प्रतियोगिता - आर्थर कानन डायल

कहानी 

प्रतियोगिता -  आर्थर कानन डायल


जब मनुष्य का अहम् अपनी चरम सीमा पर जाता है तो...

ईसा के 66वे, अपने जीवन के 29वे  और राज्य काल के 13वें वर्ष में पहुँच कर रोम के सम्राट नीरो ने यूनान के लिए जल-यात्रा की। उसकी यात्रा का उद्देश्य ऐसा अनोखा था कि इससे पहले शायद ही किसी सम्राट ने सोचा हो। उसके दस जहाजों में परदे तथा रंगमंच के लिए आवश्यक अन्य सामान पड़ा था, साथ में कई सामन्त और परिषद के सदस्य भी थे, जिन्हें अपने पीछे रोम में छोड़ जाने पर उसे विद्रोह का डर था और जिनकी मृत्यु के लिए उसने पहले से सारी तैयारी कर ली थी।

उसके सहयात्रियों में एक उसका संगीत शिक्षक नेट्स था एक भयानक आवाज वाला भाट क्लुविअस था जो उसकी उपाधियों की घोषणा करता था और एक हजार नवयुवक ऐसे थे जो नीरो के गानों या अभिनय पर तालियाँ बजाने और वाहवाही करने की कला में सिद्धहस्त थे। उनमें से हर एक को अपनी-अपनी कला में बड़ी कुशलता पूर्वक शिक्षा दी गयी थी, कुछ तो केवल प्रशंसा में सिर्फ ‘हूँ’ किया करते थे। कुछ उत्साहपूर्वक तालियाँ बजाते। कुछ को तो उत्साह में पागल होने और अपने-अपने स्थान पर उठकर
जोरजोर से ‘वाह-वाह’ करने, चीखने, शोर मचाने और छड़ियों से बेंचों को पीटने का काम करना पड़ता था।

कुछ का पार्ट इससे भी अधिक प्रभावशाली था। सिकंदरिया के रहने वाले एक व्यक्ति ने एक लम्बी, मक्खी के भिनभिनाने जैसी संगीतात्मक ध्वनि सिखायी थी। जब ये इकट्ठे होकर वह तान छेड़ते तो सारा हाॅल गूँजने लगता। इन प्रशंसकों की सहायता से नीरो को पूरा विश्वास था कि अपनी वाणी स्वरहीन और अभिनय बेहूदा होने पर भी वह यूनानी नगरों में होने वाली कला प्रतियोगिताओं में सफलताओं  का सेहरा बांधकर रोम लौटेगा।

ज्यों-ज्यों उसका स्वर्णजड़ित जहाज भू-मध्य सागर में तैरता हुआ यूनान की ओर बढ़ रहा था, वह अपने कमरे में अपने संगीत शिक्षक की देख रेख में सुबह से शाम तक अपनी पसन्द के गानों का अभ्यास करता। थोड़ी-थोड़ी देर बाद हब्शी गुलाम सुगन्धित व दर्दनाशक तेलों से सम्राट के गले की मालिश करता रहता ताकि काव्य और संगीत की जन्मभूमि यूनान में वह गला अपने मुख्य काम को कुशलता पूर्वक कर सके। सम्राट के लिए खाने-पीने और व्यायाम की व्यवस्था भी उसी प्रकार की गयी थी जैसे कोई पहलवान कुश्ती लड़ने से पहले करता है। हार्प (वीणा के समान एक पुराना यूरोपियन बाजा) की झंकार के साथ मिले हुए सम्राट के कर्कश स्वर उस जहाज में हमेशा गूँजते रहते।

उन्हीं दिनों पोलिक्लीज नाम का एक यूनानी चरवाहा हेरिया के समीप की पहाडियों पर अपनी तथा अन्य लोगों की बकरियाँ चराया करता था। यह हेरिया अल्फियस नदी के पाँच मील उत्तर में है। सुप्रसिद्ध ओलिम्पिया से विशेष दूरी पर नहीं है। दूर-दूर के गाँवों में यह चरवाहा अपने हुनर और विचित्र विधाओं में निपुणता के लिए प्रसिद्ध था।

वह कविता लिखता था और दो बार अपनी कविताओं के लिए अपने सर पर सेहरा भी बँधवा चूका था। वह संगीतज्ञ भी था और हार्प बजने में इतना अभ्यस्त था की लोग ये भूल जाते थे कि गायक एक चरवाहा भी था। सर्दियों में पहाड़ियों में जब वह अकेला बकरियाँ चराता था तो उसका हार्प भी उसके कंधों पर लटका करता और अक्सर ये लम्बी घड़ियाँ वह हार्प की सहायता से गुजार देता। हार्प उसके व्यक्तित्व का अभिन्य अंग बन चुका था।

