शेर-
तुलू-ए-सुबह तेरे रुख की बात होने लगी
तुम्हारी ज़ुल्फ़ जो भिखरी तो रात होने लगी
तुम्हारी मस्त नज़र का खुमार क्या कहना
नशे में ग़र्क़ सभी कायनात होने लगी
शेर-
मय परस्ती मेरी इबादत है
मैं कभी बे-वुजू नहीं पीता
मैं शराबी सही मगर जाहिद
आदमी का लहू नहीं पीता
शेर-
सर जिस पे न झुक जाए उसे दर नहीं कहते
हर दर पे जो झुक जाए उसे सर नहीं कहते
क्या तुझको जहाँ वाले सितमगर नहीं कहते
कहते तो हैं लेकिन तेरे मुँह पर नहीं कहते
काबे में हर इक सजदे को कह देते है इबादत
मयखाने में हर जाम को सागर नहीं कहते
काबे में मुसलमान को भी कह देते है काफिर
मयखाने में काफ़िर को भी काफिर नहीं कहते
शेर-
उम्र जलवों में बसर हो ये ज़रूरी तो नहीं
हर शब-ए-ग़म की सहर हो ये ज़रूरी तो नहीं
नींद तो दर्द के बिस्तर पे भी आ सकती है
उनके आगोश में सर हो ये ज़रूरी तो नहीं
आग को खेल पतंगों ने समझ रखा है
सबको अंजाम का डर हो ये ज़रूरी तो नहीं
शेख करता है जो मस्जिद में खुदा को सजदे
उसके सजदों में असर हो ये ज़रूरी तो नहीं
सबकी साकी पे नजर हो ये ज़रूरी है मगर
सबपे साकी की नज़र हो ये ज़रूरी तो नहीं
शेर-
कोई दिल में लिए अरमान चला जाता है
कोई खोए हुए औसान चला जाता है
हुस्न वालो से ये कहदो के ना निकले बाहिर
देखने वालो का इमान चला जाता है
मस्त नजरो से अल्लाह अल्लाह बचाए
महजमालो से अल्लाह बचाए
हर बाला सर पे आजाए लेकिन
हुस्न वालो से अल्लाह बचाए
इनकी मासूमियत पर ना जाना
इनके धोखे में हरगिज ना आना
लुट लेते है ये मुस्कुरा कर
इनकी चालो से अल्लाह बचाए
ये लुट लेते है
ये लुट लेते है
ये लुट लेते है
शेर-
मोहल्ला है हसीनो का, के कज्जाको की बस्ती है
ये लुट लेते है
ये लुट लेते है
ये लुट लेते है
इनकी फितरत में है बेवफाई
जानती है ये सारी खुदाई
अच्छे अच्छो को देते है धोखा
भोले भालो से अल्लाह बचाए
भोली सूरत हैं बातें हैं भोली
मूँह में कुछ है मगर दिल में कुछ है
लाख चेहरा सही चाँद जैसा
दिल के कालों से अल्लाह बचाये
दिल में है ख्वाहिश-ए-हूर-ओ-जन्नत
और ज़ाहिर में शौक़-ए-इबादत
बस हमें शेख जी आप जैसे
अल्लाह वालों से अल्लाह बचाये
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