प्रगतिशील लेखक संघ (PROGRESSIVE WRITERS' MOVEMENT)

प्रगतिशील लेखक संघ 

अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक बीसवीं शताब्दी  के प्रारंभ में भारतीय प्रगतिशील लेखकों का एक समूह था। यह लेखक समूह अपने लेखन से सामाजिक समानता का समर्थन करता था और कुरीतियों, अन्याय व पिछड़ेपन का विरोध करता था। इसकी स्थापना 1935  में लंदन में हुई। इसके प्रणेता सज्जाद ज़हीर थे।

1935  के अंत तक लंदन से अपनी शिक्षा समाप्त करके सज्जाद ज़हीर भारत लौटे। यहाँ आने से पूर्व वे अलीगढ़ में डॉ अशरफ, इलाहबाद में अहमद अली, मुम्बई में कन्हैया लाल मुंशी, बनारस में प्रेमचंद, कलकत्ता में प्रो. हीरन मुखर्जी और अमृतसर में रशीद जहाँ को घोषणापत्र की प्रतियाँ भेज चुके थे। वे भारतीय अतीत के साहित्य  से उसका मानव प्रेम, उसकी यथार्थ प्रियता और उसका सौन्दर्य तत्व लेने के पक्ष में थे लेकिन वे प्राचीन दौर के अंधविश्वासों और धार्मिक साम्प्रदायिकता के ज़हरीले प्रभाव को समाप्त करना चाहते थे। 

सौभाग्य से जनवरी 1936  में 12-14  को हिन्दुस्तानी एकेडमी का वार्षिक अधिवेशन हुआ।  अनेक साहित्यकार यहाँ इक्कठे हुए - सच्चिदानंद सिन्हा, डॉ. अब्दुल हक़, गंगा नाथ झा, जोश मलीहाबादी, प्रेमचंद, रशीद जहाँ, अब्दुस्सत्तार सिद्दीकी इत्यादि। सज्जाद ज़हीर ने प्रेमचंद के साथ प्रगतिशील संगठन के घोषणापत्र पर खुलकर बात-चीत की। सभी ने घोषणापत्र पर हस्ताक्षर कर दिए। अहमद अली के घर को लेखक संगठन का कार्यालय बना दिया गया।  पत्र-व्यव्हार की प्रक्रिया प्रारम्भ हुई। 

देखते-देखते सम्पूर्ण देश में प्रगतिशील लेखक संगठन की शाखाएँ फैलने लगीं। 1-10  अप्रैल 1936  को लखनऊ अधिवेशन में उस समय के प्रसिद्ध लेखक प्रेमचंद और जैनेन्द्र इसमें शामिल हुए। इस अधिवेशन में प्रेमचंद का अध्यक्षीय भाषण जब हिन्दी में रूपांतरित हुआ तो हिन्दी लेखकों की प्रेरणा का स्रोत बन गया । 

प्रगतिशील लेखक संघ का उद्देश्य साहित्य को स्वाधीनता आन्दोलन की सशक्त अभ्व्यक्ति बनाना और अत्याचारी शक्तियों का विरोध करना रहा। इसके सदस्य इस बात से सहमत थे की साहित्य व कला को मजदूरों, किसानों और सम्पूर्ण पीड़ित जनता का पक्षधर होना चाहिए और जन-सामान्य को एकजुट और संगठित करने और संघर्ष को सफल बनाने में सहायक होना चाहिए। 

1954  तक पहुँचते-पहुँचते यह आंदोलन आपसी सामंजस्य की कमी और उद्देश्यहीनता के चलते पतन की तरफ चल दिया। 

इस आंदोलन ने समाज में व्याप्त अंधविश्वास, धर्मान्धता पर प्रहार करा। कई प्रगतिशील और जनपक्षधर  कलाकारों , लेखकों, साहित्यकारों को जन्मा और संघर्ष की लड़ाई में जनता के नायकों को तैयार किया। 

नयी नस्लों को जरूरत है की वो इस धरोहर को अपनाये और उसके आगे और परिपक़्व बनायें।       


कुछ सदस्यों के नाम -


कैफ़ी आज़मी 
फैज़ अहमद फैज़ 

अहमद फ़राज़ 

हबीब जालिब 

साहिर लुधियानवी 

मज़ाज़ लखनवी 

अली सरदार जाफरी 

फ़िराक़ गोरखपुरी 

सददात हस्सन मंटो 

रशीद जाहाँ 

मुंशी प्रेमचंद 

जोश मलीहाबादी 

मखदूम मोहिउद्दीन 

अमृता प्रीतम 

भीषम साहनी 

अहमद नदीम क़ासमी 






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