कभी यहाँ तुम्हें ढूँढा,
कभी वहाँ पहुँचा
तुम्हारी दीद की ख़ातिर कहाँ-कहाँ पहुँचा
ग़रीब मिट गए, पामाल हो गए लेकिन
किसी तलक न तेरा आज तक निशां पहुँचा
हो भी नहीं और, हर जा हो
हो भी नहीं और, हर जा हो
तुम इक गोरख धन्दा हो!
शेर-
हर ज़र्रे में किस शान से तू जल्वा-नुमा है
हैरां है मगर अक़्ल के कैसा है तू, क्या है?
तुम इक गोरख धन्दा हो!
शेर-
तुझे दैर-ओ-हरम में मैंने ढूँढा तू नहीं मिलता
मगर तशरीग-फ़र्मा तुझे अपने दिल में देखा है!
तुम इक गोरख धन्दा हो!
शेर-
ढूँढे नहीं मिले हो, न ढूँढे से कहीं तुम
और फिर ये तमाशा है जहाँ हम हैं वहीं तुम!
तुम इक गोरख धन्दा हो!
शेर-
जब बजुज़ तेरे कोई दूसरा मौजूद नहीं
फिर समझ में नहीं आता तेरा पर्दा करना!
तुम इक गोरख धन्दा हो!
शेर-
हरम ओ दैर मैं है जलवा-ए-पुर फन तेरा
दो घरों का है चराग इक रुख-ए-रौशन तेरा
तुम इक गोरख धन्दा हो!
जो उलफत में तुम्हारी खो गया है,
उसी खोए हुए को कुछ मिला है,
ना बुतखाने, ना काबे में मिला है,
मगर टूटे हुए दिल में मिला है,
अदम बन कर कहीं तू छुप गया है,
कहीं तू हस्त बुन कर आ गया है,
नही है तू तो फिर इनकार कैसा ?
नफी भी तेरे होने का पता है ,
मैं जिस को कह रहा हूँ अपनी हस्ती,
अगर वो तू नही तो और क्या है ?
नही आया ख़यालों में अगर तू,
तो फिर मैं कैसे समझा तू खुदा है ?
तुम एक गोरखधंधा हो
शेर-
हैरां हूँ इस बात पे तुम कौन हो क्या हो?
हाथ आओ तो बुत, हाथ न आओ तो ख़ुदा हो!
तुम इक गोरख धन्दा हो!
शेर-
अक़्ल में जो घिर गया ल-इन्तहा क्योंकर हुआ?
जो समझ में आ गया फिर वो ख़ुदा क्योंकर हुआ?
तुम इक गोरख धन्दा हो!
शेर-
फलसफी को बेहेस के अंदर खुदा मिलता नहीं
डोर को सुलझा रहा है और सिरा मिलता नहीं
शेर-
पता यूं तो बता देते हो सब को ला- मकान अपना
ताज़्जुब है मगर रहते हो तुम टूटे हुए दिल में
शेर-
जब के तुझ बिन नहीं कोई मौजूद
फिर ये हंगामा अय खुदा क्या है
छुपते नहीं हो सामने आते नहीं हो तुम
जल्वा दिखाके जल्वा दिखाते नहीं हो तुम
दैर-ओ-हरम के झगड़े मिटाते नहीं हो तुम
जो अस्ल बात है वो बताते नहीं हो तुम
हैरां हूँ मेरे दिल में समाए हो किस तरह?
हालांके दो जहाँ में समाते नहीं हो तुम!
ये माबाद-ओ-हरम, ये कलीसा, वो दैर क्यों?
हर्जाई हो जभी तो बताते नहीं हो तुम!
तुम इक गोरख धन्दा हो!
दिल पे हैरत ने अजब रँग जमा रखा है!
एक उलझी हुई तसवीर बना रखा है!
कुछ समझ में नहीं आता के ये चक्कर क्या है
खेल क्या तुमने अज़ल से ये रचा रखा है!
रूह को जिस्म के पिंजरे का बनाकर कैदी
उसपे फिर मौत का पहरा भी बिठा रखा है!
