जाग मेरे मन मछंदर !

जाग मेरे मन मछंदर!


जाग मेरे मन मछंदर!

रमी है धूनी

सुलगती आग

मेरे मन मछंदर!


जाग मेरे मन मछंदर!


किंतु मन की

तलहटी में

बहुत गहरी

और अंधेरी

खाइयां हैं

रह चुकीं जो

डायनासर का बसेरा

सो भयानक

कंदराएं हैं

कंदराओं में भरे

कंकाल

मेरे मन मछंदर!


रेंगते भ्रम के

भयानक व्याल

मेरे मन मछंदर!


क्षुद्रता के

और भ्रम के

इस भयानक

नाग का फन

ताग तू

फिर से मछंदर!


जाग मेरे मन मछंदर!


रमी है धूनी

सुलगती आग

मेरे मन मछंदर!


सूखते हैं खेत

भरती रेत

जीवन हुआ निर्जल

किंतु फिर भी

बह रहा कल-कल

क्षीण-सी जलधार ले कर

प्यार और दुलार ले कर

एक झरना फूटता

मन में मछंदर!


सजल जीवन के लिए

अनुराग भर कर


जाग मेरे मन मछंदर!


रमी है धूनी

सुलगती आग

मेरे मन मछंदर!


भरा है सागर मेरे मन

जहां से उठ कर

मघा के

मेघ छाते हैं

और मन के गगन में घिर

गरजते हैं घन मछंदर!

वृष्टि का उल्लास

भर कर जाग

मेरे मन मछंदर!


रमी है धूनी

सुलगती आग

मेरे मन मछंदर!


सो रहा संसार

पूंजी का

विकट भ्रमजाल

किंतु फिर भी सर्जना के

एक छोटे-से नगर में

जागता है एक नुक्कड़

चिटकती चिंगारियां

उठता धुआं है

सुलगता है एक लक्कड़

तिलमिलाते आज भी

कुछ लोग

सुन कर देख कर अन्याय

और लड़ने के लिए

अब भी बनाते मन मछंदर!


फिर नए संघर्ष का

उन्वान ले कर

जाग मेरे मन मछंदर!


रमी है धूनी

सुलगती आग

मेरे मन मछंदर!


बिक रहे मन

बिक रहे तन

देश बिकते

दृष्टि बिकती

एक डॉलर पर

समूची सृष्टि बिकती

और

राजा ने लगाया

फिर हमें नीलाम पर

एक कौड़ी दाम पर

लो बिक रहा

जन.गण मछंदर!


मुक्ति का परचम उठाकर

जाग मेरे मन मछंदर!


रमी है धूनी

सुलगती आग

मेरे मन मछंदर!


गीत बिकते गान बिकते

मान और अभिमान बिकते

हर्ष और विषाद बिकते

नाद और निनाद बिकते

बिक रही हैं कल्पनाएं

बिक रही हैं भावनाएं

और अपने बिक रहे हैं

और सपने बिक रहे हैं

बिक रहे बाजार की

खिल्ली उड़ाता

विश्व के बाजार के

तंबू उड़ाता

आ गया गोरख

लिए नौ गीत अपने

सुन मछंदर!


रमी है धूनी

सुलगती आग

मेरे मन मछंदर!


सो रहे संसार में

नव जागरण का

ज्वार ले कर कांप

कांप रचना के

प्रबल उन्माद में

थर-थर मछंदर!


फिर चरम बलिदान का

उद्दाम निर्झर बन मछंदर!

जाग जन-जन में मछंदर!

जाग कण-कण में मछंदर!


रमी है धूनी

सुलगती आग

मेरे मन मछंदर

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