नुक्कड़ नाटक (प्रवाह कल्चरल टीम )
नाटक का नाम :- हल्ला बोल
( नाटककार सफ़दर हाशमी जी के प्रसिद्ध नाटक हल्ला बोल से साभार )
एक पात्र नारे शुरू करता है। बाकी लोग बैनर व पोस्टर उठाएं जुलूस की शक्ल में उसके पीछे चलते हैं। और नारे लगाते हैं।
सूत्रधार – बोल रे साथी हल्ला बोल, हल्ला बोल- हल्ला बोल-2
गाना- "हर जोर जुल्म के टक्कर में संघर्ष हमारा नारा हैअभी तो यह अंगड़ाई है आगे और लड़ाई है। दम है कितना दमन में तेरे , देख लिया और देखेंगे। जगह है कितनी जेल में तेरे, देख लिया और देखेंगे"
[एक अभिनेता उठकर उनका रास्ता रोकता है। उसके सिर पर पुलिस कैप और हाथ में डंडा है।]
पुलिस- ठहरो ! ठहरो ! मैं कहता हूं चुप हो जाओ { सब चुप होते हैं। सूत्रधार पुलिस से बेखबर गाता रहता है। पुलिसवाला उसके पीछे चलता है।}
पुलिस- अबे सुना नहीं ? मैं क्या कह रहा हूं । अबे ओ क्रांतिकारी चुप हो जा। ऐसे नहीं मानेगा ( डंडा रसीद करता है ) क्या बे ये क्या हो रहा है?
सूत्रधार- ड्रामा कर रहे हैं।
पुलिस- डिरामा ! साले हमें उल्लू समझता है?
सूत्रधार- नहीं तो।
पुलिस- फिर?
सूत्रधार- फिर क्या?
सब- फिर क्या?
पुलिस- डिरामा ऐसे किया जाता है?( हाथ हिलाता है।) नारे लगा के तख्ठिया उठाकर हाथ में पोस्टर लेके । भागो यहां से सालो, नहीं तो सबको हवालात में डाल दूंगा।
सूत्रधार-( हंसता है) आप यकीन मानिए हम ड्रामा ही कर रहे हैं, आप पूछ लीजिए इन लोगों से। अरे हवलदार साहब हम सब कलाकार हैं प्रवाह कल्चरल टीम के कलाकार हैं।
सब- हां प्रवाह कल्चरल टीम।
[ सभी पात्र पुलिस वाले को समझाते हैं।
पुलिस- अच्छा, अच्छा, तो डिरामा कर रहे थे।
सब- जी हां।
पुलिस- तो करो, सवास। पर जरा बढ़िया सा|
सूत्रधार- तो आप एक तरफ हो जाइए। हम अभी शुरू करते हैं। चलो भाई( फिर नारा लगाओ) इंकलाब जिंदाबाद साम्राज्यवाद मुर्दाबाद जो अमेरिका का यार है वो देश का गद्दार है।
पुलिस- अरे-अरे ये क्या इंकलाब जिंदाबाद साम्राज्यवाद मुर्दाबाद जो अमेरिका का यार है, (का डिरामा कर डिरामा !)
सूत्रधार- हवलदार साहब यह भगत सिंह का नारा है। और हम भगत सिंह जयंती मना रहे हैं डिरामे में भगत सिंह का नारा तो होता ही है।
पुलिस- तुम्हारे डिरामें में होता होगा। हमारे इलाके में नहीं होता। देश में मंदी का माहौल है, एसएसओ साहब का डायरेक्ट ऑर्डर है , कि जो संगठन वगठन का नाम लेता देखें फौरन हवालात में डाल दो। बाद में पूछो कि क्या मांगता है।
सूत्रधार- पर हमारे ड्रामे में तो संगठन होगा ही भगत सिंह ने भी बोला है नौजवानों आगे आओ गली-गली संगठन बनाओ।
पुलिस- (चिल्लाता है) ना ! कौन भगत सिंह, बोला होगा? पर यहां ये सब नहीं चलेगा।
सूत्रधार- फिर?
पुलिस- फिर क्या?
सूत्रधार- फिर हम ड्रामा कैसे करें?
पुलिस- अबे जैसे डिरामा किया जाता है!.............. और कैसे?
