दर्द रुकता नहीं एक पल भी

दर्द रुकता नहीं एक पल भी



शेर- 

उदासियाँ जो न लाते तो और क्या करते 

न जश्न-ए-शोला मनाते तो और क्या करते 

अन्धेरा मांगने आया था रौशनी की भीख

हम अपना घर न जलाते तो और क्या करते  


शेर -

आज की बात फिर नहीं होगी

ये मुलाक़ात फिर नहीं होगी

ऐसे बदल तो फिर भी आएंगे

ऐसी बरसात फिर नहीं होगी

रात उनको भी यूँ हुआ महसूस

जैसे ये रात फिर नहीं होगी

एक नज़र मुडके देखने वाले

क्या ये खैरात फिर नहीं होगी


शेर- 

शब-ए-गम की सहर नहीं होती 

हो भी तो मेरे घर नहीं होती 

ज़िन्दगी तू ही मुख्तासर हो जा

शब-ए-गम मुख्तासर नहीं होती 


शेर- 

उसके नजदीक गम-ए-तर्क-ए-वफ़ा कुछ भी नहीं

मूतमाइन ऐसे है जैसे हुआ कुछ भी नहीं

उसको खो कर अब तो हाथो से लकीरे भी मिटी जाती है

उसको खो कर तो मेरे पास रहा कुछ भी नहीं


शेर- 

कल बिछड़ना है तो फिर एहद-ए-वफ़ा सोच के बाद 

अभी आगाज-ऐ-मोहब्बत है गया कुछ भी नहीं

मैं तो इस वास्ते चुप था की तमाशा ना बने

तू समझता है मुझे तुझसे गिला कुछ भी नहीं


शेर-

आज रूठे हुए सजन को बहुत याद किया

अपने उजड़े हुए गुलशन को बहुत याद किया

जब कभी गर्दिश-ए-तकदीर ने घेरा है हमे

केसू-ए-यार की उलझन को बहुत याद किया


शेर- 

आज टूटे हुए सपनों की बहुत याद आई

आज बीते हुए सावन को बहुत याद किया


दर्द रुकता नहीं एक पल भी

इश्क की ये सजा मिल रही है

मौत से पहले ही मर गए हम

चोट नजरो की ऐसी लगी है


शेर- 

जबसे लगी है आंख भी मेरी लगी नहीं

ये आतिश-ए-फ़िराक है रहती दबी नहीं


उनसे ऐसी लगी है

उनसे ऐसी लगी है

उनसे ऐसी लगी है


शेर-

जबसे लागे तोरे संग नैन पिया

मेरी रो रो के कटती है रैन पिया


उनसे ऐसी लगी है

उनसे ऐसी लगी है

उनसे ऐसी लगी है


सावन की काली रातों में

जब बूंदा बांदी होती है

जग सुख की नींद में सोता है

और बिरहा हमारी रोती है


उनसे ऐसी लगी है

उनसे ऐसी लगी है

उनसे ऐसी लगी है


मौत से पहले ही मर गए हम

चोट नजरो की ऐसी लगी है


बेवफा इतना एहसान कर दे

कम से कम इश्क की लाज रख ले

दो कदम चल के कान्धा तो दे दे

तेरे आशिक की मईयत उठी है


रात कटती है गिन गिन के तारे


रात कटती है गिन गिन के

गिन गिन के तारे

रात कटती है गिन गिन के

गिन गिन के तारे


शेर-

माना शुमार तारो का करना मुहाल है

लेकिन किसी को नींद ना आए तो क्या करे


गिन गिन के तारे

रात कटती है गिन गिन के

गिन गिन के तारे


शेर-

किसी की शब-ए-वस्ल सोते कटे है

किसी की शब-ए-हिजर रोते कटे है

इलाही हमारी ये शब कैसी शब है

ना रोते कटे है ना सोते कटे है बस 


गिन गिन के तारे

रात कटती है गिन गिन के

गिन गिन के तारे


सितारों  सितारों


सितारों मेरी रातो के सहारो सितारों

मुहब्बत की चमकती यादगारों सितारों

ना जाने मुझको नींद आये ना आये

तुम्ही आराम करलो बेकरारो


गिन गिन के तारे

रात कटती है गिन गिन के

गिन गिन के तारे


रात कटती है गिन गिन के तारे

नींद आती नहीं एक पल भी


रात कटती है गिन गिन के तारे

नींद आती नहीं एक पल भी

आंख लगती नहीं अब हमारी

आंख उस बुत से ऐसी लगी है


इस कदर मेरे दिल को निचोड़ा

एक कतरा लहू का ना छोड़ा

जगमाती है जो उनकी खल्वत

वो मेरे खून की रौशनी है


लडखडाता हुआ जब भी नादान 

उनकी रंगीन महफ़िल में पंहुचा

देख कर मुझको लोगो से बोले

ये वही बेवफा आदमी है


दर्द रुकता नहीं एक पल भी

इश्क की ये सजा मिल रही है

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