पोलिक्लीज देखने में सुन्दर था- श्यामवर्ण परन्तु सुगठित, उसका सर व चेहरा अडोनिस (जो सुन्दरता का साकार स्वरूप समझा जाता हैं) जैसा सौन्दर्यशाली था, और आस पास के प्रदेश में उससे अधिक शारीरिक बल वाला कोई न था। लेकिन उसके अक्खड़ स्वाभाव ने इन सब बातों पर पानी फेर दिया था। अपनी बातों का विरोध और कटना उसे रत्ती भर भी पसन्द नहीं था। इसी कारण उसकी सबसे लड़ाई रहती। क्रोध में आकर कभी-कभी तो महीनों तक संसार से बिलकुल सम्पर्क तोड़ कर अपनी पहाड़ी झोपड़ी पर ही पड़ा रहता।

सन 67 के बसन्त में एक दिन पोलिक्लीज अपने लड़के की सहायता से अपनी बकरियों को एक नये चारागाह में ले गया जहाँ से बहुत नीचे ओलिम्पिया का प्रसिद्ध नगर दिखायी देता था। ऊपर से दृष्टि डालते हुए चरवाहे को यह देख कर आश्चर्य हुआ कि ओलिम्पिया की विशाल रंगशाला(ऐम्फीथियेटर) के कुछ भागों को शामियानों  से पाट दिया गया है मानो कोई प्रदर्शन होने वाला हो। संसार और इसके समाचारों से बहुत दूर रहने के कारण पोलिक्लीज की समझ में यह सब कुछ न आया। उसे इतना तो अवश्य पता था कि ओलिम्पिया में होने वाले यूनानी चतुर्वर्षीय खेलों में अभी दो साल और बाकी हैं। तो निश्चित ही कोई काव्य या संगीत प्रतियोगिता हो रही होगी, जिस कारण समाचार उसे नहीं मिल सका है। यदि ऐसा है तो निर्णायकों द्वारा उसके स्वयं चुने जाने की भी सम्भावना है। इसके अलावा कविताएँ सुनना और ऐसे अवसरों पर इकट्ठे होने वाले संगीतज्ञों के गाने सुनना व उनकी प्रशंसा करना भी तो उसे अच्छा लगता है। इसलिए उसने अपने लड़के डोसर को बुलाया और उसे बकरियाँ चराने का भार सौंप कर वह, शहर में क्या हो रहा है, यह देखने के लिए अपना हार्प अपने कंधे पर लटका कर चल दिया।

पोलिक्लीज को ओलिम्पिया के उपनगर सूने मिले। वहाँ के मुख्य बाजार में भी किसी को न पाकर उसका आश्चर्य और भी बढ़ गया। उसने अपने कदम बढ़ाये। एम्फिथियेटर के समीप पहुँच कर उसे हल्की गूँज सुनायी देने लगी, जैसी विशाल जनसमूह के एकत्रा होने पर स्वाभाविक ही होती है। पोलिक्लीज ने इतने विशाल आयोजन की कल्पना कभी अपने स्वप्न में भी नहीं की थी।

दरवाजे के बाहर कुछ सैनिक गुट बनाये खड़े थे। सैनिकों के बीच में से होता हुआ पोलिक्लीज फुर्ती से अन्दर पहुँचा तो उसने अपने को स्टेडियम के एक भाग में इकट्ठी हुई अपार भीड़ के किनारे पर पाया। सबकी आँखें  रंगमंच पर जमी थी उसने यह भी देखा कि दीवारों के सहारे सिपाहियों का पहरा था और स्टेडियम में सफेद गाउन पहने, लम्बे बालों वाले विदेशी युवक भी इधर-उधर बड़ी संख्या में बैठे थे। उसने यह सब देखा तो सही, लेकिन इसका मतलब उसकी समझ में नहीं आया।

