तेरे जैसा यार कहाँ

 तेरे जैसा यार कहाँ, कहाँ ऐसा याराना

याद करेगी दुनिया, तेरा मेरा अफ़साना

तेरे जैसा यार कहाँ


मेरी ज़िन्दगी संवारी, मुझको गले लगा के

बैठा दिया फ़लक पे, मुझे ख़ाक से उठा के

यारा तेरी यारी को, मैंने तो ख़ुदा माना

याद करेगी दुनिया


मेरे दिल की ये दुआ है, कभी दूर तू न जाए

तेरे बिना हो जीना, वो दिन कभी न आए

तेरे संग जीना यहाँ, तेरे संग मर जाना

याद करेगी दुनिया


बरसात के मौसम में

बरसात के मौसम में

तन्हाई के आलम में

मैं घर से निकल आया

बोतल भी उठा लाया

अभी ज़िंदा हूँ तो जी लेने दो

भरी बरसात में पी लेने दो


मुझे टुकड़ों में नहीं जीना है

क़तरा क़तरा तो नहीं पीना है

हो आज पैमाने हटा दो यारों

हाँ सारा मयख़ाना पिला दो यारों

मयकदों में तो पीया करता हूँ

चलती राहों में भी पी लेने दो

अभी ज़िंदा हूँ तो जी लेने दो

भरी बरसात में पी लेने दो


मेरे दुश्मन हैं ज़माने के गम

बाद पिने के ये होंगे कम

ज़ुल्म दुनिया के न सह पायूँगा

बिन पिये आज न रह पायूँगा

मुझे हालात से टकराना है

मुझे हालात से टकराना है

ऐसे हालात में पी लेने दो

अभी ज़िंदा हूँ तो जी लेने दो

भरी बरसात में पी लेने दो


आज की शाम बड़ी बोझल  है

आज की रात बड़ी कातिल है

हो आज की शाम ढलेगी कैसे

हां आज की रात कटेगी कैसे

आग से आग बुझेगी दिल की

आग से आग बुझेगी दिल की

मुझे ये आज भी पीलेने दो

अभी ज़िंदा हूँ तो जी लेने दो

भरी बरसात में पी लेने दो


यूँ ही कट जाएगा सफ़र

यूँ ही कट जाएगा सफ़र साथ चलने से

के मंजिल आएगी नज़र साथ चलने से


हम हैं राही प्यार के चलना अपना काम

पलभर में हो जायेगी हर मुश्किल नाकाम

हौंसला ना हारेंगे, हम तो बाज़ी मारेंगे

यूँ ही कट जाएगा सफ़र


कहती हैं ये वादियाँ बदलेगा मौसम

ना कोई परवाह है खुशियाँ हो या गम

आँधियों से खेलेंगे, दर्द सारे झेलेंगे

यूँ ही कट जाएगा सफ़र


मेहनत के आगे सभी तकदीरें बेकार

होती उसकी जीत है जो न माने हार

रात जब ढल जाती, सुबह सुहानी आती है

यूँ ही कट जाएगा सफ़र

यारी है ईमान मेरा यार मेरी ज़िंदगी

ग़र ख़ुदा मुझसे कहे

कुछ माँग ऐ बंदे मेरे

मैं ये माँगूँ

महफ़िलों के दौर यूँ चलते रहें

हमप्याला हो, हमनवाला हो, हमसफ़र हमराज़ हों

ता.क़यामत जो चिराग़ों की तरह जलते रहें


यारी है ईमान मेरा यार मेरी ज़िंदगी

प्यार हो बंदों से ये सबसे बड़ी है बंदगी


साज़-ए-दिल छेड़ो जहां में, प्यार की गूँजे सदा

जिन दिलों में प्यार है उनसे बहारें हों फ़िदा

प्यार लेके नूर आया, प्यार लेके सादगी

यारी है ईमान मेरा


जान भी जाए अगर, यारी में यारों ग़म नहीं

अपने होते यार हो ग़मगीन, मतलब हम नहीं

हम जहाँ हैं उस जगह, झूमेगी नाचेगी ख़ुशी

यारी है ईमान मेरा


गुल-ए-गुलज़ार क्यों बेज़ार नज़र आता है

चश्म-ए-बद का शिकार यार नज़र आता है

छुपा न हमसे, ज़रा हाल-ए-दिल सुना दे तू

तेरी हँसी की क़ीमत क्या है, ये बता दे तू


कहे तो आसमाँ से चाँद-तारे ले आऊँ

हंसी जवान और दिलकश नज़ारे ले आऊँ

ओए! ओए! क़ुर्बान

तेरा ममनून हूँ, तूने निभाया याराना

तेरी हँसी है आज सबसे बड़ा नज़राना

यार के हँसते ही, महफ़िल पे जवानी आ गई, आ गई

यारी है ईमान मेरा


लो शेर! कुरबां! कुरबां!

