फिरूं ढूंढता मयकदा तौबा तौबा

फिरूं ढूंढता मयकदा तौबा तौबा - नुसरत 

शेर-
साकी की हर निगाह पे बल खाके पी गया 
लहरों से खेलता हुआ लहरा  के पी गया  
लहरा के ला,झूम के ला, मुस्कुरा के ला,
फूलों के रस में चाँद की किरणें मिलाके ला 
क्यों जा रहीं हैं रूठ के रंगीन ये बहार 
जा एक मरतबा इसे फिर वरगला के ला 
कहते हैं उम्र-ए-रफ़्ता कभी लौटती नहीं  
जा मयकदे से मेरी जवानी उठाके ला 

शेर-
ये जो दीवाने दो चार नज़र आते हैं 
इनमें कुछ साहिब-ए-असरार नजर आते हैं 
तेरी महफ़िल का भरम रखते है सो जाते हैं 
वरना ये लोग तो बेदार नज़र आते हैं 
मेरे दामन में तो काटों के सिवा कुछ भी नहीं 
आप फूलों के खरीददार नज़र आते हैं 
कल जिने छू नहीं सकती थी फरिश्तों की नज़र 
आज वो रौनक-ए -बाजार नज़र आते हैं  
हश्र में कौन गवाही मेरी देगा सागर 
सब तुम्हारे ही तरफ़दार नज़र आते हैं 

शेर-
कर रही है दर हकीकत काम साकी की नज़र
मयकदे में गर्दिश-ए-सागर पराये नाम है


फिरूं ढूंढता मयकदा तौबा तौबा 
मुझे आजकल इतनी फुरसत नहीं है
सलामत रहे तेरी आँखों की मस्ती
मुझे मयकशी की जरूरत नहीं है

ओ साकी तेरी आँखें,सलामत रहे,ओ साकी तेरी आँखें...

शेर-
ना गरज मुझे हरम से, न ख्याल-ए-मयकदा है 
मेरी ज़िन्दगी है तुमसे मुझे तुम से वास्ता है 

ओ साकी तेरी आँखें,सलामत रहे,ओ साकी तेरी आँखें...

शेर-
सुरूर चीज़ की बिकदार पर नहीं मौकूफ़
ये मुस्कुराती हुई चीज़ मुस्कुरा के पीला 
शराब कम है तो साकी नज़र मिला के पिला

ओ साकी तेरी आँखें,सलामत रहे,ओ साकी तेरी आँखें. 

शेर-
आँखें साकी की सलामत मेरे दुश्मन तरसें
दोहरे मयखाने हैं नीयत मेरी भरने के लिए

ओ साकी तेरी आँखें,सलामत रहे,ओ साकी तेरी आँखें.

जाम पर जाम पीने से क्या फ़ायदा
रात गुजरी तो सारी उतर जाएगी
तेरी नज़रों से पी है खुदा की कसम
उम्र सारी नशे में गुज़र जाएगी

ओ साकी तेरी आँखें,सलामत रहे,ओ साकी तेरी आँखें.

शेर-
खनकते जाम का मोहताज़ मैं नहीं साकी
तेरी निगाह सलामत मुझे कमी क्या है

ओ साकी तेरी आँखें,सलामत रहे,ओ साकी तेरी आँखें.

दिल उसका नमाज़ी बन जाये
आँख उसकी गुलाबी हो जाये
तू जिसको मुहब्बत से देखे
साकी वो शराबी हो जाये

सलामत रहे तेरी आँखों की मस्ती
मुझे मयकशी की जरूरत नहीं है

ये तर्क-ए-ताल्लुक का क्या तज़करा है
तुम्हारे सिवा कोई अपना नहीं है
अगर तुम कहो तो मैं खुद को भुला दूं
तुम्हे भूल जाने की ताकत नहीं है

हर एक मोड़ पर एक नयी मात खाई
रही दिल की दिल में जुबां तक न आई
किये हैं कुछ ऐसे करम दोस्तों ने
के अब दुश्मनों की जरूरत नहीं है

शेर-
अकल को रोग मार देते हैं
इश्क को सोग मार देते हैं
आदमी खुद ब खुद नहीं मरता
दूसरे लोग मार देते हैं

किये हैं कुछ ऐसे करम दोस्तों ने
के अब दुश्मनों की जरूरत नहीं है

हजारों तमन्नाएं होती हैं दिल में
हमारी तो बस एक तमन्ना यही है
मुझे एक दफा अपना कहके पुकारो
बस इसके सिवा को हसरत नहीं है

हमेशा मेरे सामने से गुज़ारना
निगाहें चुराकर मुझे देख लेना
मेरी जान तुम मुझको इतना बता दो
ये क्या चीज़ है गर मुहब्बत नहीं है

फिरूं ढूंढता मयकदा तौबा तौबा 
मुझे आजकल इतनी फुरसत नहीं है

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