अपने पास ही बैठे हुए एक व्यक्ति से सारी बात पूछने के लिए ज्यों ही पोलिक्लीज झुका, एक सिपाही ने अपने भाले की मूठ उसको मारते हुए शान्त रहने को कहा। वह व्यक्ति यह समझा कि पोलिक्लीज ने उससे बैठने के लिए स्थान माँगा है, अतः वह चुपचाप अपने पड़ोसी को भींचता हुआ एक ओर को सरक गया। पोलिक्लीज वहीं बैठ गया। अब उसने अपना ध्यान रंगमंच की ओर किया। वहाँ कोरिन्थ नगर का प्रसिद्ध गायक, और पोलिक्लीज का पुराना मित्रा मेतास गा रहा था। लेकिन जनता उसे प्रोत्साहन नहीं दे रही थी।

पोलिक्लीज को जनता का यह रुख मेतास के प्रति अन्याय लगा, क्योंकि मेतास अच्छा गा रहा था। अतः पोलिक्लीज ने जोरजोर से तालियाँ पीटनी शुरू कर दी। इस पर सैनिकों को क्रोधित होते देख कर उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। इसके अलावा जनता भी उसे विस्मय से देखने लगी। अपना विरोध होते देख कर पोलिक्लीज का हठी व अक्खड़ स्वाभाव और भी उभर आया और वह पहले से भी जोरजोर से तालियाँ बजाने लगा।

लेकिन इसके बाद जो कुछ हुआ उससे पोलिक्लीज के विस्मय की सीमा नहीं रही। जब मेतास अपना गाना समाप्त करके जनता की प्रशंसा प्राप्त किये बिना बैठ गया, तब एक विचित्र व्यक्ति रंगमंच पर आया, जिसके स्वागत में दर्शकों ने तालियाँ पीट-पीट कर जमीन-आसमान एक कर दिया।

यह व्यक्ति छोटे कद का, भारीभरकम था और उम्र में न बूढ़ा था, न जवान। उसकी गर्दन बैल जैसी मोटी थी और भारी चेहरे से माँस की तहें लटक रही थी। इसने नीले रंग का भद्दा व छोटा कुर्ता पहना हुआ था और कमर में एक सुनहरी पेटी कसी थी। उसका गला और छाती का कुछ भाग नंगे थे, और जांघों का ऊपरी भाग भी नंगा था। पैरों में उसने घुटने तक पहुँचने वाले जूते पहन रखे थे, और जांघों का ऊपरी भाग कुर्ते से ढका था। सरकारी देवता की तरह दो सुनहरी पंख उसके बालों में और दो पैरों की एड़ियों में लगे हुए थे।

उसके पीछे-पीछे हार्प लिए हुए एक हब्शी गुलाम तथा संगीत लिपियाँ लिए हुए शानदार कपड़े पहने हुए एक अफसर आया। इस विचित्र व्यक्ति ने गुलाम के हाथ से हार्प लिया और रंगमंच के आगे तक आकर हर्षनाद करती हुई जनता के सामने अभिनन्दन में झुककर मुस्कुराया।

यह एथेंस का रहने वाला कोई तड़क-भड़क पसन्द गवैया है- पोलिक्लीज ने मन ही मन सोचा, लेकिन तुरन्त उसे यह खयाल आया की यूनानी जनता किसी ऐसे-वैसे गवैये के लिए तालियाँ नहीं पीटती। स्पष्ट था की यह कोई ऐसा संगीतज्ञ है जिसकी ख्याति उससे भी दस कदम आगे थी। पोलिक्लीज फिर निश्छल होकर बैठ गया और दत्तचित्त होकर संगीत सुनने लगा।

नीले वस्त्राधारी गवैये ने दो-तीन बार तार छेड़े और अचानक ही ‘निओबे का गीत’ शुरू कर दिया। घोर विस्मय से पोलिक्लीज चौंक पड़ा और रंगमंच की ओर घूरने लगा। इस गीत की धुन मंद स्वरों से शीघ्र ही तीव्र स्वरों को चढ़ती थी और शायद गायक ने इसी कारण से इसे चुना भी था। गायक के मंद स्वर किसी जानवर की गुर्राहट या किसी छकड़े के चलने की खड-खड के सामान ध्वनि उत्पन्न कर रहे थे।

तभी अचानक गायक ने अपने सिर को झटक दिया, तनकर पंजों के बल खड़ा हुआ और सिर इधर-उधर जोर-जोर से नचाते हुए ऐसे गुर्राया जैसे किसी कुत्ते को उसके मालिक ने जोर की ठोकर मार दी हो और कुत्ता जोर से चीख रहा हो। इस बीच गायक का हार्प भी अपना राग अलाप रहा था, उसके स्वर कभी गायक के स्वरों के आगे बढ़ जाते और कभी पीछे रह जाते।

