सदा आ रही है मरे दिल से पैहम - हबीब जालिब

सदा आ रही है मरे दिल से पैहम 


सदा आ रही है मरे दिल से पैहम 

कि होगा हर इक दुश्मन-ए-जाँ का सर ख़म 

नहीं है निज़ाम-ए-हलाकत में कुछ दम 

ज़रूरत है इंसान की अम्न-ए-आलम 

फ़ज़ाओं में लहराएगा सुर्ख़ परचम 

सदा आ रही है मिरे दिल से पैहम 

न ज़िल्लत के साए में बच्चे पलेंगे 

न हाथ अपने क़िस्मत के हाथों मलेंगे 

मुसावात के दीप घर घर जलेंगे 

सब अहल-ए-वतन सर उठा के चलेंगे 

न होगी कभी ज़िंदगी वक़्फ़-ए-मातम 

फ़ज़ाओं में लहराएगा सुर्ख़ परचम 

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