कोई प्यार मोहब्बत का, आशिक महबूबा का खेल दिखाओ, कुछ नाच गाना हो, हंसी मजाक हो , कुछ ये हो, कुछ वो हो|.. क्या समझे?
सूत्रधार- समझ गया|
पुलिस- क्या?
सूत्रधार- आशिक महबूबा का नाटक?
पुलिस- हां।
सूत्रधार- नारे नहीं?
पुलिस- हां।
सूत्रधार- ना!
पुलिस- ना क्यों बे।
सूत्रधार- अरे साहब मंदी का दौर है हम ठहरे ग्रेजुएट छोरे और वह भी नौकरी नहीं, और नौकरी नहीं तो छोकरी नहीं इसलिए हमारे मंडली में छोरी नहीं तो आशिक माशूका का नाटक खेलें, तो कैसे ?
पुलिस- तो बना इन छोरो में से किसी को छोरी।
सूत्रधार- अच्छा ठीक है, जैसा आपका हुकुम। आपको आशिक माशूका वाला ही नाटक दिखाएंगे तो साथियों हवलदार साहब नारे वाला भगत सिंह का इंकलाबी नाटक तो करने की इजाजत देते नहीं, इसलिए हम आपको प्यार मोहब्बत का नाटक दिखाते हैं|
[ सारे पात्र आपस में बात करते हैं फिर इधर-उधर फैल जाते हैं संगीत शुरू होता है एक भाग में आशिक माशूका नाच खेलें रहे है]
कोरस- "दो दिल मिल रहे हैं, मगर चुपके-चुपके| हां सबको हो रही है, खबर चुपके चुपके……"(लय के साथ)
[ जोगी-पूजा आंख मिचौली खेलते हैं।]
जोगी(आशिक)- मैं आऊं?
पूजा(माशूका)- ना,ना!
जोगी- मैं आऊं?
पूजा- ना,ना!
जोगी- मैं आऊं।
पूजा- आजा।
जोगी- चुप चुप खड़े हो, जरूर कोई बात है| पहली मुलाकात है, जी पहली मुलाकात है….
कोरस- ए पकड़ी गई…
पूजा- जोगी$$$..
जोगी- हां पूजा
पूजा- तू पिताजी से कब बात करेगा?
जोगी- बस कुछ दिन और ठहर जा पूजा!
पूजा- क्यों? 2 साल तो हो गए हमें ग्रेजुएट हुए|
जोगी- पूजा तुम समझती क्यों नहीं, अभी मेरे पास नौकरी नहीं है, तुम्हें रखूंगा कैसे?
पूजा- पर तेरी नौकरी कब लगेगी, पहले तू कहता था कि आंदोलन के बाद कुछ पता चलेगा| मुझसे और इंतजार नहीं होता।
जोगी- देख पूजा, इतना बड़ा आंदोलन हुआ है, 13 लाख विद्यार्थी ने 7 दिन से एन एच 58, रेलवे लाइन जाम कर रखा है, राज्य सरकार काप उठी है, संघर्ष और तेज करने की जरूरत है केंद्र सरकार भी घुटने टेक देगी।
पूजा- सच्ची..?
जोगी- सच्ची!
पूजा- ईमान से!
जोगी- ईमान से!
पूजा- खा मेरी कसम!
जोगी- तेरी कसम!
पूजा- बाई गॉड!
जोगी- बाई गॉड!
पुलिस- अबे ओए, यह क्या हो रहा है, सालों प्यार मोहब्बत के नाटक में भी संगठन और आंदोलन का प्रचार शुरू कर दिया| ये सब नहीं चलेगा।
( पुलिस बोल के सामने खड़े हो जाते हैं)
सूत्रधार- ओ हो… हवलदार साहब, आप भी हद करते हैं अब हमारा हीरो बेरोजगार है, 7 दिन तक आंदोलन के झंडे तले इतनी बहादुरी से लड़ा है तो क्या आंदोलन का नाम नहीं लेगा। और आप किस किस का मुंह बंद करवाएंगे, आज तो हर बेरोजगार की जुबान पर नौकरी के आंदोलन का ही नाम है।
पुलिस- ना, हमारे इलाके में नहीं चलेगा।
सूत्रधार- मतलब?
पुलिस- मतलब यह कि हमारे इलाके के आशिक को आशिक की तरह रहना होगा, इधर उधर की हांकेगा तो साले को हवालात में डाल दूंगा।
सूत्रधार- ठीक है! हवलदार साहब आंदोलन का नाम नहीं लेगा, नौकरी की बात तो कर सकता है ?
