
"सबसे ख़तरनाक होता है
मुर्दा शांति से भर जाना
न होना तड़प का सब सहन कर जाना
सबसे खतरनाक होता है हमारे सपनों का मर जाना "
अवतार सिंह संधू का जन्म पंजाब के जलंधर जिले के तलवंडी सेलम में हुआ। वे एक ऐसे जनकवि हैं जिन्हें बजाय इसके की वे अपनी क्षेत्रीय भाषा पंजाबी में कवितायेँ लिखा करते थे पूरे भारत में पड़ा जाता है। पाश ने उच्च शिक्षा अमृतसर के गुरु नानक देव युनिवर्सिटी से हासिल की। भारत में उनकी कविताओं का करीब - करीब हर भाषा में अनुवाद हुआ है।
पाश ने मजदूरों और किसानों के अधिकारों के लिए आंदोलनों में भाग लिया। वे ताउम्र जनकवि और कार्यकर्त्ता के रूप में सक्रीय रहे।
पाश अपने पहले संकलन "लौह कथा" की कविता "भारत" में देश को चँद ज़मींदारों की जागीर के बजाय भूखे मरते किसानों के खून-पसीने से जोते हुए खेतों को बताता है , की जहां आज भी उसकी पैदावार को कैसे दूसरा खा जाता है -
"भारत के अर्थ
किसी दुष्यन्त से सम्बन्धित नहीं
वरन खेत में दायर है
जहाँ अन्न उगता है
जहाँ सेंध लगती है"
अस्सी के दशक में अपने क्षेत्र के धार्मिक कट्टरपन्तियों के खिलाफ उन्होनें "धर्मदीक्षा के लिए विनयपत्र" जैसीं कविता लिखीं। इसी के चलते खालिस्तानी आतंकवादियों ने पाश की हत्या कर दी।
पाश की कविताओं में बैल, रोटियां, हुक्का, चांद की रात अर्थात पूरे गांव की एक सोंधी ख़ुश्बू है। 'है तो बहुत अजीब' की पंक्तियाँ ऐसी हैं -
"तुमनें कभी न सोचा होगा की मुकलावा
दहेज के बर्तनों की खनक में
नूपुर की चुप का बिना कफ़न जलना है
या रिश्तों के सेंक में, रंगों का तिड़क जाना है"
( मुकलावा - गौना )
कवी होने पर पाश लिखते हैं -
"कवि होना ऐसा है
जैसे जीवन के प्रति निष्ठां रखना
हर मुश्किल में
मानो खुद अपनी उधेड़कर कोमल चमड़ी
देना लहू उड़ेल अन्य लोगों के दिल में"
पाश पंजाब का या पंजाबी का ही कवि नहीं बल्कि समस्त दुनिया की संघर्षरत जनता का कवी है।
"क़त्ल हुए जज़्बों की क़सम खाकर
बुझी हुई नज़रों की क़सम खाकर
हाथों पर पड़े घट्टों की क़सम खाकर
हम लड़ेंगे साथी
हम लड़ेंगे "
.....
No comments:
Post a Comment