इतने भले नहीं बन जाना साथी

इतने भले नहीं बन जाना साथी

इतने भले नहीं बन जाना साथी

जितने भले हुआ करते हैं सरकस के हाथी

गधा बनने में लगा दी अपनी सारी कुव्वत सारी प्रतिभा

किसी से कुछ लिया नहीं न किसी को कुछ दिया

ऐसा भी जिया जीवन तो क्या जिया,


इतने दुर्गम मत बन जाना साथी 

सम्भव ही रह जाय न तुम तक कोई राह बनाना

अपने ऊंचे सन्नाटे में सर धुनते रह गए

लेकिन किंचित भी जीवन का मर्म नहीं जाना


इतने चालू मत हो जाना साथी 

सुन-सुन कर हरक़ते तुम्हारी पड़े हमें शरमाना

बग़ल दबी हो बोतल मुँह में जनता का अफसाना

ऐसे घाघ नहीं हो जाना 


ऐसे कठमुल्ले मत बनना

बात नहीं हो मन की तो बस तन जाना

दुनिया देख चुके हो यारो

एक नज़र थोड़ा-सा अपने जीवन पर भी मारो

पोथी-पतरा-ज्ञान-कपट से बहुत बड़ा है मानव

कठमुल्लापन छोड़ो

उस पर भी तो तनिक विचारो


काफ़ी बुरा समय है साथी

गरज रहे हैं घन घमण्ड के नभ की फटती है छाती

अंधकार की सत्ता चिल-बिल चिल-बिल मानव-जीवन

जिस पर बिजली रह-रह अपना चाबुक चमकाती

संस्कृति के दर्पण में ये जो शक्लें हैं मुस्काती

इनकी असल समझना साथी

अपनी समझ बदलना साथी

कल, आज और कल - लाल बैंड

कल, आज और कल - लाल बैंड 


अहद-ए-जवानी में हमने देखे थे कुछ  ख्वाब सुहाने 

एक नई दुनिया के फ़साने, एक नई दुनिया के तराने 

ऐसी दुनिया जिसमें कोई दुःख न झेले भूख न जाने 


एक तरफ थी जनता सारी, एक तरफ थे चंद घराने 

एक तरफ थे भूखे-नंगे, एक तरफ कारू के खजाने 

एक तरफ थी माएं - बहनें, एक तरफ तहसील और थाने 

एक तरफ थी तीसरी दुनिया, एक तरफ बेदाद पुराने 

एक तरफ सच्चल और बाहू, एक तरफ मुल्लाह और मसलक 

एक तरफ थे हीर और रांझा, एक तरफ काजी और चूचक 

एक तरफ अमरत के धारे, एक तरफ थे धारे-बिसके 

सारी दुनिया पूछ रही थी, बोलो अब तुम साथ हो किसके         


हम ये बाबर कर बैठे थे, सब साथी हैं मजदूरों के 

सब हामी हैं मजबूरों के, सब साथी हैं महकूमों के  

चे ने जब एक जस्त लगाईं,  हम भी उसके साथ चले  थे

चू ने जब आवाज़ उठाई , हाथ में डाले हाथ चले थे 

 मजहब की तफरेक नहीं थी, और हम सारे एक हुए थे 

 

