राय जाहिर करने के बारे में - लू शुन

गद्य कविता 

राय जाहिर करने के बारे में - लू शुन 



मैनें सपना देखा कि मैं प्राथमिक विद्यालय की एक कक्षा में था। एक लेख लिखने की तैयारी कर रहा था और मैंने शिक्षक से पूछा कि कोई राय जाहिर करनी हो तो कैसे करें।

"यह तो कठिन काम है"। अपने चश्में के बाहर से मेरी ओर निहारते हुए उन्होंने कहा, "मैं तुम्हें एक कहानी सुनाता हूँ" -

"एक परिवार में जब बेटा पैदा हुआ, तो पूरे घराने में खुशी की लहर दौड़ गयी। जब वह बच्चा एक महीने का हो गया, तो वे लोग उसे मेहमानों को दिखाने के लिए बाहर ले आये। जाहिर है कि उन्हें उन लोगों से शुभकामनाओं की उम्मीद थी।"

"एक ने कहा- ‘यह बच्चा धनवान होगा।’ उसे लोगों ने हृदय से धन्यवाद दिया।"

"एक ने कहा- ‘यह बच्चा बड़ा होकर अफसर बनेगा।’ उसे भी जवाब में लोगों की प्रशंसा मिली।"

"एक ने कहा- ‘यह बच्चा मर जायेगा।’ उसके बाद पूरे परिवार ने मिल कर उसकी कस के धुनाई की।"

"बच्चा मरेगा, यह तो अवश्यंभावी है, जबकि वह धनवान होगा या अफसर बनेगा, ऐसा कहना झूठ भी हो सकता है। फिर भी झूठ की प्रशंसा की जाती है, जबकि अपरिहार्य सम्भावना के बारे में दिये गये वक्तव्य पर मार पिटाई होती है। तुम..."

"मैं झूठी बात नहीं कहना चाहता। श्रीमान, और पिटना भी नहीं चाहता। तो मुझे क्या कहना चाहिए?"

"ऐसी स्थिति में कहो- ‘आ हाहा! जरा इस बच्चे को तो देखो! मेरी तरफ से इसे... आ हाहा! मेरा मतलब आहाहा! हे, हे! हे, हे, हे,"


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