पुलिस- अबे, यह आशिक है या भिखारी जो अपनी महबूबा से नौकरी की बात करता है, इसे कह की आशिकी करनी है, तो ठीक से करें और अगर नहीं होता तो मैं दिखाता हूं, कि इसक कैसे किया जाता हैं।
सूत्रधार- ना ना ना, आप तकलीफ ना करें! ओ कर लेगा। कर लेगा ना भाई?
जोगी- हां हां क्यों नहीं।
सूत्रधार- तो भाइयों बहनों! हम नाटक में थोड़ी परिवर्तन कर रहे हैं, यह तो हवलदार साहब की मेहरबानी से सेंसर हो गया है, चलो भाई! फिर से शुरू करो।
जोगी- हां पूजा
पूजा- तू, आज पिताजी से बात करेगा ना?
जोगी- हां पूजा, तुझे जुबान दी है, तो जरूर करूंगा।
पूजा- देख, घबराइओ नहीं, जरा डट के बात करियो जैसे क्रांतिकारी भगत सिंह अंग्रेजों से बात करते थे।
पुलिस- क्या, क्या छोरी, यह क्रांतिकारी- व्रांतिकारी कहां से आ गया।
पूजा- अच्छा जी!! गलती हो गई सॉरी…….
देख घबराइयो नहीं जरा डट के बात करियो जैसे भगवान राम राजा जनक से बात करते थे।
(पूजा योगी को समझाते हुए)
जोगी- तू फिकर मत कर, मैं तेरे पिताजी यों यों अपने उंगलियों में लपेट लूंगा। बस तू देखती जा कि तेरा जोगी किस मिट्टी का बना है।
पूजा- बाबा ओ बाबा………
बाबा- आरी कौन मर गया क्यों गला फाड़ रही है।
पूजा- तुमसे कोई मिलने आया है।
बाबा- कोई लेनदार होगा कह दे, बाबा घर पर नहीं है।
पूजा- लेनदार नहीं है कोई और है।
( बाबा का प्रवेश )
बाबा- कौन है?
{ पूजा इशारा करती है बाबा जोगी की परिक्रमा करते हैं}
बाबा- कौन है भाई? मैं तो तुझे पहचानता नहीं( जोगी चुप)। अबे क्या बात है?( जोगी चुप)। गूंगा है क्या?( जोगी चुप)। अबे कुछ बोलेगा भी या यूं ही सुमसा ही खड़ा रहेगा।
जोगी- ज ज ज..जोगी!
बाबा- जोगी ?
जोगी- जोगी, जोगी नाम है मेरा जी! नहीं माने जोगिंदर माने, नहीं माने जोगिंदर सिंह, माने जोगी, जोगिंदर जोगी जोगिंदर। ( हकलाते हुए )
बाबा- क्या गोभी चुकंदर, गोभी चुकंदर लगा रखा है, बोल किस काम से आया है?
जोगी- नहीं माने यूं ही, बस ऐसे ही, माने टेमपास, माने मैं चलता हूं।
बाबा-(गिरेबान पकड़कर) अबे जाता कहां है? बोल किस मतलब से आया था? मुझे तो कोई चोर उचक्का लग्गे।
[ पूजा जोर से रोती है ]
बाबा- चुप! आरी तुझे क्या हो गया है,
पूजा-( रोते-रोते) यह चोर नहीं है।
बाबा- तू कैसे जानती है इसे?
पूजा-[ रोते-रोते हिचकियां के बीच] ये माने जोगी. माने…. मेरे से माने तुमसे…, माने प्रेम माने प्यार……….
बाबा- अरे क्या माने माने लगा रखी है, ठीक से बोल.
पूजा- बाबा हम एक दूसरे से प्यार करते हैं और शादी करना चाहते हैं।
बाबा-( जोगी से) अच्छा! तो यह चक्कर है। तो तू मेरी बेटी से शादी करना चाहता है।
जोगी- जी मैं माने, माने वही कहने जा रहा था।
बाबा- यह माने वाने छोड़ असली बात पर आ जा।
जोगी- जी मैं इसे पलकों पर बिठा कर रखूंगा, रानी बनाऊंगा, दुनिया घुमाऊंगा।
बाबा- यह डायलॉग बाजी रहने दे बता काम क्या करता है।
जोगी- ग्रेजुएट हूं.