दुनिया की तारीख गवाह है, अदल बिना जमहूर न होगा  

अदल हुआ तो देश हमारा कभी भी चकनाचूर न  होगा 

अदल बिना कमजोर मिदारे, अदल बिना कमजोर इकाइयाँ 

अदल बिना बेबस हर शहरी, अदल बिना हर सिम्त इकाइयाँ 


दुनिया की तारीख में सोचो कब कोई मुंसिफ कैद हुआ है 

आमिर की अपनी ही अनाह से अदल यहाँ नापैग हुआ है 

क्यों लगता है एक ही ताकत अर्ज-ए-खुदा पे घूम रही है 

क्यों लगता है हर एक हुकूमत पाँव उसके चूम रही है 


उसकी बमबारी के बाइज खून में सब लबरेज़ हुए हैं 

मजहब में शिद्दत आई है, खुद कुछ जंग जूँ तेज हुए हैं 

अदल के इवानों में सुन लो, असली मुंसिफ फिर आएंगे 

रोटी, कपड़ा और घर अपना जनता को हम दिलवाएंगें 

आटा, बिजली, पानी,ईंधन सबको सस्ते दाम मिलेगा 

बेरोजगारों को हर मुम्किन  

 

जाग मेरे मन मछंदर !

जाग मेरे मन मछंदर!


जाग मेरे मन मछंदर!

रमी है धूनी

सुलगती आग

मेरे मन मछंदर!


जाग मेरे मन मछंदर!


किंतु मन की

तलहटी में

बहुत गहरी

और अंधेरी

खाइयां हैं

रह चुकीं जो

डायनासर का बसेरा

सो भयानक

कंदराएं हैं

कंदराओं में भरे

कंकाल

मेरे मन मछंदर!


रेंगते भ्रम के

भयानक व्याल

मेरे मन मछंदर!


क्षुद्रता के

और भ्रम के

इस भयानक

नाग का फन

ताग तू

फिर से मछंदर!


जाग मेरे मन मछंदर!


रमी है धूनी

सुलगती आग

मेरे मन मछंदर!


सूखते हैं खेत

भरती रेत

जीवन हुआ निर्जल

किंतु फिर भी

बह रहा कल-कल

क्षीण-सी जलधार ले कर

प्यार और दुलार ले कर

एक झरना फूटता

मन में मछंदर!


सजल जीवन के लिए

अनुराग भर कर


जाग मेरे मन मछंदर!


रमी है धूनी

सुलगती आग

मेरे मन मछंदर!


भरा है सागर मेरे मन

जहां से उठ कर

मघा के

मेघ छाते हैं

और मन के गगन में घिर

गरजते हैं घन मछंदर!

वृष्टि का उल्लास

भर कर जाग

मेरे मन मछंदर!


रमी है धूनी

सुलगती आग

मेरे मन मछंदर!


सो रहा संसार

पूंजी का

विकट भ्रमजाल

किंतु फिर भी सर्जना के

एक छोटे-से नगर में

जागता है एक नुक्कड़

चिटकती चिंगारियां

उठता धुआं है

सुलगता है एक लक्कड़

तिलमिलाते आज भी

कुछ लोग

सुन कर देख कर अन्याय

और लड़ने के लिए

अब भी बनाते मन मछंदर!


फिर नए संघर्ष का

उन्वान ले कर

जाग मेरे मन मछंदर!


रमी है धूनी

सुलगती आग

मेरे मन मछंदर!


बिक रहे मन

बिक रहे तन

देश बिकते

दृष्टि बिकती

एक डॉलर पर

समूची सृष्टि बिकती

और

राजा ने लगाया

फिर हमें नीलाम पर

एक कौड़ी दाम पर

लो बिक रहा

जन.गण मछंदर!


मुक्ति का परचम उठाकर

जाग मेरे मन मछंदर!


रमी है धूनी

सुलगती आग

मेरे मन मछंदर!


गीत बिकते गान बिकते

मान और अभिमान बिकते

हर्ष और विषाद बिकते

नाद और निनाद बिकते

बिक रही हैं कल्पनाएं

बिक रही हैं भावनाएं

और अपने बिक रहे हैं

और सपने बिक रहे हैं

बिक रहे बाजार की

खिल्ली उड़ाता

विश्व के बाजार के

तंबू उड़ाता

आ गया गोरख

लिए नौ गीत अपने

सुन मछंदर!


रमी है धूनी

सुलगती आग

मेरे मन मछंदर!


सो रहे संसार में

नव जागरण का

ज्वार ले कर कांप

कांप रचना के

प्रबल उन्माद में

थर-थर मछंदर!


फिर चरम बलिदान का

उद्दाम निर्झर बन मछंदर!

जाग जन-जन में मछंदर!

जाग कण-कण में मछंदर!


