चेहरे नहीं, समाज को बदलो

चेहरे नहीं समाज को बदलो
सरगम 

जुल्म का निज़ाम, जुल्म का निज़ाम कब बदलेगा

नि  ध, ध , प मे  रे, रे रे सां नि , प   ध   नि  ध  ध 

तुम बदलोगे तब बदलेगा

ध नि  रें   रें  रें नि , प   ध   नि    ध  ध 

कह गयी बुझती शमां यारों, हिम्मत न हार सब बदलेगा।

ध नि  ध, ध , प मे  रे, रे रे सां नि , प   ध   नि  ध  ध 



धुन -ग  प  ध  नि  ध,  नि  ध  प , ग   प  ध  नि  ध


लूट-खसूट के राज को बदलो

ध़  ऩि ध़ ध़, ऩि ध़ ध़, ऩि  रे  ऩि ध़ ध़  प़ 

चेहरे नहीं समाज को बदलो

नि  नि  नि रें   रें   नि  ध  ध ध 



तूने चोर-लुटेरे साथ मिलाये

ध ध  नि  ध ध  नि  ध ध  नि  ध  ग  नि  

तब्दीली के थे बस नारे

नि   नि   नि   रें  रें   नि  ध ध

अब हम मैदान में उतरे हैं

गं रें गं रें  रें   नि  ध  नि ध ध 

नया समाज बनायेंगे

गं रें गं रें  रें   नि  ध  नि ध ध 

बगावत के ऐलानों को,

गं रें गं रें  रें   नि  ध  नि ध ध 

गली-गली पहुंचायेंगे,

गं रें गं रें  रें   नि  ध  नि ध ध 

गुलामी ग़र मिटानी है 

गं गं मं गं गं मं गं गं गं गं 

तो ये मंसूर हमारा है।

गं  रें  गं रें  रें   नि  ध  नि ध ध म 


गुलामी के मिजाज को बदलो,

नि ध ध नि ध ध नि रें नि ध ध प 

चेहरे नहीं समाज को बदलो

नि  नि  नि रें   रें   नि  ध  ध ध 

 ..... 

चेहरे नहीं समाज को बदलो (CHORDS)

(Em)जुल्म का निज़ाम (D) .... (A)
(Dm)जुल्म का निज़ाम कब बद(Em)लेगा,
 (F)तुम बदलो(Dm)गे तब बद(Em)लेगा

(Em)कह गयी बुझती (D) शमां (A)यारों 
 (Dm)हिम्मत न हार सब (A)बदलेगा।

TUNE- Em... Dm ...... Em

(E)लूट-खसूट के राज को (Dm)बदलो,
(E)लूट-खसूट के राज को (Dm)बदलो,
(F)चेहरे नहीं (E)समाज को बदलो।

(E)तूने चोर-लुटेरे साथ (F)मिलाये,
(Dm)तब्दीली के (E)थे बस नारे
(E)अब हम मैदान में उतरे हैं,
(E)नया समाज बनायेंगे,
(E)बगावत के ऐलानों को, 
(E)गली-गली पहुंचायेंगे,
(Em)गुलामी ग़र मिटानी है
 (E)तो ये मंसूर हमारा (F) है।

(E)गुलामी के मिजाज को (Dm)बदलो, 
(F)चेहरे नहीं (E) समाज को बदलो।

चेहरे नहीं समाज को बदलो (LYRICS)

जुल्म का निज़ाम कब बदलेगा,
 तुम बदलोगे तब बदलेगा
कह गयी बुझती शमां यारों
 हिम्मत न हार सब बदलेगा।

लूट-खसूट के राज को बदलो,
चेहरे नहीं समाज को बदलो।

तूने चोर-लुटेरे साथ मिलाये,
तब्दीली के थे बस नारे
अब हम मैदान में उतरे हैं,
नया समाज बनायेंगे,
बगावत के ऐलानों को, 
गली-गली पहुंचायेंगे,
गुलामी ग़र मिटानी है
 तो ये मंसूर हमारा है।

गुलामी के मिजाज को बदलो, 
चेहरे नहीं समाज को बदलो।

अज़ब था ये दौर तरक्की का,
मेरे सर से कच्ची छत भी गयी,
माओं के जवां बेटे भी गये,
उम्मीद की बुझती शमां भी गयी,
पर बुझती शमां के रखवाले,
शोला बन कर फिर उभरे हैं,
और इनकी तपिश से मक्तल में,
अंगार फटेगा भगदड़ में,
कल जैर-ए-खंजर आये तो,
कल की कल देखी जायेगी।

तुम ऐसा करो, तुम आज को बदलो
चेहरे नहीं समाज को बदलो।

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