बाबा- मैंने पूछा काम क्या करता है।
जोगी- जी कोशिश करता हूं ।
बाबा- काहे की कोशिश?
जोगी- अच्छी नौकरी की.
बाबा- सीधा बोल ना बेरोजगार है.
जोगी- जी!
सब- जी बेरोजगार [एक साथ जोर से]
बाबा- मुझे पता था ऐसे ही गए गुजरे से आएगा रिश्ता मेरी बेटी के लिए।
[जोगी थोड़ा डटकर ]
जोगी- तो जी मैं यह रिश्ता पक्का समझू?
बाबा-[ जूता हाथ में लेकर जोगी के पीछे दौड़ता है] आ मैं तेरा रिश्ता पक्का करूं। साले बेरोजगार, नालायक, फकीर की औलाद साले नौकरी है नहीं और सपने देखता है शादी करने का!
मुझे अपनी बिटिया को जीते जी नहीं मारना तेरे से शादी करा कर।
[ पूजा पीछे पीछे भागती है ]
पूजा- बाबा उसे मत मारो! उसे छोड़ दो।
बाबा- जूते मारूं?
सब- 420
बाबा- नून तेल का?
सब- 420
बाबा- भाव बता दूं!
सब- 420
जोगी- देखो देखो हाथ मत उठाना हां!
बाबा- जरूर उठाऊंगा सौ बार उठाऊंगा! बार-बार उठाऊंगा।
जोगी- बताना दे रहा हूं, पूजा रोक ले अपने बाप को नहीं तो खून पी जाऊंगा बढ़उ का।
बाबा- साले तेरी ये मजाल तू मुझे धमकाता है, मैं तुझे गिन-गिन के जूते लगाऊंगा।
पूजा- पहले मुझे मारो! बाद में जोगी पर हाथ उठाना और कान खोल कर सुन लो शादी करूंगी तो जोगी से, नहीं तो पूरी जिंदगी कुंवारी बैठी रहूंगी।
बाबा- हाय बेटी यह क्या कहती है ऐसी मनहूस बात क्यों जुबान पर लाती है इस बेरोजगार ग्रेजुएट से शादी का ख्याल मन से निकाल दें।
पूजा- बाबा नून रोटी खाएंगे जिंदगी संग ही बिताएंगे, ठीक है।
बाबा- देख बिटिया अकल से काम ले शादी-वादी का ख्याल छोड़ दे।
पूजा- दिल एक है जान एक है उसके बिना हम मर जाएंगे।
जोगी-[ उत्सुकता से] तो बाबा अब मैं रिश्ता पक्का समझू।
बाबा- जोगी बेटा देख मुझे तेरे से कोई दुश्मनी नहीं है, तू शरीफ और मेहनती लड़का लगता है, पर मुझे बेटी के बारे में भी सोचना है बेटा।
जोगी- मैंने सब सोच लिया है जी! मैं बीड़ी-सिगरेट, चाय सब छोड़ दूंगा।
बाबा- बचपने की बातें मत कर बेटा, मैंने भी जिंदगी देखी है बीड़ी चाय छोड़ देगा तो 8 घंटे नौकरी कैसे ढूंढेगा।
जोगी- मैं बस में आना जाना छोड़ पैदल नौकरी की तलाश करूंगा और पूजा भी तो नौकरी करेगी।
बाबा- ताकि तू दो-तीन साल में ही भगवान को प्यारा हो जाए। ताकि मेरी बेटी बेवा हो जाए। यह सब बेकार की बातें हैं, मैंने देख लिया है देश में कोई नौकरी-वाकरी नहीं है, बेरोजगारों की भारी भीड़ पड़ी है, आदमी तो दूर जानवर भी नहीं रह सकता यहां।
जोगी- जी! वो आंदोलनकारी भी यही कहते हैं और यह भी कहते हैं कि इसके जिम्मेदार देसी-विदेशी पूजीपतियों की लुटेरी सरकारे हैं।
बाबा- बिल्कुल सही कहते हैं तो बिटवा कोई ऐसा काम पकड़ जिसमें ये लुटेरी सरकार ख़त्म हो जाए और तुझे नौकरी मिल जाए फिर, मैं पूजा की शादी तुमसे खुशी-खुशी कर दूंगा।
पूजा- पर ऐसा होगा कैसे?
