सफ़दर हाश्मी

सफ़दर हाश्मी  ( 12 अप्रैल 1954 - 2 जनवरी 1989 )

नाटककार, एक्टर, डायरेक्टर, गीतकार  'सफ़दर हाशमी' 
12 अप्रैल 1954 को पैदा हुए। वे दिल्ली के रहने वाले थे। दिल्ली यूनिवर्सिटी के 'सैंट स्टीफिंस कॉलेज' से सफ़दर ने  इंग्लिश में मास्टर्स की। उन्होनें दिल्ली के 'ज़ाकिर हुसैन कॉलेज' और कश्मीर में श्रीनगर व  गड़वाल की यूनिवर्सिटियों में  बतौर शिक्षक पढ़ाया भी। कॉलेज में पड़ते वक़्त ही सफ़दर प्ले लिखने से लेकर उसके मंचन तक की गतिविधियों में हिस्सा लेने लगे।

कॉलेज के वक्त  उनका इप्टा (इंडियंस पीपल थेयटर एसोसिएशन) से परिचय हुआ और उन्होनें  इप्टा के साथ 'किमलेश' और 'देखते लेना' जैसे नाटकों पर काम किया  ।  

वक़्त की ज़रूरत थी ऐसे प्ले जो कम खर्चीले हों, और असरदार तरीके से घूमते-फिरते किए जा सकें। उस ज़रूरत का नतीजा निकला नुक्कड़ नाटक। 1973 में उन्नीस साल की उम्र में उन्होंने 'जन नाट्य मंच (जनम)' की स्थापना की। जनम  के माध्यम से उन्होंने मुख्यतः नुक्कड़ नाटकों को जन-विरोध का एक प्रभावी हथियार बनाया। 

'जनम' इप्टा (इंडियंस पीपल थेयटर एसोसिएशन) से अलग होकर सामने आया। 'कुर्सी,कुर्सी,कुर्सी'  सफ़दर के शुरूआती नाटकों में से था। नुक्कड़ नाटक की क्षमता से रूबरू होने के बाद सफ़दर ने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा और लगातार नाटक करे , चाहे वो गरीब किसानों की बेचैनी दर्शाता हुआ नाटक - 'गाँव से शहर तक' हो , या  सांप्रदायिकता की आग को दर्शाता नाटक- 'हत्यारे और अपहरण भाईचारे का' हो , या बेरोजगारी पर बना नाटक- 'तीन करोड़' और घरेलू हिंसा पर बना नाटक- 'औरत' रहा  हो। उन्होनें  मक्सिम गोर्की के नाटक पर आधारित 'दुश्मन' और प्रेमचंद की कहानी 'मोटेराम के सत्याग्रह' पर आधारित नाटक भी तैयार किये। 

समय के साथ उनकीं कलम और अधिक पैनी हो गई। 'मशीन' नाटक उनके लिखे हुए नाटकों में सबसे लोकप्रिय बना। अपने विषय व अपील करने वाली थीम की वजह से कामकाजी तबके में इसने फ़ौरन लोकप्रियता हासिल कर ली। 'मशीन' को रिकॉर्ड किया गया और भारत की अन्य भाषाओँ में इसको बनाया गया। सफदर और उनकी साथीयों ने जब दिल्ली परिवहन निगम ने किराए में बढ़ोतरी की घोषणा की, उसके पांच घंटों के अंदर-अंदर 'डीटीसी  की धांधली' के नाम से प्ले लिख कर उसका मंचन भी कर डाला। सफदर ने दूरदर्शन के लिए एक धारावाहिक 'खिलती कलियों' का निर्माण भी किया। 

नाटक के अलावा उन्होनें 'किताबें', 'मच्छर पहलवान', 'राजू और काजू' आदि कविताएं लिखी , बच्चों के लिए गीत लिखे , प्रगतीशील मुद्दों के लिए पोस्टर्स बनाए , फिल्म फेस्टिवल्स आयोजित किए, और ज़रूरी मुद्दों के ऊपर लेख लिखे। 

सफदर की 2 जनवरी 1989  में साहिबाबाद में एक नुक्कड़ नाटक 'हल्ला  बोल' खेलते हुए हत्या कर दी गई । उनकी मौत के तीसरे ही दिन उनकी पत्नी मल्यश्री हाशमी अपने साथियों के साथ गाज़ियाबाद में उसी जगह पहुंची जहां उनको क़त्ल किया गया था और  उन्होंने नाटक के मंचन को पूरा किया। 

जब सफ़दर की अंतिम यात्रा निकाली गई तो दिल्ली की सड़कों पर मौजूद आवाम  बड़ी संख्या में उसमे शामिल हो गई। आज़ादी के बाद के भारत में ये ऐसी दुर्लभ शवयात्रा थी जिसमे बिना किसी पूर्वसूचना के इतने ज़्यादा लोगों ने हिस्सा लिया।  सफ़दर हाशमी नाम के  एक सच्चे रंगकर्मी को जनता द्वारा दी गई ये एक सच्ची श्रद्धांजलि थी।  
 
एक महीने बाद सफ़दर हाशमी मेमोरियल ट्रस्ट (SAHMAT) का गठन हुआ।  
 
सफ़दर हाशमी की मां क़मर हाशमी ने अपनी किताब 'दी फिफ्थ फ्लेम - दी स्टोरी ऑफ़ सफ़दर हाशमी' में अपने बेटे के लिए लिखा कि - "साथी सफ़दर हम आपका मातम नहीं करते, हम आपकी याद का जश्न मनाते हैं" 
 
उनकी मृत्यु के बाद से हर साल झंडापुर गाज़ियाबाद की उसी जगह पर, उसी दिन कार्यक्रम आयोजित किया जाता  है।

सफ़दर हाशमी प्रतिरोध की वो ज़िंदा आवाज़ थी जिसे मिटाने की कोशिश पूरी तरह नाकामयाब रही। अपनी मौत के बाद से इस आवाज़ को और भी मुखरता हासिल हुई। आवाम के फनकारों की  जहां भी बात चलाई जाएगी , सफ़दर हाशमी का नाम वहां पूरी धमक के साथ मौजूद मिलेगा।  

सफ़दर के जन्मदिवस 12 अप्रैल को 'नैशनल स्ट्रीट थिएटर डे' के रूप में पूरे देश भर में कलाकारों द्वारा मनाया जाता है।






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