दस्तूर


दस्तूर (सरगम )

दीप जिस का महल्लात ही में जले

ग ग रे ग, रे रे ग, सा सा रे रे, सा सा

चंद लोगों की खुशियों को ले कर चले

ग ग रे ग, रे रे ग, सा सा रे रे, सा सा

वो जो साए में हर मस्लहत के पले

सा रे प प मे प, प प म म ग ग

ऐसे दस्तूर को

सा सा प प, रे

सुब्ह-ए-बे-नूर को

रे रे म म, सा

मैं नहीं मानता मैं नहीं जानता

सा सा प प, रे, म ग रे, ग रे सा

(बाकी सभी अंतरे इसी सरगम पर........) 


     दस्तूर (CHORDS) 
    
दीप(E)जिस का महल्लात ही में जले

चंद(E) लोगों की खुशियों को ले कर चले
                                        
वो(E) जो साए में हर मस्ल(A)हत के (E)पले

ऐ(E)से दस्तूर (B)को सुब्ह-ए-(A)बे-नूर (E)को
                             
मैं(E) नहीं मान(B)ता मैं (A)नहीं जान(E)ता

(REST WITH SAME CHORD PATTERN)

दस्तूर बोल / DASTOOR LYRICS

दीप जिस का महल्लात ही में जले
चंद लोगों की खुशियों को ले कर चले
वो जो साए में हर मस्लहत के पले
ऐसे दस्तूर को सुब्ह-ए-बे-नूर को
मैं नहीं मानता मैं नहीं जानता

मैं भी ख़ाइफ नहीं तख़्ता-ए-दार से
मैं भी मंसूर हूँ कह दो अग्यार से
क्यूँ डराते हो जिंदाँ की दीवार से
जुल्म की बात को जहल की रात को
मैं नहीं मानता मैं नहीं जानता

फूल शाख़ों पे खिलने लगे तुम कहो
जाम रिंदों को मिलने लगे तुम कहो
चाक सीनों के सिलने लगे तुम कहो
इस खुले झूट को जेहन की लूट को
मैं नहीं मानता मैं नहीं जानता


तुम ने लूटा है सदियों हमारा सुकूँ
अब न हम पर चलेगा तुम्हारा फुसूँ
चारागर दर्दमंदों के बनते हो क्यूँ
तुम नहीं चारागर कोई माने मगर
मैं नहीं मानता मैं नहीं जानता 

                                            - हबीब जालिब 



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