लेकिन पोलिक्लीज को सबसे अधिक आश्चर्य तो जनता की प्रतिक्रिया देखकर हुआ। उन दिनों यूनानी लोग संगीत विद्या के अच्छे ज्ञाता थे। अच्छा संगीत सुनकर वे जितनी प्रशंसा करते थे, बुरे संगीत की उतनी ही कड़ी भत्र्सना। इस भड़कीले गवैय से पहले कई अच्छे-अच्छे संगीतज्ञ भी जनता की कटु आलोचना पा चुके थे। लेकिन जैसे ही इस व्यक्ति ने गाना बन्द करके अपने चेहरे पर बहता हुआ पसीना पोंछा, दर्शकों ने मानो नशे में हर्षनाद से सारा भवन गुँजा दिया। इतनी प्रशंसा अब तक शायद ही किसी की हुई हो।

पोलिक्लीज को लगा कि निश्चय ही वह पागल हो गया है, तभी तो वह जनता का व्यवहार समझ नहीं पा रहा है। उसने अपने चक्कर खाते हुए सिर को थाम लिया- शायद वह कोई सपना देख रहा है, और शीघ्र ही जागकर अपने विचित्र सपने पर जी खोल कर हँसेगा। लेकिन नहीं, उसके चारों ओर बैठे हुए लोग वास्तविक थे, वह अपने पड़ोसियों को अच्छी तरह पहचान रहा था, उनकी तालियाँ और हर्षनाद वास्तव में ही ओलिम्पिया के ऐम्फीथिएटर को गुँजा रहे थे।

सधाये हुए प्रशंसकों  का दल अपनी पूरी कला का प्रदर्शन करने में लगा हुआ था, सिकंदरिया के रहने वाले व्यक्ति द्वारा सिखाये गये नवयुवक अपनी तान छेड़ने में लगे थे, चीखने वाले चीख रहे थे, बेन्चों को छड़ियों से पीटने वाले खटर-पटर मचाये थे। बीच-बीच में ‘वाह! खूब! बहुत अच्छे!’ के संगीतमय नारे गूँज जाते थे। सब ऐसा लग रहा था जैसे समुद्र की लहरों के गर्जन को पवन की सनसनाहट ने डुबो दिया हो।

पोलिक्लीज को लगा कि यह सब पागलपन है- असह्य पागलपन। यदि इसे न रोका गया तो यूनान के प्रसिद्ध कला ज्ञान का अन्त हो जायेगा।

पोलिक्लीज की आत्मा उसे चैन से नहीं बैठे रहने दे सकी। वह अपने स्थान पर खड़ा हो गया और जोर-जोर से हाथ हिलाकर दर्शकों के निर्णय का विरोध करने लगा। उसने अपने फेफड़ों का पूरा जोर चीखने में लगा दिया।

पहले तो इतने शोर में किसी ने उसकी ओर ध्यान नहीं दिया। उसकी आवाज उस विचित्र गायक के बार-बार झुकने और मुस्कुराने पर होने वाले नये शोर में डूब गयी। लेकिन धीरे-धीरे पोलिक्लीज के आस-पास बैठे लोगों ने शोर मचाना बन्द किया और उसकी ओर विस्मय से देखने लगे।

इसके बाद चुप्पी का घेरा बढ़ता चला गया। कुछ देर में सारी रंगशाला में शान्ति छा गयी। सभी इस जंगली किन्तु तेजस्वी व्यक्ति को घूरने लगे, जो अपनी बेन्च पर खड़ा उन्हें बुरा-भला कह रहा था।

‘‘मूर्खों,’’ वह कह रहा था, ‘‘तुम किसलिए तालियाँ पीट रहे हो?’’ क्या यह कुत्ते-बिल्लियों की चीख-पुकार जैसा संगीत ओलिम्पिया का पुरस्कार जीत सकता था! इस आदमी के गाने में एक भी स्वर सच्चा नहीं है। या तो तुम सब बहरे हो गये हो या पागल। तुम्हें अपने अज्ञान पर शर्म आनी चाहिए।’’

सिपाहियों ने दौड़कर उसे नीचे गिरा दिया। इस पर दर्शकों में खलबली मच गयी। जो लोग कुछ निडर थे वे पोलिक्लीज के कथन का समर्थन करने लगे। और गवैये के समर्थक कह रहे थे कि इस जंगली को थिएटर भवन के बहार निकाल दिया जाये। इस बीच में वह गवैया अपना हार्प नीग्रो गुलाम को देकर पूछताछ करने लगा कि यह शोर मचाने वाला व्यक्ति कौन है।

