फिल्म समीक्षा - पिंक

फिल्म समीक्षा - पिंक


पिंक सिर्फ रंग नहीं है, उसके साथ जुड़ी हुई लिंगवादी भावना का प्रतीक भी है।

समाज की ढेरों विकृतिओं से लड़कर जो लड़कियाँ ‘वर्किंग विमेन’ समुदाय गढ़ रही है उनकी जिन्दगी की हकीकत दिखाने में तीनों अभिनेत्रियों ने पूरी सक्रियता से काम किया है।

फिल्म के कई मोड़, संवाद ऐसे हैं जो दर्शकों के दिल को बार-बार खरोंचते हैं , उन्हें अस्थिर करते हैं , जैसे - ‘लड़कियों को हमेशा औकात दिखा देनी चाहिए’ 


एक और संवाद है जो तीर की तरह दर्शकों को चुभता है -

‘किसी नये अपरिचित के साथ डिनर करने के लिए तैयार लड़कियाँ आपके बिस्तर में आसानी से आ सकती है’

निर्देशक सुजित सरकार ‘यहाँ’ और ‘विकि डोनर’, जैसी फिल्मों में बेहतरीन कथानक के जरिये अपने आप को स्थापित कर चुके हैं। लेकिन इस बार ‘पिंक’ फिल्म में उन्होंने प्रायोजक की नयी भूमिका ली और इसमें भी कहानी और विषय के चुनाव में अपना जादू कायम रखा। इस फिल्म के निर्देशक अनिरुद्ध राय चैधरी हैं जो कई सफल और बेहतरीन बांग्ला फिल्म बना चुके हैं। संगीत के इस्तेमाल के मामले में फिल्म में  सिर्फ एक ही गाना है ,जो की पाकिस्तानी गायिका 'कुरुत उल एन बलूच ' ने गाया  है।  उनकी खनकती आवाज में ‘कारी कारी रैना सारी’फिल्म के विषय की संजीदगी को बखूबी बनाये रखता है। इस गीत के बोल गीतकार तनवीर गाजी ने लिखे हैं - ”तितलियों के पंखों पर रख दिये गये पत्थर"





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