रमी है धूनी

सुलगती आग

मेरे मन मछंदर

ओ मेरे आदर्शवादी मन,

ओ मेरे आदर्शवादी मन,

ओ मेरे सिद्धान्तवादी मन,

अब तक क्या किया

जीवन क्या जिया !


उदरम्भरि बन अनात्म बन गये

भूतों की शादी में क़नात.से तन गये

किसी व्यभिचारी के बन गये बिस्तर


दुःखों के दाग़ों को तमग़ों सा पहना

अपने ही ख़यालों में दिन-रात रहना

ज़िन्दगी निष्क्रिय बन गयी तलघर

अब तक क्या किया

जीवन क्या जिया !


बताओ तो किस-किसके लिए तुम दौड़ गये

करुणा के दृश्यों से हाय! 

मुँह मोड़ गये,

बन गये पत्थर


अब तक क्या किया

जीवन क्या जिया


कहब तो लाग जाई धक् से

 कहब तो लाग जाई धक् से

 

 बड़े - बड़े  लोगन के बंगला दो बंगला 

और भैया  ऐ.सी.  अलग से, अलग से 

हमरें गरीबन कि झोपड़ी जुलमवा 

बरसे से पानी चूए टाप-टाप से 

  

 बड़े - बड़े  लोगन का पूरी और रबड़ी 

और भैया हलवा अलग से, अलग से 

हमरें गरीबन के रोटी जुलमवा 

खाए से पेट में गड़े हक से, हक से


 बड़े - बड़े  लोगन के जीन्स और पैंट भैया 

और भैया कोटो अलग से , अलग से 

हमरें गरीबन के कुरता ज़ुलमवा ज़ुलमवा  

पहने से फट जाइ चर से, चर से 

 

