साहिल पे खडे हो तुम्हे क्या गम चले जाना

साहिल पे खडे हो तुम्हे क्या गम चले जाना

साहिल पे खडे हो तुम्हे क्या गम चले जाना

मैं डूब रहा हूँ, अभी डूबा तो नहीं हूँ

मैं डूब रहा हूँ, अभी डूबा तो नहीं हूँ

आए वादा फरामोश, मैं तुझसा तो नहीं हूँ

हर ज़ुल्म तेरा याद है, भुला तो नहीं हूँ

हर ज़ुल्म तेरा याद है, भुला तो नहीं हूँ

ए वादा फरामोश, मैं तुझसा तो नहीं हूँ


चुप चाप सही मसलेहतन, वक़्त के हाथों

चुप छाप सही मसलेहतन, वक़्त के हाथों

मजबूर सही, वक़्त से हारा तो नहीं हूँ

मजबूर सही, वक़्त से हारा तो नहीं हूँ

ए वादा फरामोश, मैं तुझसा तो नहीं हूँ


मुज़तर क्यों मुझे देखता रहता है ज़माना

दीवाना सही, उनका तमाशा तो नहीं हूँ

दीवाना सही, उनका तमाशा तो नहीं हूँ

ए वादा फरामोश, मैं तुझसा तो नहीं हूँ

हर ज़ुल्म तेरा याद है ए भुला तो नहीं हूँ

हर ज़ुल्म तेरा याद है ए भुला तो नहीं हूँ

चलो फिर से मुस्कुराएँ

चलो फिर से मुस्कुराएँ 

चलो फिर से दिल जलाएँ 

जो गुज़र गईं हैं रातें 

उन्हें फिर जगा के लाएँ 

जो बिसर गईं हैं बातें 

उन्हें याद में बुलाएँ 

चलो फिर से दिल लगाएँ 

चलो फिर से मुस्कुराएँ 


किसी शह-नशीं पे झलकी 

वो धनक किसी क़बा की 

किसी रग में कसमसाई 

वो कसक किसी अदा की 

कोई हर्फ-ए-बे-मुरव्वत 

किसी कुंज-ए-लब से फूटा 

वो छनक के शीशा-ए-दिल

तह-ए-बाम फिर से टूटा 

ये मिलन की ना मिलन की 

ये लगन की और जलन की 

जो सही हैं वारदातें 

जो गुज़र गईं हैं रातें 

जो बिसर गई हैं बातें 

कोई उन की धुन बनाएँ 

कोई उन का गीत गाएँ 

चलो फिर से मुस्कुराएँ 

चलो फिर से दिल जलाएँ 

दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है


 दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है 

आख़िर इस दर्द की दवा क्या है 


हम हैं मुश्ताक़ और वो बे-ज़ार 

या इलाही ये माजरा क्या है 


मैं भी मुँह में ज़बान रखता हूँ 

काश पूछो कि मुद्दआ क्या है 


जब कि तुझ बिन नहीं कोई मौजूद 

फिर ये हंगामा ऐ ख़ुदा क्या है 


ये परी.चेहरा लोग कैसे हैं 

ग़म्ज़ा ओ इश्वा ओ अदा क्या है 


शिकन-ए-ज़ुल्फ़-ए-अंबरीं क्यूँ है 

निगह-ए-चश्म-ए-सुरमा सा क्या है 


सब्ज़ा ओ गुल कहाँ से आए हैं 

अब्र क्या चीज़ है हवा क्या है 


हम को उन से वफ़ा की है उम्मीद 

जो नहीं जानते वफ़ा क्या है 


हाँ भला कर तिरा भला होगा 

और दरवेश की सदा क्या है 


जान तुम पर निसार करता हूँ 

मैं नहीं जानता दुआ क्या है 


मैं ने माना कि कुछ नहीं ग़ालिब  

मुफ़्त हाथ आए तो बुरा क्या है 

हम समय के युद्धबन्दी हैं

 हम समय के युद्धबन्दी हैं


 हम समय के युद्धबन्दी हैं

युद्ध तो लेकिन अभी हारे नहीं हैं हम ।

लालिमा है क्षीण पूरब की

पर सुबह के बुझते हुए तारे नहीं हैं हम ।

हम समय के युद्धबन्दी है।  


सच यही, हाँ, यही सच है

मोर्चे कुछ हारकर पीछे हटे हैं हम

जंग में लेकिन डटे हैं, हाँ, डटे हैं हम !

हम समय के युद्धबन्दी है। 


बुर्ज कुछ तोड़े थे हमने

दुर्ग पूँजी का मगर टूटा नहीं था !

कुछ मशालें जीत की हमने जलायी थीं

सवेरा पर तमस के व्यूह से छूटा नहीं था ।

नहीं थे इसके भरम में हम !

हम समय के युद्धबन्दी हैं। 


चलो, अब समय के इस लौह कारागार को तोड़ें

चलो, फिर जिन्दगी की धार अपनी शक्ति से मोड़ें

पराजय से सबक लें, फिर जुटें, आगे बढ़ें फिर हम !

हम समय के युद्धबन्दी हैं। 


न्याय के इस महाकाव्यात्मक समर में

हो पराजित सत्य चाहे बार-बार

जीत अन्तिम उसी की होगी

आज फिर यह घोषणा करते हैं हम !

हम समय के युद्धबन्दी हैं। 

दुनिया के हर सवाल के हम ही जवाब हैं

 दुनिया के हर सवाल के हम ही जवाब हैं

आंखों में हमारी नयी दुनिया के ख़्‍वाब हैं।

इन बाजुओं ने साथी ये दुनिया बनायी है

काटा है जंगलों कोएबस्‍ती बसाई है

जांगर खटा के खेतों में फसलें उगाई हैं

सड़कें निकाली हैं अटारी उठाई है

ये बांध बनाये हैं फ़ैक्‍टरी बनाई है

हम बेमिसाल हैं हम लाजवाब हैं

आंखों में हमारी नयी दुनिया के ख़्‍वाब हैं।

अब फिर नया संसार बनाना है हमें ही

नामों.निशां सितम का मिटाना है हमें ही

अब आग में से फूल खिलाना है हमें ही

फिर से अमन का गीत सुनाना है हमें ही

हम आने वाले कल के आफताबे.इन्‍क़लाब हैं

आंखों में हमारी नयी दुनिया के ख्‍़वाब हैं।

हक़ के लिये अब जंग छेड़ दो दोस्‍तो

जंग बन के फूल उगेगा दोस्‍तो

बच्‍चों की हंसी को ये खिलायेगा दोस्‍तो

प्‍यारे वतन को स्‍वर्ग बनायेगा दोस्‍तो

हम आने वाले कल की इक खुली किताब हैं

आंखों में हमारी नयी दुनिया के ख्‍़वाब हैं।


.शशि प्रकाश