ये किस का लहू है कौन मरा

ये किस का लहू है कौन मरा 


धरती की सुलगती छाती से बेचैन शरारे पूछते हैं 

तुम लोग जिन्हें अपना न सके वो ख़ून के धारे पूछते हैं 

सड़कों की ज़बाँ चिल्लाती है सागर के किनारे पूछते हैं 

ये किस का लहू है कौन मरा ऐ रहबर-ए-मुलक-ओ-क़ौम बता 


ये जलते हुए घर किस के हैं ये कटते हुए तन किस के हैं 

तक़्सीम के अंदर तूफ़ाँ में लुटते हुए गुलशन किस के हैं 

बद-बख़्त फ़ज़ाएँ किस की हैं बरबाद नशेमन किस के हैं 

कुछ हम भी सुनें हम को भी सुना 


किस काम के हैं ये दीन-धर्म जो शर्म का दामन चाक करें 

किस तरह के हैं ये देश-भगत जो बस्ते घरों को ख़ाक करें 

ये रूहें कैसी रूहें हैं जो धरती को नापाक करें 

आँखें तो उठा नज़रें तो मिला 


जिस राम के नाम पे ख़ून बहे उस राम की इज़्ज़त क्या होगी 

जिस दीन के हाथों लाज लुटे इस दीन की क़ीमत क्या होगी 

इंसान की इस ज़िल्लत से परे शैतान की ज़िल्लत क्या होगी 

ये वेद हटा क़ुरआन उठा 

ये किस का कहो है कौन मिरा 

ये किस का लहू है कौन मरा ऐ रहबर-ए-मुलक-ओ-क़ौम बता 

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