अकबर इलाहबादी (16 नवंबर 1846 - 15 फरवरी 1921)

"वो इश्क़ क्या जो न हो हादी-ए-तरीके-कमाल
जो अकल को न बढ़ाये वो शाइरी क्या है"
अकबर का जन्म अलाहबाद जिले के बारा में, उत्तर प्रदेश में हुआ। इनका साहित्य जगत में महत्वपूर्ण योगदान रहा। उर्दू के साथ-साथ अरबी, फ़ारसी, अंग्रेजी, का प्रयोग कर उन्होनें उर्दू में इक नई जान फूक दी।
वे अदालत में सेसन जज थे और इसी वजह से उन्होनें समाज के सभी रंग करीब से देखे थे । उन्होनें अपने समय में यह साफ़ तौर पर समझ लिया था कि हिन्दू - मुस्लमान अदि सारे फसाद और झगड़े अंग्रेज़ों ने अपना उल्लू सीधा करने के लिए किए हैं। उन्होनें लिखा-
"यह बात गलत कि मुल्के इस्लाम है हिन्द
यह झूठ कि मुल्के लछमन-ओ-राम है हिन्द
हम सब हैं मुति-ओ-खैर-ख़्वाहे-इंग्लिश
यूरोप के लिए बस एक गोदाम है हिन्द "
('मुति-ओ-खैर-ख़्वाहे-इंग्लिश'- अंग्रेजों के शुभचिंतक और नौकर)
अपने समय के बिके हुए अख़बारों पर अकबर ने क्या खूब लिखा था -
"खींचों न कमानों को न तलवार निकालो
जब तोप मुक़ाबिल हो तो अखबार निकालो"
पार्टियों व नेताओं का बड़े व्यापारियों से चंदा लेना और जनता के दुःख-दर्द सबको दर किनार कर, सिर्फ चाटूकारी करने पर अकबर लिखते हैं-
"कहते हैं हमको जो चंदा दे मुहज्जब है वही
उसके अफआल से मतलब है न आदात से काम"
('मुहज्ज़ब'-सभ्य; 'अफआल'-कर्मों; 'आदात'-आदत)
'तुम एक गोरख धंधा हो ' शायरी में भी इनके शेरों का इस्तेमाल हुआ है।
इस प्रकार व्यंग्यात्मक शैली के अव्वल फनकार का देहांत 15 फरवरी 1921 को हुआ।

"वो इश्क़ क्या जो न हो हादी-ए-तरीके-कमाल
जो अकल को न बढ़ाये वो शाइरी क्या है"
अकबर का जन्म अलाहबाद जिले के बारा में, उत्तर प्रदेश में हुआ। इनका साहित्य जगत में महत्वपूर्ण योगदान रहा। उर्दू के साथ-साथ अरबी, फ़ारसी, अंग्रेजी, का प्रयोग कर उन्होनें उर्दू में इक नई जान फूक दी।
वे अदालत में सेसन जज थे और इसी वजह से उन्होनें समाज के सभी रंग करीब से देखे थे । उन्होनें अपने समय में यह साफ़ तौर पर समझ लिया था कि हिन्दू - मुस्लमान अदि सारे फसाद और झगड़े अंग्रेज़ों ने अपना उल्लू सीधा करने के लिए किए हैं। उन्होनें लिखा-
"यह बात गलत कि मुल्के इस्लाम है हिन्द
यह झूठ कि मुल्के लछमन-ओ-राम है हिन्द
हम सब हैं मुति-ओ-खैर-ख़्वाहे-इंग्लिश
यूरोप के लिए बस एक गोदाम है हिन्द "
('मुति-ओ-खैर-ख़्वाहे-इंग्लिश'- अंग्रेजों के शुभचिंतक और नौकर)
अपने समय के बिके हुए अख़बारों पर अकबर ने क्या खूब लिखा था -
"खींचों न कमानों को न तलवार निकालो
जब तोप मुक़ाबिल हो तो अखबार निकालो"
पार्टियों व नेताओं का बड़े व्यापारियों से चंदा लेना और जनता के दुःख-दर्द सबको दर किनार कर, सिर्फ चाटूकारी करने पर अकबर लिखते हैं-
"कहते हैं हमको जो चंदा दे मुहज्जब है वही
उसके अफआल से मतलब है न आदात से काम"
('मुहज्ज़ब'-सभ्य; 'अफआल'-कर्मों; 'आदात'-आदत)
'तुम एक गोरख धंधा हो ' शायरी में भी इनके शेरों का इस्तेमाल हुआ है।
इस प्रकार व्यंग्यात्मक शैली के अव्वल फनकार का देहांत 15 फरवरी 1921 को हुआ।
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