नागार्जुन ( 30 जून 1911 - 5 नवम्बर 1998)
"जनता मुझसे पूछ रही है, क्या बतलाऊँ?
जन कवि हूँ मैं साफ कहूँगा, क्यों हकलाऊँ?"
नागार्जुन का जन्म 30 जून 1911 में हुआ। वे हिन्दी और मैथिली के लेखक और कवि बने। जीवन की करूण-दारूण स्थितियों का जैसा मार्मिक आख्यान नागार्जुन की कविताओं में उपस्थित है, वह अन्यत्रा दुर्लभ है। ‘अकाल और उसके बाद’ शीर्षक यह नागार्जुन की अत्यन्त प्रसिद्ध कविता है-
"कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास
कई दिनों तक कानी कुुतिया, सोई उसके पास
कई दिनों तक लगी भीत पर छिपकलियों की गश्त
कई दिनों तक चूहों की भी हालत रही शिकस्त"
नागार्जुन एक ऐसे साहित्यकार हैं जिनकी रचनात्मकता के स्रोत जन-आन्दोलन रहे हैं। शोषित-पीड़ित, जन-समुदाय नागार्जुन की रचनाओं का मुख्य विषय है। इनका सुख-दुःख, हर्ष-विषाद, स्वप्न-संघर्ष सब कुछ नागार्जुन की रचना-दृष्टि में है।
नागार्जुन ने किसानों की बदहाली को दर्शाते वे व अखबारों पे और सरकारी आंकड़ों प तंज कस्ते हुए क्या खूब लिखा -
"कागज पर खेती होती, कलम हुई हरफार,
छोड़ रहे हैं गाँव खेत-मजदूरों के परिवार,
कृषि-विकास की खबरें प्रतिदिन छाप रहे अखबार
असेम्बली की छत पर फसलें उगा रही सरकार"
"जनता मुझसे पूछ रही है, क्या बतलाऊँ?

नागार्जुन का जन्म 30 जून 1911 में हुआ। वे हिन्दी और मैथिली के लेखक और कवि बने। जीवन की करूण-दारूण स्थितियों का जैसा मार्मिक आख्यान नागार्जुन की कविताओं में उपस्थित है, वह अन्यत्रा दुर्लभ है। ‘अकाल और उसके बाद’ शीर्षक यह नागार्जुन की अत्यन्त प्रसिद्ध कविता है-
"कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास
कई दिनों तक कानी कुुतिया, सोई उसके पास
कई दिनों तक लगी भीत पर छिपकलियों की गश्त
कई दिनों तक चूहों की भी हालत रही शिकस्त"
नागार्जुन ने किसानों की बदहाली को दर्शाते वे व अखबारों पे और सरकारी आंकड़ों प तंज कस्ते हुए क्या खूब लिखा -
"कागज पर खेती होती, कलम हुई हरफार,
छोड़ रहे हैं गाँव खेत-मजदूरों के परिवार,
कृषि-विकास की खबरें प्रतिदिन छाप रहे अखबार
असेम्बली की छत पर फसलें उगा रही सरकार"
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