बड़े -  बड़े लोगन के  मोटर और कार भैया 

और हीरो हॉन्डा अलग से, अलग से 

हमरें गरीबन के साइकिल जुलमवा 

साइकिल चलें, टायर बोले फाट से, फाट से 


बड़े- बड़े लोगन के डल्लब के गद्दा 

और भैया सोफा अलग से , अलग से 

 हमरें गरीबन के खटिया जुलमवा 

सोये से टूट जाइ खट से, खट से    


बड़े - बड़े लोगन के जूता और सैंडल 

और भैया मऊजा अलग से , अलग से 

हमरें गरीबन के चप्पल जुलमवा 

चलें से काटा गड़े , घप से, घप से 


बड़े - बड़े लोगन के बीयर और विस्की 

और भैया पेप्सी अलग से, अलग से 

हमरें गरीबन के पानी जुलमवा 

पीये से पेट झड़े झर् से, झर् से 


कहब तो लाग जाइ धाक से   


दर्द रुकता नहीं एक पल भी

दर्द रुकता नहीं एक पल भी



शेर- 

उदासियाँ जो न लाते तो और क्या करते 

न जश्न-ए-शोला मनाते तो और क्या करते 

अन्धेरा मांगने आया था रौशनी की भीख

हम अपना घर न जलाते तो और क्या करते  


शेर -

आज की बात फिर नहीं होगी

ये मुलाक़ात फिर नहीं होगी

ऐसे बदल तो फिर भी आएंगे

ऐसी बरसात फिर नहीं होगी

रात उनको भी यूँ हुआ महसूस

जैसे ये रात फिर नहीं होगी

एक नज़र मुडके देखने वाले

क्या ये खैरात फिर नहीं होगी


शेर- 

शब-ए-गम की सहर नहीं होती 

हो भी तो मेरे घर नहीं होती 

ज़िन्दगी तू ही मुख्तासर हो जा

शब-ए-गम मुख्तासर नहीं होती 


शेर- 

उसके नजदीक गम-ए-तर्क-ए-वफ़ा कुछ भी नहीं

मूतमाइन ऐसे है जैसे हुआ कुछ भी नहीं

उसको खो कर अब तो हाथो से लकीरे भी मिटी जाती है

उसको खो कर तो मेरे पास रहा कुछ भी नहीं


शेर- 

कल बिछड़ना है तो फिर एहद-ए-वफ़ा सोच के बाद 

अभी आगाज-ऐ-मोहब्बत है गया कुछ भी नहीं

मैं तो इस वास्ते चुप था की तमाशा ना बने

तू समझता है मुझे तुझसे गिला कुछ भी नहीं


शेर-

आज रूठे हुए सजन को बहुत याद किया

अपने उजड़े हुए गुलशन को बहुत याद किया

जब कभी गर्दिश-ए-तकदीर ने घेरा है हमे

केसू-ए-यार की उलझन को बहुत याद किया


शेर- 

आज टूटे हुए सपनों की बहुत याद आई

आज बीते हुए सावन को बहुत याद किया


दर्द रुकता नहीं एक पल भी

इश्क की ये सजा मिल रही है

मौत से पहले ही मर गए हम

चोट नजरो की ऐसी लगी है


शेर- 

जबसे लगी है आंख भी मेरी लगी नहीं

ये आतिश-ए-फ़िराक है रहती दबी नहीं


उनसे ऐसी लगी है

उनसे ऐसी लगी है

उनसे ऐसी लगी है


शेर-

जबसे लागे तोरे संग नैन पिया

मेरी रो रो के कटती है रैन पिया


उनसे ऐसी लगी है

उनसे ऐसी लगी है

उनसे ऐसी लगी है


सावन की काली रातों में

जब बूंदा बांदी होती है

जग सुख की नींद में सोता है

और बिरहा हमारी रोती है


उनसे ऐसी लगी है

उनसे ऐसी लगी है

उनसे ऐसी लगी है


मौत से पहले ही मर गए हम

चोट नजरो की ऐसी लगी है


बेवफा इतना एहसान कर दे

कम से कम इश्क की लाज रख ले

दो कदम चल के कान्धा तो दे दे

तेरे आशिक की मईयत उठी है


रात कटती है गिन गिन के तारे


रात कटती है गिन गिन के

गिन गिन के तारे

रात कटती है गिन गिन के

गिन गिन के तारे


शेर-

माना शुमार तारो का करना मुहाल है

लेकिन किसी को नींद ना आए तो क्या करे


गिन गिन के तारे

रात कटती है गिन गिन के

गिन गिन के तारे


शेर-

किसी की शब-ए-वस्ल सोते कटे है

किसी की शब-ए-हिजर रोते कटे है

इलाही हमारी ये शब कैसी शब है

ना रोते कटे है ना सोते कटे है बस 


गिन गिन के तारे

रात कटती है गिन गिन के

गिन गिन के तारे


