हम मेहनतकश जग वालों से जब अपना हिस्‍सा मांगेंगे

हम मेहनतकश जग वालों से जब अपना हिस्‍सा मांगेंगे

हम मेहनतकश जग वालों से जब अपना हिस्‍सा मांगेंगे

इक खेत नहीं, इक देश नहीं, हम सारी दुनिया मांगेंगे।


ये पर्वत-पर्वत हीरे हैं, ये सागर-सागर मोती हैं। 

ये सारा माल हमारा है, हम सारा खजाना मांगेंगे।


वो सेठ व्‍यापारी रजवारे, दस लाख तो हम हैं दस करोड। 

ये कब तक अमरीका से, जीने का सहारा मांगेंगे।


जो खून बहे जो बाग उजडे जो गीत दिलों में कत्‍ल हुए,

हर कतरे का हर गुंचे का, हर गीत का बदला मांगेंगे।


जब सब सीधा हो जाएगाए जब सब झगडे मिट जायेंगेए

हम मेहनत से उपजायेंगेए बस बांट बराबर खायेंगे।


हम मेहनतकश जग वालों से जब अपना हिस्‍सा मांगेंगे। 

इक खेत नहीं, इक देश नही, हम सारी दुनिया मांगेंगे।

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