विद्यार्थी
दिन-प्रतिदिन बच्चों को बचपन के अधिकार से दूर किया जा रहा है। इस अधिकार की हँसी उड़ाते सच अपनी सीखें हम तक रोजाना पहुँचाते हैं। हमारी दुनिया धनी बच्चों को
यूँ देखती है मानो वे कोई चलती-फिरती तिजोरी हों! और फिर होता यह है कि ये बच्चे असल जिन्दगी में भी खुद को रुपया-पैसा ही समझने लग जाते हैं। दूसरी ओर, यही दुनिया
गरीब बच्चों को कूड़ा-कचरा समझते हुए उन्हें घूरे की चीज बना डालती है और मध्यवर्ग के बच्चे, जो न तो अमीर हैं न गरीब, यहाँ टीवी से यूँ बाँध दिये गये हैं कि बड़ी छोटी उमर से ही वो इस कैदी जीवन के गुलाम हो जाते हैं। वे बच्चे जो बच्चे रह पाते हैं, फिर किस्मत के धनी और एक अजूबा ही माने जायेंगे।
-एदुआर्दो गालेआनो
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