दे के तब्दीर के पंछी को उड़ाने तुमने
दाम- ए तक़दीर में हर संत बिछा रखा है
कर के अराईशें कौनेन की बरसों तुमने
खत्म करने का भी मंसूबा बना रखा है
ला-मकानी का बहर-हाल है दावा भी तुमहें
नहनू अखरब का भी पैग़ाम सुना रखा है
ये बुराई, वो भलाई, ये जहन्नुम, वो बहिश्त
इस उलट-फेर में फ़र्माओ तो क्या रखा है?
जुर्म आदम ने किया और सज़ा बेटों को,
अदल-ओ-इंसाफ़ का मेआर भी क्या रखा है?
दे के इंसान को दुनिया में खलाफत अपनी,
इक तमाशा सा ज़माने में बना रखा है
अपनी पहचान की खातिर है बनाया सब को,
सब की नज़रों से मगर खुद को छुपा रखा है
तुम एक गोरखधंधा हो
नित नये नक़्श बनाते हो, मिटा देते हो,
जाने किस ज़ुर्म-ए-तमन्ना की सज़ा देते हो?
कभी कंकड़ को बना देते हो हीरे की कनी ,
कभी हीरों को भी मिट्टी में मिला देते हो
ज़िंदगी कितने ही मुर्दों को अदा की जिसने,
वो मसीहा भी सलीबों पे सज़ा देते हो
ख्वाइश-ए-दीद जो कर बैठे सर-ए-तूर कोई,
तूर ही बर्क- ए- तजल्ली से जला देते हो
नार-ए-नमरूद में डलवाते हो खुद अपना ख़लील,
खुद ही फिर नार को गुलज़ार बना देते हो
चाह-ए-किनान में फैंको कभी माह-ए-किनान,
नूर याक़ूब की आँखों का बुझा देते हो
दे के युसुफ को कभी मिस्र के बाज़ारों में,
आख़िरकार शाह-ए-मिस्र बना देते हो
जज़्ब -ओ- मस्ती की जो मंज़िल पे पहुचता है कोई,
बैठ कर दिल में अनलहक़ की सज़ा देते हो ,
खुद ही लगवाते हो फिर कुफ्र के फ़तवे उस पर,
खुद ही मंसूर को सूली पे चढ़ा देते हो
अपनी हस्ती भी वो इक रोज़ गवा बैठता है,
अपने दर्शन की लगन जिस को लगा देते हो
कोई रांझा जो कभी खोज में निकले तुमको,
तुम उसे झन्ग के बेले में रुला देते हो
ज़ुस्त्जु ले के तुम्हारी जो चले कैश कोई,
उस को मजनू किसी लैला का बना देते हो
जोत सस्सी के अगर मन में तुम्हारी जागे,
तुम उसे तपते हुए थल में जला देते हो
सोहनी गर तुम को महिंवाल तसवउर कर ले,
उस को बिखरी हुई लहरों में बहा देते हो
खुद जो चाहो तो सर-ए-अर्श बुला कर महबूब,
एक ही रात में मेराज करा देते हो
तुम एक गोरखधंधा हो
आप ही अपना पर्दा हो
तुम इक गोरख धंधा हो
जो कहता हूँ माना तुम्हें लगता है बुरा सा
फिर भी है मुझे तुमसे बहर-हाल ग़िला सा
चुप चाप रहे देखते तुम अर्श-ए-बरीन पर,
तपते हुए करबल में मोहम्मद का नवासा,
किस तरह पिलाता था लहू अपना वफ़ा को,
खुद तीन दिनो से वो अगरचे था प्यासा
दुश्मन तो बहर- हाल थे दुश्मन मगर अफ़सोस,
तुम ने भी फराहम ना किया पानी ज़रा सा
हर ज़ुल्म की तौफ़ीक़ है ज़ालिम की विरासत,
मज़लूम के हिस्से में तसल्ली ना दिलासा
कल ताज सजा देखा था जिस शक़्स के सिर पर,
है आज उसी शक़्स क हाथों में ही कासा,
यह क्या है अगर पूछूँ तो कहते हो जवाबन,
इस राज़ से हो सकता नही कोई शनासा
तुम एक गोरखधंधा हो
हैरत की इक दुनिया हो
तुम इक गोरख धंधा हो
शेर-
हर एक जा पे हो लेकिन पता नहीं मालूम
तुम्हारा नाम सुना है निशान नहीं मालूम
दिल से अरमान जो निकल जाए तो जुगनू हो जाए
और आंखों में सिमट आए तो आंसू हो जाए
जाप या हू का जो बेहू करे हू में खोकर
उसको सुल्तानिया मिल जाए वो बाहू हो जाए
बाल बिका ना किसी का हो छुरी के नीचे
हल्क ए असघर में कभी तीर तराजू हो जाए
तुम इक गोरख धंधा हो
राह-ए-तहक़ीक़ में हर ग़ाम पे उलझन देखूँ वही हालात-ओ-खयालात में अनबन देखूँ
बनके रह जाता हूँ तसवीर परेशानी की
ग़ौर से जब भी कभी दुनिया का दर्पन देखूँ
एक ही ख़ाक़ पे फ़ित्रत के तजादात इतने!