सितारों  सितारों


सितारों मेरी रातो के सहारो सितारों

मुहब्बत की चमकती यादगारों सितारों

ना जाने मुझको नींद आये ना आये

तुम्ही आराम करलो बेकरारो


गिन गिन के तारे

रात कटती है गिन गिन के

गिन गिन के तारे


रात कटती है गिन गिन के तारे

नींद आती नहीं एक पल भी


रात कटती है गिन गिन के तारे

नींद आती नहीं एक पल भी

आंख लगती नहीं अब हमारी

आंख उस बुत से ऐसी लगी है


इस कदर मेरे दिल को निचोड़ा

एक कतरा लहू का ना छोड़ा

जगमाती है जो उनकी खल्वत

वो मेरे खून की रौशनी है


लडखडाता हुआ जब भी नादान 

उनकी रंगीन महफ़िल में पंहुचा

देख कर मुझको लोगो से बोले

ये वही बेवफा आदमी है


दर्द रुकता नहीं एक पल भी

इश्क की ये सजा मिल रही है

पगड़ी संभाल जट्टा - लेजेंड ऑफ भगत सिंह


 तेरा लुट ना जाए माल ओए

ओ जट्टा पगड़ी संभाल ओए


पगड़ी संभाल जट्टा पगड़ी संभाल ओए

तेरा लुट ना जाए माल जट्टा पगड़ी संभाल ओए

तोड़ गुलामी की जंजीरें बदल दे तू अपनी तक़दीरें

पड़ जा ऐसा इनके पल्ले , कर दे इनकी बल्ले-बल्ले


आसमानो को भी वो झुकाये झुकाये

यारों जो कभी भी हिम्मत ना हारे

आदमी यहां पे जो चाहे जो चाहे

यारों तो जमीन पे लाये सितारें

बाँधा किसने तेज हवा को, वक्त को किसने देखा

मेहनत से ही बदलेगी तेरी हाथों की रेखा

तेरा लुट ना जाए माल जट्टा पगड़ी संभाल ओए


आज हम करेंगे ये वादा ये वादा जट्टा

आज हम करेंगे ये वादा

बैरियों को मिल के मिटाना मिटाना जट्टा

है यही तो अपना इरादा

फौलादी है बाहें तेरी, पत्थर का है सीना

करदे-करदे इन चोरों का अब तो मुश्किल जीना

तेरा लुट ना जाए माल जट्टा पगड़ी संभाल ओए

तोड़ गुलामी की जंजीरें, बदल दे तू अपनी तक़दीरें

पड़ जा ऐसा इनके पल्ले, कर दे इनकी बल्ले-बल्ले


पगड़ी सम्भाल जट्टा - शहीद फिल्म


पगड़ी सम्भाल जट्टा

पगड़ी सम्भाल ओए 

पगड़ी सम्भाल जट्टा

लुट गया माल ओए 


तू धरती की माँग सँवारे सोये खेत जगाये

सारे जग का पेट भरे तू अन्नदाता कहलाये

फिर क्यों भूख तुझे खाती है और तू भूख को खाये

लुट गया माल तेरा, लुट गया माल ओए 

पगड़ी सम्भाल जट्टा 


देके अपना खून पसीना तूने फ़सल उगायी

आँधी देखी तूफ़ाँ झेले बिपदा सभी उठायी

फ़सल कटी तो ले गये ज़ालिम तेरी नेक कमायी

लुट गया माल तेरा लुट गया माल ओए 

पगड़ी सम्भाल जट्टा


उठ और उठ के खाक़ से ज़र्रे एक सितारा बन जा

बुझा बुझा क्यों दिल है तेरा इक अंगारा बन जा

ओ सदियों के ठहरे पानी बहती धारा बन जा

लुट गया माल तेरा लुट गया माल ओए 

पगड़ी सम्भाल जट्टा

हम लड़ेंगे साथी

हम लड़ेंगे साथी, उदास मौसम के लिए

हम लड़ेंगे साथी,ग़ुलाम इच्छाओं के लिए

हम चुनेंगे साथी, ज़िन्दगी के टुकड़े


हथौड़ा अब भी चलता है, उदास निहाई पर

हल अब भी चलता हैं चीख़ती धरती पर

यह काम हमारा नहीं बनता है, सवाल नाचता है

सवाल के कन्धों पर चढ़कर

हम लड़ेंगे साथी


क़त्ल हुए जज़्बों की क़सम खाकर

बुझी हुई नज़रों की क़सम खाकर

हाथों पर पड़े गाँठों की क़सम खाकर

हम लड़ेंगे साथी


हम लड़ेंगे तब तक

जब तक वीरू बकरिहा

बकरियों का पेशाब पीता है

खिले हुए सरसों के फूल को

जब तक बोने वाले ख़ुद नहीं सूँघते

कि सूजी आँखों वाली

गाँव की अध्यापिका का पति जब तक

युद्ध से लौट नहीं आता


जब तक पुलिस के सिपाही

अपने भाइयों का गला घोंटने को मज़बूर हैं

कि दफ़्तरों के बाबू