जोगी- सब जगह लोग भगत सिंह के रास्ते पर चलने लगे हैं आंदोलन आगे बढ़ने लगा है।
बाबा- तो बेटा आंदोलन का साथ देकर सरकार को उखाड़ फेंको और भगत सिंह का सपना पूरा कर दो।
जोगी- हां बाबा! 70 सालों से भगतसिंह जैसे, क्रांतिकारियों के नाम पर इस लुटेरी सरकार ने खूब लूटपाट किया है बेरोजगारी खत्म करने के नाम पर बेरोजगारों का खून करा है। उनके सपनों को कुचला है। नौकरी देते भी है तो इतनी, कम तनख्वाह कि आदमी मर जाए।
बाबा- बेटा हाथ पर हाथ धर के मत बैठो अपनी लड़ाई को और तेज करो।
जोगी- वह तो आपके बताए बगैर ही कर रहे हैं। सारे बेरोजगार आंदोलन में भाग ले रहे हैं और उसका झंडा उठाकर लंबी लड़ाई लड़ रहे हैं।
[पुलिस वाला आता है]
पुलिस- फिर! फिर से सालों, मैं कुछ कह नहीं रहा हूं तो तुम फैलते ही जा रहे हो। बहुत हो गया उठाओ अपना ताम तोबड़ा और चलते फिरते नजर आओ।
सूत्रधार-हवलदार साहब, आपने नारे लगाने झंडे उठाने को मना किया था, हमने उन्हें एक तरफ रख दिया अब क्या परेशानी है?
पुलिस- अबे तो मुझे क्या पता कि तुम झंडे और नारे के बगैर ही नौजवानों को भड़का सकते हो। अब मैं कुछ नहीं सुनना चाहता तुम खिसक लो यहां से।
सूत्रधार- लाठी सिंह साहेब आप की खोपड़ी में इतनी सी बात क्यों नहीं आती। बेरोजगारो की जिंदगी पर नाटक करेंगे तो झंडा उठाएं या ना उठाएं नारे लगाएं या ना लगाएं बात वही पहुंचती है जीना है तो लड़ना है।
सब- जीना है तो लड़ना होगा।
जोगी- प्यार भी करना है तो लड़ना होगा।
पुलिस- तो ऐसा नाटक करने के लिए भी तुम्हें मुझसे लड़ना होगा। है कोई जो आगे आए।
सूत्रधार-भाड़ में जाओ नहीं करना हैं हमें, साले इमरजेंसी अभी लगी नहीं और सेंसरशिप पहले से ही शुरू हो गया।
चलो साथियों हमें नहीं करना नाटक [सब सामान उठाने जाते हैं]
एक अभिनेता! रुको एक मिनट (सब रुकते हैं। हवलदार से) आपने कहा कि नारे, झंडा, आंदोलन वगैरा का नाम नहीं आना चाहिए। लेकिन हमारा नाटक उसके खिलाफ हो तो?
पुलिस- वैसे तो एस.एच.ओ साहब का आर्डर है कि आंदोलन का नाम भी नहीं आना चाहिए। लेकिन अगर तुम उसके खिलाफ नाटक करो तो हो सकता है मेरी प्रमोशन हो जाए और मैं सब- इंस्पेक्टर बन जाऊं फिर इंस्पेक्टर फिर उसके बाद ए.सी.पी और फिर डी.सी.पी तो हम बन ही जाएंगे… (सपने देखने लगता है)
एक अभिनेता- लाठी सिंह साहेब अपने हसीन सपनों की दुनिया से निकल कर जरा धरती पर लौट आइए। हां तो हम फिर अपना नाटक शुरू करें।
हवलदार साहब जी, ए.स.पी साहब ओ डी.सी.पी साहब!
पुलिस-(चौकीदार सपनों की दुनिया से बाहर आता है) हां, हां। (बैठ जाता है) तो शुरू करो।
[सब पात्र सलाह करते हैं और नाटक फिर शुरू होता है]
जोगी- रेंगकर मर मर के जीना ही नहीं है जिंदगी
खून के आंसू को पीना ही नहीं है जिंदगी
कुछ करो कि जिंदगी की डोर ना कमजोर हो
तय करो किस ओर हो तुम तय करो किस ओर हो
आदमी के पक्ष में हो या की आदमखोर हो!