इतने हिस्सों में बँटा एक हीती हुई पत्झड़ का समा
कहीं रहमत के बरसते हुए सावन देखूँ
कहीं फुँकारते दरिया, कहीं खामोश पहाड़!
कहीं जंगल, कहीं सहरा, कहीं गुलशन देखूँ
ख़ून रुलाता है ये तक़्सीम का अन्दाज़ मुझे
कोई धनवान यहाँ पर कोई निर्धन देखूँ
दिन के हाथों में फ़क़त एक सुलग़ता सूरज
रात की माँग सितारों से मुज़ईय्यन देखूँ
कहीं मुरझाए हुए फूल हैं सच्चाई के
और कहीं झूठ के काँटों पे भी जोबन देखूँ!
शम्स की खाल कहीं खींचती नजर आती है
कहीं सरमद की उतरती हुई गर्दन देखूं
रात क्या शय है, सवेरा क्या है?
ये उजाला, ये अंधेरा क्या है?
मैं भी नायिब हूँ तुम्हारा आख़िर
क्यों ये कहते हो के "तेरा क्या है?"
तुम इक गोरख धन्दा हो!
मस्जिद मन्दिर ये मयखाने
कोई ये माने कोई वो माने
सब तेरे हैं जाना काशाने
कोई ये माने कोई वो माने
इक होने का तेरे काइल है
इनकार पे कोई माइल है
असलियत तेरी तू जाने
कोई ये माने कोई वो माने
इक खल्क में शामिल करता है
इक सबसे अकेला रहता है
हैं दोनों तेरे मस्ताने
कोई ये माने कोई वो माने
सब हैं जब आशिक़ तुम्हारे नाम के
क्यूं ये झगड़े हैं रहीम-ओ-राम के
तुम इक गोरख धंधा हो
दैर में तू हरम में तू
अर्श पे तू ज़मीन पे तू
जिस की पहुंच जहां तलक
उसके लिए वहीं पे तू
तुम इक गोरख धंधा हो
हर इक रंग में यक्ता हो
तुम इक गोरख धंधा हो
मरकज ए जुस्तजू
आलम-ए-रंग-ओ-बू
दम बा दम जलवा गर
तू ही तू चार सू
हू के माहौल में
कुछ नहीं इल्ला हू
तुम बहुत दिलरुबा
तुम बहुत खूबरू
अर्श की अस्मतें
फर्श की आबरू
तुम हो कोनेन का
हासिल ए आरज़ू
आंख ने कर लिया
आंसूओं से वजू
अब तो कर दो अता
दीद का इक सुबू
आओ पर्दे से तुम
आंख के रूबरू
चंद लम्हें मिलन
दो घड़ी गुफ्तगू
नाज़ जप्ता फिरे
जा ब जा कू ब कू
वाह दा हू वाह दा हू
ला शरीका लहू
अल्लाह हू
अल्ला हू