व्यंग्य
छापते नहीं, छुपाते हैं -
एक बार नारद मुनि परानुग्रह की आकांक्षा से मत्र्यलोक के भ्रमण पर निकले। सुबह-सुबह जिसे देखा, हाथ में बड़े-बड़े कागज लिये अपना चेहरा उसमें छिपाये हुए है। पूछा- ‘यह कौन सा पुराण है, वत्स?’
‘महाराज यह अखबार है। कलयुग है, यहाँ पुराण-कुराण नहीं, अखबार ही सबसे पवित्र है।’
‘इसमें किस प्रकार के वचन और सूक्त होते हैं?’
‘आप ही जैसा काम अखबार वाले भी करते हैं, यहाँ की बात वहाँ। अंतर बस इतना है कि इनके स्वामीगण समझदार हैं, मितभाषी हैं, आपकी तरह वाचाल नहीं। ये जितना छापते नहीं, उससे ज्यादा छुपाते हैं।’
‘स्वामीगण अपने भोजन-वस्त्रादि के लिये धन कहाँ से प्राप्त करते हैं? क्या इनकी बिक्री से धनार्जन करते हैं?’
‘नहीं महाराज, अखबार तो शौकिया निकालते हैं, धनार्जन चीटफंडम, रियलइस्टेटम, शेयरबाजारम अथवा अन्य व्यवसायों से करते हैं।’
नारद जी का मष्तिष्क चक्कर खाने लगा। वे नारायण-नारायण कहते इस स्वानुभूत सत्य की मीमांसा करने और स्वर्गलोक में यह नया सन्देश पहुँचाने चल पड़े़े।
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