लिख दिया अपने दर पे - नुसरत
शेर-
लज़्ज़त-ए-इंतज़ार लेता हूँ
शब-ए-ग़म गुज़ार लेता हूँ
जब भी डसती है मुझको तनहाई
नाम तेरा पुकार लेता हूँ
शेर-
कोई हांसे तो तुझे गम लगे , हँसी न लगे
के दिल्लगी भी तेरे दिल को दिल्लगी न लगे
तू रोज़ रोया करे उठ के चाँद रातों में
खुदा करे तेरा मेरे बगैर जी न लगे
शेर-
क्या मेरी बात का यकीन नहीं
कोई भी आपसा हसीन नहीं
बेझिझक दिल में तुम चले आओ
इस मकान में कोई मकीन नहीं
शेर-
आप आएं गरीबखाने पर
सच तोह ये है मुझे यकीन नहीं
आपके रूह-ए-यासमीन की कसम
चाँद भीं इस कदर हसीन नहीं
शेर-
वीरानी-ए-गुमान को अकीदत से सेंच कर
शादाब ये हयात का सामां बना दिया
दुनिया तेरे वजूद को करती रही तलाश
हमने तेरे ख्याल को यज़दा बना दिया
शेर-
हुस्न वाले वफ़ा नहीं करते
इश्क वाले जफ़ा नहीं करते
जुल्म करना तो इनकी आदत है
ये किसी का भला नहीं करते
लिख दिया अपने दर पे किसी ने
इस जगह प्यार करना मना है
प्यार अगर हो भी जाए किसी को
इसका इज़हार करना मना है
उनकी महफ़िल में जब कोई जाए
पहले नज़रें वो अपनी झुकाए
वो सनम जो खुदा बन गये हैं
उनका दीदार करना मना है
जाग उठेंगे तो आहें भरेंगे
हुस्न वालों को रुसवा करेंगे
सो गये हैं जो फ़ुर्क़त के मारे
उनको बेदार करना मना है
हमने की अर्ज़-ऐ-बंदा परवर
क्यूँ सितम ढा रहे हो ये हम पर
बात सुन कर हमारी वो बोले
हमसे तकरार करना मना है
सामने जो खुला है झरोखा
खा न जाना कभी उनका धोखा
अब भी अपने लिए उस गली में
शौक-ए-दीदार करना मना है
लिख दिया अपने दर पे किसी ने
इस जगह प्यार करना मना है
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