तुम्हें दिल्लगी भूल जानी पड़ेगी - नुसरत
तुम्हें दिल्लगी भूल जानी पड़ेगी
मोहब्बत की राहों में आकर तो देखो
तड़पने पे मेरे न फिर तुम हसोगे
कभी तो किसीसे दिल लगाकर तो देखो
शेर-
होटों के पास आए हंसी क्या मजाल है
दिल का मुआमला है कोई दिल्लगी नहीं
शेर-
जख्म पे जख्म खाके जी
अपने लहू के घूंट पी
आह न कर
लबों को सी
इश्क है ये दिल्लगी नहीं
शेर-
कुछ खेल नहीं है इश्क की लाग
पानी न समझ ये आग है आग
शेर-
खून रुलाएगी दिल्लगी दिल की
खेल समझो न दिल्लगी दिल की
शेर-
ये इश्क नहीं आसान
बस इतना समझ लीजिये
एक आग का दरिया है
और डूब के जाना है
वफाओं की हमसे तवक़्क़ोह नहीं है
मगर एक बार आज़मां कर तो देखो
ज़माने को अपना बना कर तो देखा
हमें भी तुम अपना बनाकर तो देखो
खुदा के लिए छोड़ दो ये अब पर्दा
के है आज हम तुम नहीं गैर कोई
शब्-ऐ- वसल भी है हिजाब इस कदर क्यूँ
ज़रा रुख से आँचल उठा कर तो देखो
शेर-
रुख से नकाब उठा के बड़ी देर हो गई
माहौल को तिलावत-ए-क़ुरआन किये हुए
शेर-
हम न समझे तेरी नज़रों का तकाज़ा क्या है
कभी पर्दा कभी जलवा ये तमाशा क्या है
शेर-
जानेजां हमसे ये उलझन नहीं देखी जाती
जफ़ाएं बहुत की बहुत ज़ुल्म ढाए
कभी एक निगाह-ए-करम इस तरफ भी
हमेशा हुए देख कर मुझको बरहम
किसी दिन ज़रा मुस्कुराकर तोह देखो
जो उल्फत में हर इक सितम है ग़वारा
ये सब कुछ है पास-ए-वफ़ा तुमसे वरना
सताते हो दिन रात जिस तरह मुझको
किसी गैर को यूं सता कर तो देखो
अगर जे किसी बात पर वो खफा हैं
तो अच्छा यही है तुम अपनी सी कर लो
वो माने न मानें ये मर्ज़ी है उनकी
मगर उनको पुरनम मनाकर तो देखो
तुम्हें दिल्लगी भूल जानी पड़ेगी
मोहब्बत की राहों में आकर तो देखो
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