जब तक लिखते हैं लहू से अक्षर

हम लड़ेंगे जब तक

दुनिया में लड़ने की ज़रूरत बाक़ी है


जब बन्दूक न हुई, तब तलवार होगी

जब तलवार न हुई, लड़ने की लगन होगी

लड़ने का ढंग न हुआ, लड़ने की ज़रूरत होगी


और हम लड़ेंगे साथी

हम लड़ेंगे

कि लड़े बग़ैर कुछ नहीं मिलता

हम लड़ेंगे

कि अब तक लड़े क्यों नहीं

हम लड़ेंगे

अपनी सज़ा कबूलने के लिए

लड़ते हुए मर जाने वाले की

याद ज़िन्दा रखने के लिए

हम लड़ेंगे

हम मेहनतकश जग वालों से जब अपना हिस्‍सा मांगेंगे

हम मेहनतकश जग वालों से जब अपना हिस्‍सा मांगेंगे

हम मेहनतकश जग वालों से जब अपना हिस्‍सा मांगेंगे

इक खेत नहीं, इक देश नहीं, हम सारी दुनिया मांगेंगे।


ये पर्वत-पर्वत हीरे हैं, ये सागर-सागर मोती हैं। 

ये सारा माल हमारा है, हम सारा खजाना मांगेंगे।


वो सेठ व्‍यापारी रजवारे, दस लाख तो हम हैं दस करोड। 

ये कब तक अमरीका से, जीने का सहारा मांगेंगे।


जो खून बहे जो बाग उजडे जो गीत दिलों में कत्‍ल हुए,

हर कतरे का हर गुंचे का, हर गीत का बदला मांगेंगे।


जब सब सीधा हो जाएगाए जब सब झगडे मिट जायेंगेए

हम मेहनत से उपजायेंगेए बस बांट बराबर खायेंगे।


हम मेहनतकश जग वालों से जब अपना हिस्‍सा मांगेंगे। 

इक खेत नहीं, इक देश नही, हम सारी दुनिया मांगेंगे।

आज बाज़ार में पा-ब-जौलाँ चलो

चश्म-नम जान-ए-शोरीदा काफ़ी नहीं 

तोहमत-ए-इश्क़-ए-पोशीदा काफ़ी नहीं 

आज बाज़ार में पा-ब-जौलाँ चलो 

दस्त-अफ़्शाँ चलो मस्त ओ रक़्साँ चलो 

ख़ाक-बर-सर चलो ख़ूँ-ब-दामाँ चलो 

राह तकता है सब शहर-ए-जानाँ चलो 

हाकिम-ए-शहर भी मजमा-ए-आम भी 

तीर-ए-इल्ज़ाम भी संग-ए-दुश्नाम भी 

सुब्ह-ए-नाशाद भी रोज़-ए-नाकाम भी 

उन का दम-साज़ अपने सिवा कौन है 

शहर-ए-जानाँ में अब बा-सफ़ा कौन है 

दस्त-ए-क़ातिल के शायाँ रहा कौन है 

रख़्त-ए-दिल बाँध लो दिल-फ़िगारो चलो 

फिर हमीं क़त्ल हो आएँ यारो चलो 

निसार मैं तिरी गलियों के

निसार मैं तिरी गलियों के ऐ वतन कि जहाँ 

चली है रस्म कि कोई न सर उठा के चले 

जो कोई चाहने वाला तवाफ़ को निकले 

नज़र चुरा के चले जिस्म ओ जाँ बचा के चले 

है अहल-ए-दिल के लिए अब ये नज़्म-ए-बस्त-ओ-कुशाद 

कि संग-ओ-ख़िश्त मुक़य्यद हैं और सग आज़ाद 

बहुत है ज़ुल्म के दस्त-ए-बहाना-जू के लिए 

जो चंद अहल-ए-जुनूँ तेरे नाम.लेवा हैं 

बने हैं अहल-ए-हवस मुद्दई भी मुंसिफ़ भी 

किसे वकील करें किस से मुंसिफ़ी चाहें 

मगर गुज़ारने वालों के दिन गुज़रते हैं 

तिरे फ़िराक़ में यूँ सुब्ह ओ शाम करते हैं 

बुझा जो रौज़न-ए-ज़िंदाँ तो दिल ये समझा है 

कि तेरी माँग सितारों से भर गई होगी 

चमक उठे हैं सलासिल तो हम ने जाना है 

कि अब सहर तिरे रुख़ पर बिखर गई होगी 

ग़रज़ तसव्वुर-ए-शाम-ओ-सहर में जीते हैं 

गिरफ़्त-ए-साया-ए-दीवार-ओ-दर में जीते हैं 

यूँही हमेशा उलझती रही है ज़ुल्म से ख़ल्क़ 

न उन की रस्म नई है न अपनी रीत नई 

यूँही हमेशा खिलाए हैं हम ने आग में फूल 

न उन की हार नई है न अपनी जीत नई 

इसी सबब से फ़लक का गिला नहीं करते 

तिरे फ़िराक़ में हम दिल बुरा नहीं करते 

गर आज तुझ से जुदा हैं तो कल बहम होंगे 

ये रात भर की जुदाई तो कोई बात नहीं 

गर आज औज पे है ताला-ए-रक़ीब तो क्या 

ये चार दिन की ख़ुदाई तो कोई बात नहीं 

जो तुझ से अहद-ए-वफ़ा उस्तुवार रखते हैं 

इलाज-ए-गर्दिश-ए-लैल-ओ-नहार रखते हैं