कहानी
सामाजिक वर्गों की पैदाइश और दूसरी कहानियां - एदुआर्दो गालेआनो :
(उरूग्वे में जन्मे और दुनिया-भर में जन पक्षधर लेखक और पत्रकार के रूप में मशहूर एदुआर्दो गालेआनो का 13 अप्रैल 2015 को निधन हो गया। उनकी आवाज़ झूठ और फरेब के मलबे के बीच फावड़े की तरह अपना रास्ता बनाती थी और परचम की तरह गरदन ताने दुनिया का सफर करती थी, अब चुप हो गयी। हालाँकि उनके शब्द मौजूद हैं और उन्हीं में से एक इंतखाब यहाँ पेश है। उनकी किताब - (आईने : करीब-करीब हरेक की कहानी ) से कुछ अंश। स्पेनिश से अनुवाद: रेयाज उल हक)
सामाजिक वर्गों की पैदाइश
शुरुआती दिनों में, भूख के उन दिनों में, पहली औरत मिट्टी कुरेद रही थी कि सूरज की किरणें पीछे से आकर उसके भीतर दाखिल हो गयीं। पल-भर में ही, एक बच्चे का जन्म हुआ।
पचाकमाक देवता को सूरज की यह हरकत बिल्कुल पसन्द नहीं आयी और उसने अभी-अभी पैदा हुए बच्चे के टुकड़े-टुकड़े कर दिये। उस मरे हुए बच्चे में से पहले पौधे फूटे। दाँतों से अनाज के दाने बने, हड्डियाँ युका बनीं, माँस आलू, जैम और स्क्वैश में तब्दील हुआ...।
फिर तो सूरज को बहुत तेज गुस्सा आया। उसकी किरणों ने पेरू के तट को जला डाला और उसे हमेशा के लिए सूखा बना दिया। बदले की आखिरी हरकत के बतौर उसने मिट्टी में तीन अंडे फोड़े।
सुनहरे अंडे से मालिक पैदा हुए।
रुपहले अंडे से मालिकों की औरतें पैदा हुईं।
और ताम्बे के अंडे से वे पैदा हुए, जो मेहनत करते हैं।
गुलाम और मालिक
काकाओ को सूरज की जरूरत नहीं थी, क्योंकि उसके पास अपना सूरज था।
उसकी भीतरी चमक से चाॅकलेट का मजा और उससे मिलनेवाली खुशी बनती थी।
बुलन्दी पर रहनेवाले देवताओं ने गाढ़े रोगन पर कब्जा कर लिया और हम इनसान नादानी में रहने के लिए मजबूर कर दिये गये।
केत्जालकोआत्ल ने उसे तोल्तेक्स के लिए चुरा लिया। जब बाकी के देवता सो रहे थे, उसने कुछ बीज लिये और उन्हें अपनी दाढ़ी में छुपा लिया। फिर वह मकड़ी के जाल के एक बड़े से धागे के सहारे धरती पर उतरा और उन बीजों को उसने तुला शर में पेश किया।
केत्जालकोआत्ल के तोहफे को शहजादों, पुजारियों और जंगी सरदारों ने हड़प लिया।
उनकी पसन्द को ही पसन्द के लायक समझा गया।
और चूँकि जन्नत के मालिकों ने फानी इनसानों के लिए चाॅकलेट को हराम ठहराया था, इसलिए धरती के मालिकों ने इसे आम इनसानों के लिए हराम बना दिया।
एक खतरनाक हथियार
तीस से ज्यादा देशों में रिवाज यह है कि (औरतों के यौनांग) क्लाइटोरिस को काटकर हटा दिया जाये।
यह खतना पति को अपनी औरत या अपनी औरतों को अपनी जायदाद मानने के अधिकार की तस्दीक करता है।
औरतों का अंग काटनेवाले यह कहकर इस जुर्म को जायज ठहराते हैं कि वे औरतों के मजे को पाक बना रहे हैं और वे बताते हैं कि क्लाइटोरिस
एक जहरीला तीर है
बिच्छू का एक डंक है
दीमकों का खोता है
यह मर्दों को मार डालता है या उन्हें बीमार बनाता है
औरतों को उकसाता है
उनके दूध में जहर घोलता है
और उनकी प्यास को बुझने नहीं देता
और उन्हें पागल बना देता है
वे अपनी इस हरकत को जायज ठहराने के लिए पैगम्बर मुहम्मद का हवाला देते हैं, जिन्होंने कभी इस मामले में कुछ नहीं कहा। वे कुरान का भी हवाला देते हैं, जबकि उसमें भी इसका कोई जिक्र तक नहीं है।
शैतान गरीब है
आज शहर एक बहुत बड़ी जेल है, जिसमें खौफ के कैदी रहते हैं, जहाँ मोर्चेबन्दियों को घरों की शक्ल दी गयी है और कपड़े बख्तरों की शक्लें हैं।
एक घेरेबन्दी। अपना ध्यान भटकने मत दो, अपनी चैकसी को कभी ढीला मत पड़ने दो, कभी भरोसा मत करो, इस दुनिया के मालिक यह कहते हैं। बेधड़क मालिक जो आबोहवा से बलात्कार करते हैं, देशों को अगवा करते हैं, मजदूरियाँ छीन लेते हैं और सामूहिक जनसंहार करते हैं। वे चेतावनी देते हैं, खबरदार, बुरे लोग भरे पड़े हैं, बदनसीब झुग्गियों में ठसमठस, अपनी अदावत को अपने भीतर सुलगाते हुए, अपने जख्मों को बेकरारी से कुरेदते हुए।
गरीब: हर तरह की गुलामी के लिए एक फटेहाल कंधा, सभी जंगों के लिए लाशें, सभी जेलों के लिए माँस, सभी नौकरियों के लिए मोलभाव के हाथ।
भूख, जो खामोशी से मारती जाती है, खामोश लोगों को भी मार डालती है। विशेषज्ञ उनके लिए बोलते हैं, गरीबी के माहिर, जो हमें बताते हैं कि गरीब क्या नहीं करते हैं, कि वे क्या नहीं खाते हैं, कि वे कितने वजनी नहीं हैं, कि वे किस बुलन्दी तक नहीं पहुँच सकते, कि वे क्या नहीं सोचते, कि वे किन पार्टियों को वोट नहीं देते, कि वे किसमें यकीन नहीं करते।
अकेला सवाल, जिसका जवाब नहीं दिया जाता कि गरीब लोग आखिर गरीब क्यों हैं। क्या शायद ऐसा इसलिए है कि हम उनकी भूख पर पलते हैं और उनकी बेपर्दगी से अपना तन ढकते हैं?
