प्रवाह कल्चरल टीम पर्चा

प्रवाह कल्चरल टीम पर्चा

समाज में आए किसी भी तरह के आर्थिक बदलाव का असर उस समाज में रहने वाले लोगों की संस्कृति पर पड़ता है। चाहे वह अंग्रेज़ों का भारत की आज़ादी के 200 साल पहले भारत को गुलाम बनाना हो या 1990 से लेकर अब तक भूमंडलीकरण की नीतियों द्वारा देश को कंगाल करना हो , ऐसे सभी बदलावों का असर साहित्य व  कलाओं पर पड़ना लाज़मी है।

आज भारत की बहुतायत जनता गरीबी की मार झेल रही है । देश में लगातार बढ़ती किसान आत्म-हत्याएं, मजदूरों की दिन-ब-दिन बदतर होते हालात, नौजवानों के बीच बढ़ती बेरोजगारी, महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराध आदि सभी समस्याएं कम होने का नाम नहीं ले रही ।आज बहुत सी ताकतें हैं जो नए समाज के लिए संघर्षरत दिखाई पड़तीं हैं  लेकिन जब तक संगठित प्रयास नहीं होंगे तब तक इन सभी समस्याओं से छुटकारा पाना मुश्किल प्रतीत होता है।

हम अपने संघर्षों को तेज करने के लिए अनेकों सांस्कृतिक कार्यवाहियों का  बेहतर से बेहतर प्रयोग कर सकते हैं। गायकी, नुक्कड़ नाटक, कविता पाठ, स्टेज प्ले आदि कलात्मक तरीकों से हम अपनी बातों को लोगों के बीच बहुत रोचक व सृजनात्मक अंदाज़ से  पेश कर सकते हैं।

पिछले हो चुके सभी जन-आंदोलनों, महिला आंदोलनों , छात्र व किसान आंदोलनों से अनेकों गीतों व नाटकों  को जन्म हुआ।आज हर एक संस्कृतिकर्मी को ज़रुरत है की वो इस धरोहर को अपनाये और इसको और ज्यादा  परिपक़्व   बनाके नए समाज को लाने में अपनी सक्रीय भूमिका अदा करे।


उद्देश्य-
  • आज के समाज की पतनशील संस्कृति के विकल्प में अवाम को प्रगतिशील संस्कृति से अवगत  कराना।  
  • प्रगतिशील जनकवियों, लेखकों व नाटककारों की रचनाओं को गीत, नुक्कड़ नाटक तथा अन्य सांस्कृतिक माध्यमों  के रूप में प्रस्तुत करना। 
  • संघर्ष के व नई सुबह के गीतों, नाटकों और कविताओं को प्रस्तुत करना। 
  • क्षेत्रीय भाषा के प्रगतिशील गीतों को गाना।  

आवाहन-

हम सभी जोश से भरे नौजवानों व आजादपसन्द लोगों से आवाहन करतें हैं की वो कला के महत्व को समझें और अपने-अपने  इलाके में अपने साथियों के साथ मिलकर एक सांस्कृतिक टीम बनाएं  व देश में चल रहें संघर्षों को इक नई दिशा दें। 



  

No comments:

Post a Comment