सब-रेंगकर मर मर….. [आंदोलन का झंडा उठाए लहराता लड़ता जोगी आता है। चार अभिनेता उसे घेरकर उसके इर्द-गिर्द घूमते हैं।]
चारों - क्यों जोगी आ गए होश ठिकाने
1. कैसी लगी पुलिस की मार?
2. हवालात में ठुल्लो ने रोटी भी दिया या भूखे प्यासे ही पड़े रहे?
3. आंदोलन में जेल में चक्की भी पीसवा दी बेचारे से।
4. अरे यह किस खेत की मूली है। जेल में तो इसके साथियों तक की भी ठुकाई हो गई।
चारों- हा! हा! हा! हा!
1- हम तो पहले भी तुम्हें समझाते थे कि मत पढ़ो इनके चक्कर में!
2- पर ना, उन्होंने तुम्हें भर्री दी और तुम कूद पड़े आंदोलन में!
3- पर हाथ क्या आया? कद्दू?
4- अब ऊपर से एफ.आई.आर दर्ज हो गई सो अलग!
जोगी- एफ.आई.आर?
चारों- और नहीं तो क्या!
जोगी- पर वह आंदोलनकारी तो कहते थे कि आंदोलन करने से नौकरी, मिलेगी घर मिलेगा और लड़ाई जीत गए तो भगत सिंह के सपनों का समाज बनेगा। जिसमें ना गरीब होगा ना अमीर और सरकार होगी मां जैसी जो सबसे प्यार करेगी।
1- बरगलाना इसी को कहते हैं। तुम्हारे जैसे भोले भाले नौजवानों को लालच दिखाकर अपना उल्लू सीधा किया है इन आंदोलन वालों ने!
2- अब जाके उनसे पूछ क्या हुआ उन वादों का! नौकरी दिलाने चले थे मिल गई?
3- घर दिला दे थे, औरतों को बराबरी का हक दिला रहे थे- मिला कुछ?
4- अजी यह तो कुछ नहीं सीधे मजदूर विरोधी कानून रद्द करा रहे थे, बंद फैक्ट्रियां खुलवा रहे थे, पुलिस दमन रुकवा रहे थे।
चारों- हा हा हा! यूं कहो मुल्क में मेहनत करने वालों के लिए स्वर्ग बनवा रहे थे!
1- जोगी अब भी वक्त है चेत जा और झाड़ ले पल्ला।
2- हमारे साथ चल और सत्ता के मजे ले। कम से कम रोटी नहीं तो रोटी का टुकड़ा ही मिल जाएगा।
जोगी- बात रोटी की नहीं है, रोटी तो किसान उगाता है लेकिन आत्महत्या कर रहा है ना! बात है इस लुटेरी व्यवस्था की, बात है इसको बदलने की!
3- ला दे ये झंडा हमें दे। इसे फाड़ के फेंक देते हैं
चारों- ना रहेगा बांस ना बजेगी बांसुरी!
[जोगी से झंडा लेते हैं झंडा जोगी के हाथ में रह जाता है चारों झंडे को खींचते हैं। जोगी झंडा उठाता है और वापस खींच लेता है।]
जोगी- खबरदार! छोड़ दो इसे, मालिकों के दलालों तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई क्रांतिकारियों के परचम को अपने नापाक हाथों से छूने की..
