ओ मेरे आदर्शवादी मन,
ओ मेरे सिद्धान्तवादी मन,
अब तक क्या किया
जीवन क्या जिया !
उदरम्भरि बन अनात्म बन गये
भूतों की शादी में क़नात.से तन गये
किसी व्यभिचारी के बन गये बिस्तर
दुःखों के दाग़ों को तमग़ों सा पहना
अपने ही ख़यालों में दिन-रात रहना
ज़िन्दगी निष्क्रिय बन गयी तलघर
अब तक क्या किया
जीवन क्या जिया !
बताओ तो किस-किसके लिए तुम दौड़ गये
करुणा के दृश्यों से हाय!
मुँह मोड़ गये,
बन गये पत्थर
अब तक क्या किया
जीवन क्या जिया
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