आप बैठें है बाली पे मेरी - नुसरत
शेर-
देखकर आपकी जवानी को
आरजू -ए-शराब होती है
रोज़ तौबा को तोड़ता हूँ मगर
रोज़ नीयत खराब होती है
आपके वास्ते गुनाह ही सही
हम पीएं तो सवाब बनती है
सौ ग़मों को निचोड़ने के बाद
एक कतरा शराब बनती है
शेर-
तुलू-ए-सुबह तेरे रुख की बात होने लगी
तुम्हारी ज़ुल्फ़ जो बिखरी रात होने लगी
तुम्हारी मस्त नज़र का खुमार क्या कहना
नशे में गर्क सभी कायेनात होने लगी
शेर-
जा तल्ख़ शैख़ की ज़िंदगानी गुज़री
इक शब न बेचारे की सुहानी गुज़री
दोजख के तसव्वुर में बुढ़ापा गुजरा
जन्नत के तसव्वुर में जवानी गुजरी
शेर-
मयपरस्ती मेरी इबादत है
मैं कभी बेवुज़ून नहीं पीता
मैं शराबी सही मगर जाहिद
आदमी का लहू नहीं पीता
शेर-
सर जिस पे न झुक जाये उसे दर नहीं कहते
हर दर पे जो झुक जाये उसे सर नहीं कहते
क्या तुझको जहां वाले सितमगर नहीं कहते
कहते तो हैं लेकिन तेरे मूँह पर नहीं कहते
काबे में हर इक सजदे को कहते हैं इबादत
मयखाने में हर जाम को सागर नहीं कहते
काबे में हर मुसलमान को भी कह देते हैं काफिर
मयखाने में काफिर को भी काफिर नहीं कहते
शेर-
साकी ने मस्त-ए-नरगिस से मस्ताना कर दिया
ऐसी पिलाई आज के दीवाना कर दिया
अर्ज़-ओ-समा को सागिर-ए-पैमाना कर दिया
रिंदों ने कायनात को मयखाना कर दिया
बदमस्त बरगोबार ने पीना सीखा दिया
बहकी हुई बहार ने पीना सीखा दिया
पीता हूँ इसलिए मुझे जीना है चार दिन
मरने के इंतजार ने पीना सीखा दिया
आप बैठें हैं बाली पे मेरी
मौत का ज़ोर चलता नहीं हैं
मौत मुझको गवारा है लेकिन
क्या करूं दम निकलता नहीं है
ये अदा ये नज़ाकत बरासिल
मेरा दिल तुम पे कुर्बान लेकिन
क्या संभालोगे तुम मेरे दिल को
जब यें आँचल संभलता नहीं है
मेरे नालों की सुनकर ज़ुबाने
हो गई मोम कितनी चट्टानें
मैंने पिगला दिया पत्थरों को
इक तेरा दिल पिघलता नहीं है
शेख जी की नसीयत भी अच्छी
बात वाइज़ की भी खूब लेकिन
जब भी छातीं हैं काली घटाएं
बिन पीये काम चलता नहीं हैं
देखले मेरी मैयत का मंज़र
लोग कांधा बदलते चले हैं
इक तेरी भी डोली चली है
कोई कांधा बदलता नहीं है
मयकदे के सभी पीनेवाले
लड़खड़ाकर सँभलते है लेकिन
तेरी नज़रों का जो जाम पी ले
उम्र भर वो संभलता नहीं है
आप बैठें हैं बाली पे मेरी
मौत का ज़ोर चलता नहीं हैं
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