[बाकी एक्टर भी खड़े होते हैं।
सब एक्टर – ए जोगी क्या करते हो। हमें आंदोलन के खिलाफ नाटक करना था। हवलदार साहब बैठे हैं बेकार में तू सबको पिटवा आएगा।
जोगी- नहीं, नहीं करूंगा मैं आंदोलन के खिलाफ नाटक। भगत सिंह का सपना आंदोलन का सपना है। आंदोलन का ये झंडा है, मैंने देख लिया है आंदोलन और संगठन ही है जो ये लूट की व्यवस्था को बदल सकती है। इस 7 दिन की आंदोलन में अपने हक के लिए, इंसानी जिंदगी के लिए लड़ने का रास्ता मुझे भगत सिंह के संगठन ने ही दिखाया है। कहां मुंह काला कर आ रहे थे यह तुम्हारे संगठन वाले जब हम पर पुलिस की लाठियां पड़ रही थी। क्यों घुसे बैठे थे ये अपने बिलों में जब मैं हवालात में भूखा प्यासा पड़ा था। जब पुलिस वाले औरतों को पीट रहे थे, हमारे साथियों को गिरफ्तार कर रहे थे तो क्या तुम्हें सांप सूंघ गया था। नहीं! तब यह अखबारों में बयान जारी करके आंदोलन को बुरा भला कह रहे थे। नौजवानों को आंदोलन में उतरने से रोक रहे थे। इन मजदूरों को मैंने अच्छी तरह पहचान लिया है अब मेरा एक ही सपना है दुनिया में अमीरी-गरीबी खत्म हो। सबके पास सम्मानजनक रोजगार हो, अब मैं ही भगतसिंह हूं । बेरोजगारों की तरह मरने से अच्छा है भगत सिंह की तरह शहीद हो जाऊं। मैं आंदोलन के खिलाफ एक लफ्ज़ भी नहीं बोलूंगा। हवलदार तो क्या, चाहे मुल्क की सारी पुलिस मेरी छाती पर सवार हो जाए मेरी जुबान से एक ही आवाज निकलेगी।
इंकलाब जिंदाबाद, साम्राज्यवाद मुर्दाबाद – 2
ये सरकार वो सरकार पूजीपतियों की सरकार
पुलिस- साले, तो फिर शुरू हो गया? 2-4 लाखिया मारूंगा तो होश ठिकाने आ जाएंगे!
जोगी- एक नहीं हजार लाठी-डंडे बरसाओ, आज मैं चुप नहीं रहूंगा। इस देश का नौजवान आज चुप नहीं रहेगा, जो जान गवाने से नहीं डरता वो लाठी से क्या डरेगा?
गाना- "जारी है जारी है,
अभी लड़ाई जारी है………"
नेता- यह कैसा शोर है?
पुलिस- अच्छा हुआ आप आ गए। ये साला नौजवानों को भड़का रहा है मैंने मना किया तो मुझे ही आंख दिखाता है।
नेता- सालों, कल तब तो हमें देख के कांपते थे। आंदोलन क्या कर लिया हमें आंख दिखाते हो। आज भगत सिंह के नाम से हमें धमकाते हो? भूलो मत, आज इस देश में तुम हमारी कृपा से रह रहे हो? और इतनी दिक्कत है, तो दूसरे देश चले जाओ, नहीं तो पुलिस और सेना के दम पर नेस्तनाबूद करवा दूंगा। बड़ा आया आंदोलनकारी।
जोगी- अरे, तुम क्या नेस्तनाबूद करोगे। भगत सिंह को तो खत्म कर नहीं पाए। उनके विचार, उनका सपना आज भी नौजवानों में खून की तरह दौड़ता है और तुम सब उनके विचारों से ही तो डरते हो कि कहीं एक और भगत सिंह पैदा ना हो जाए और लुटेरे गोरों की तरह तुम जैसे लुटेरे भूरो की सरकार न उखाड़ दे।
साथियों देख लो ये है तुम्हारे नेता जिसकी तुम गुलामी बजा रहे हो।
1- जोगी ठीक कहता है 70 साल से गुलामी ही तो करवा रहे हैं ना इन्होंने सबको नौकरी दी।
2- हां( जोर से) ना सबको घर दिया ।
3- शिक्षा के नाम पर चोरी और दवाइयों के नाम पर लुटा और जहर दिया।
4- गरीबी दिन पर दिन कैंसर की तरह बढ़ी, देश दंगों की आग में सुलगता रहा और यह लुटेरे मजे से काजू बादाम खाते रहे।
जोगी- कई चुनाव आए और गए, देश में कितनी सरकारें आई और गई, अमीर और अमीर होता गया गरीब के मुंह से निवाला छिनता गया। यही है इनका लोकतंत्र। यही है इनका जनता का राज।
सूत्रधार- जोगी ठीक कहता है, भगत सिंह ने भी कहा था, अगर सरकार जनता को उनके मूलभूत अधिकार यानी( रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, चिकित्सा और रोजगार) से वंचित रखती है, तो जनता का कर्तव्य ही नहीं पूरा अधिकार है कि ऐसी सरकार और ऐसे लुटेरी व्यवस्था को उखाड़ दे।
नारे- इंकलाब जिंदाबाद साम्राज्यवाद मुर्दाबाद ये सरकार वो सरकार पूजीपतियों की सरकार
गीत- "ए भगत सिंह तू जिंदा है……."