सोचता हूँ की वो कितने मासूम- नुसरत
शेर -
जाने वाले हमारी महफ़िल से
चाँद तारों को साथ लेता जा
हम खिजां से निभा करलेंगे
तू बहारों को साथ लेता जा
शेर-
अच्छी सूरत को सवरने की ज़रुरत क्या है
सादगी में भी कयामत की अदा होती है
तुम जो आजाते हो मस्जिद में अदा करने नवाज़
तुम को मालूम है कितनों की क़ज़ा होती है
शेर-
कोई हांसे तोह तुझे गम लगे हंसी न लगे
के दिल्लगी भी तेरे दिल को दिल्लगी न लगे
तू रोज़ रोया करे उठ के चाँद रातों में
खुदा करे तेरा मेरे बगैर जी न लगे
शेर-
तनहाई में फ़रियाद तो कर सकता हूँ
वीराने को आबाद तो कर सकता हूँ
जब चाहूँ तुम्हें मिल नहीं सकता लेकिन
जब चाहूँ तुम्हें याद तो कर सकता हूँ
शेर-
कोई भी वक्त हो हँस कर गुजार लेता हूँ
खिजां के दौर में अहद-ए-बाहार लेता हूँ
गुलों से रंग सितारों से रौशनी लेकर
जमाल-ए-यार का नक्शा उतार लेता हूँ
शेर-
उसके नज़दीक गम-ऐ-तर्क-ऐ-वफ़ा कुछ भी नहीं
मुतमईन ऐसे है वो जैसे हुआ कुछ भी नहीं
अब तोह हातों से लकीरें भी मिटी जाती है
उसको खोकर मेरे पास रहा कुछ भी नहीं
शेर-
कल बिछड़ना है तो फिर अहद-ए-वफ़ा सोच के बाद
अभी आगाज़-ऐ-मोहब्बत है गया कुछ भी नहीं
मैं तो इस वास्ते चुप हूँ की तमाशा न बने
तू समझता है की मुझे तुझसे गिला कुछ भी नहीं
सोचता हूँ की वो कितने मासूम थे
क्या से क्या हो गए देखते देखते
मैंने पत्थर से जिनको बनाया सनम
वो खुदा हो गए देखते देखते
शेर-
जिन पत्थरों को हमनें अदा की थी धड़कनें
वोह बोलने लगे तो हमीं पर बरस पड़े देखो जी
शेर-
मेरे हाथों से तराशे हुए पत्थर के सनम
मेरे ही सामने भगवान बने बैठें हैं
हश्र है वहशते दिल की आवारगी
हमसे पूछो मोहब्बत की दीवानगी
वो पता पूछते थे किसी का कभी
लापता हो गए देखते देखते
हमसे ये सोच कर कोई वादा करो
एक वादे पे उमरें गुजर जायेंगी
ये है दुनिया यहाँ कितने अहल-ए-वफ़ा
बेवफा हो गए देखते देखते
शेर-
दिन छुप गया सूरज का कहीं नाम नहीं है
ओ वादा शिकन अब भी तेरी शाम नहीं है
ओ वादा शिकन, वादा शिकन ....
शेर-
शब-ऐ-वादा ये रहा करती हैं दिल से
देखें यार आता है पहले की क़ज़ा आती है
ओ वादा शिकन, वादा शिकन ....
शेर-
कल से बेकल हूँ भला ख़ाक मुझे कल आये
कल का वादा था न वो आज आए न वो कल आए
ओ वादा शिकन, वादा शिकन ....
शेर-
रोज का इंतज़ार कौन करे
आपका ऐतबार कौन करे
ओ वादा शिकन, वादा शिकन ....
शेर-
हो चूका वादा के कब आइयेगा
देखिए अब न भूल जाइएगा
ओ वादा शिकन, वादा शिकन ....
शेर-
भला कोई वादा खिलाफी की हद है
हिसाब अपने दिल में लगाकर तो सोचो
क़यामत का दिन आगया रफ्ता रफ्ता
मुलाकात का दिन बदलते बदलते
ओ वादा शिकन, वादा शिकन ....
हमसे ये सोच कर कोई वादा करो
एक वादे पे उमरें गुजर जायेंगी
ये है दुनिया यहाँ कितने अहल-ए-वफ़ा
बेवफा हो गए देखते देखते
गैर की बात तस्लीम क्या कीजिये
अब तो ख़ुद पे भी हमको भरोसा नही
अपना साया समझते थे जिनको कभी
वो जुदा हो गए देखते देखते
सोचता हूँ की वो कितने मासूम थे
क्या से क्या हो गए देखते देखते
.....
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