शासक और शासित
येरुशेलम का बाइबल कहता है कि बनी इजराइल खुदा के चुने हुए लोग थे। वे खुदा की औलाद थे।
दूसरी आयत के मुताबिक, चुने हुए लोगों को राज करने के लिए दुनिया बख्शी गयी थी:
मुझसे माँगो, और मैं विरासत में तुम्हें काफिर दूँगा, और तुम्हारी मिल्कियत में धरती का सबसे ऊपरी हिस्सा।
लेकिन बनी इजराइल ने खुदा को बहुत नाराज किया, वे नाशुक्रे और गुनहगार थे। और अनेक धमकियों, बद्दुआओं और सजाओं के बाद खुदा का सब्र तमाम हुआ।
तब से दूसरे लोगों ने तोहफे पर दावा ठोंक रखा है।
सन 1900 में, संयुक्त राज्य के सीनेटर अल्बर्ट बेवेरिज ने कहा-- ‘सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने चुने हुए लोगों के रूप में हमारी निशानदेही की है, आगे से दुनिया को फिर से पैदा करने में रहनुमाई के लिए।’
मेहनत के बँटवारे की शुरुआत
कहते हैं कि राजा मनु ही थे, जिन्होंने भारत की जातियों को दैवीय बनाया।
ब्रह्मा के मुँह से पुरोहित पैदा हुए। उसकी बाहों से राजा और योद्धा। उसकी जाँघों से व्यापारी। उसके पैरों से गुलाम और कारीगर।
और इस बुनियाद पर एक सामाजिक पिरामिड खड़ा हुआ, भारत में जिस पर तीन हजार से ज्यादा कहानियाँ हैं।
हरेक वहीं पैदा होता है, जहाँ उसे पैदा होना चाहिए। वही करने के लिए, जो उसे करना चाहिए। पालने में ही कब्र है, पैदाइश ही मंजिल है, हमारी जिन्दगियाँ हमारी पहले की जिन्दगियों का फल हैं या वाजिब सजा और यह विरासत ही हमारी जगह और हमारी भूमिका को तय करती है।
भटकावों को ठीक करने के लिए राजा मनु ने सिफारिश की, ‘अगर निचली जाति का कोई इंसान पवित्र ग्रंथों के श्लोकों को सुन लेता है, तो उसके कानों में पिघला हुआ शीशा डाला जाये , और अगर वह उनका पाठ करता है, तो उसकी जीभ काट ली जाये।’ ऐसी सीख अब चलन में नहीं है, लेकिन जो कोई भी अपनी जगह से हिलता-डुलता है, प्यार में, काम में, या चाहे जिस भी वजह से, वह सरेआम कोड़ों से पीटे जाने का जोखिम उठाता है, जिसका अंजाम उसे मुर्दा बना सकता है या वह बच भी गया तो मुर्दा ही ज्यादा बचता है।
जातिहीन (अवर्ण) लोग, हरेक पाँच में से एक भारतीय, सबसे नीचे हैं। उन्हें ‘अछूत’ कहा जाता है, क्योंकि उनसे छूत फैलती है-- वे घिनौनों में भी घिनौने हैं, वे दूसरों से बात नहीं कर सकते, उनके रास्तों पर चल नहीं सकते, उनका गिलास या प्लेटें नहीं छू सकते। कानून उनकी हिफाजत करता है, लेकिन समाजी हकीकत उन्हें छाँटकर अलग करती है। मर्दों को कोई भी जलील कर सकता है, औरतों के साथ कोई भी बलात्कार कर सकता है और सिर्फ तभी ये अछूत, छूने लायक बन जाते हैं।
2004 के आखिर में, जब सुनामी ने भारत के तटों को रौंद डाला, वे मलबा और लाशें उठा रहे थे।
हमेशा की तरह।
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