अन्त में जोरदार आवाज वाला एक व्यक्ति, उद्धोषक, आगे आया और कहने लगा की यदि हाॅल के पीछे वह मूर्ख व्यक्ति, जिसकी राय शेष जनता से नहीं मिलती है, चाहे तो रंगमंच पर आये और यदि उसमें  साहस हो तो अपनी कला का प्रदर्शन करके दिखाये कि वह उस महान संगीतज्ञ को भी पछाड़ सकता है। जिसे सुनने का सौभाग्य अभी जनता को मिला था।

इस चुनौती को सुनकर पोलिक्लीज फिर उठ खड़ा हुआ और रंगमंच की ओर बढ़ा। जनता ने उसके लिए फुर्ती से रास्ता छोड़ दिया। एक मिनट में ही वह चरवाहों के फटे-पुराने कपड़े पहने अपना घिसापिटा हार्प लिये उत्सुक जनता के सामने रंगमंच पर जा खड़ा हुआ। कुछ क्षण वह वहाँ अपने हार्प के तार कसता रहा। जब सुर ठीक मिल गये तो अपने सामने ही बैठे रोम निवासियों के व्यंग्य बाणों की परवाह न करते हुए उसने गाना शुरू किया।

उसने इस अवसर पर गाने के लिए कोई विशेष गीत तैयार नहीं किया था। उसे तो गाते समय ही काव्य रचना करने का अभ्यास था। संगीत के आनन्द के लिए उसके हृदय के भाव स्वयं कविता के रूप में बहने लगते थे।

उसने जुपिटर की प्रिया एलिस के देश यूनान का गीत गाना शुरू किया। ऊँचे पहाड़ों का वृक्षहीन ढलानों वाला वह देश, जहाँ बादल अपनी परछाइयाँ डालते हुए जल्दी से किसी अनजान देश में चले जाते हैं, बलखाती हुई हवा चलती है, शाम को जहाँ कपकपाती सर्दी राज करती है, और जहाँ की धरती और असमान में सुन्दरता का अनन्त भण्डार भरा है- वह प्रिय देश जिसमे वे सब आज संगीत का आनन्द प्राप्त करने के लिए इकट्ठे हुए हैं।

यह सब बिलकुल साधारण और बच्चों  जैसा था। लेकिन इसने ओलिम्पिया वासियों के हृदय को छू लिया क्योंकि यह उनके देश का वर्णन था, जिसे वे जानते थे और जीवन में प्यार करते थे। फिर भी जब अन्त में पोलिक्लीज ने अपना हार्प रोका तो किसी का भी साहस नहीं हुआ कि खुले रूप से उसकी प्रशंसा करे। उसके प्रशंसकों की कानाफूसी की मर्मर ध्वनि विरोधियों की हिस-हिस और शी-शी में ढूब गयी। ज्यो ही इस विचित्र स्वागत से हकबका कर पोलिक्लीज पीछे हटा, तभी वह नीले वस्त्रों वाला गवैया उसके स्थान पर खड़ा हो गया।

यदि पहली बार नीले वस्त्रों वाले गवैये का वह गाना बेहूदा था, तो इस बार को उसका भोंडापन अकल्पनीय था। उसका एक-एक स्वर संगीत के नाम पर धब्बा था। लेकिन जब भी वह सांस लेने के लिए एक-दो क्षण रुकता और माथे का पसीना पोंछता तो जनता हर्षनाद से भवन को गुंजा देती।

पोलिक्लीज ने परेशानी से अपना मुँह दोनों हाथों से ढाँक लिया और ईश्वर से प्रार्थना की कि कहीं वह पागल न हो जाये। जब उस गवौये का संगीत रुका और जनता के हर्षनाद से उसे ज्ञात हुआ कि विजय का सेहरा नीले वस्त्राधारी गवैये को मिल गया है तो उसके हृदय में भय छाने लगा। उसे श्रोताओं से डर लगने लगा, उसे मूर्खों के उस राष्ट्र से घृणा हो गयी और उसके हृदय में चारागाहों के मूक व शान्त वातावरण की चाह जाग उठी। वह भीड़ को चीरता हुआ बाहर पहुँचा। वहाँ कोरिन्थ का मेतास- उसका पुराना प्रतिद्वन्दी व मित्र- उत्सुकता पूर्वक उसकी प्रतीक्षा कर रहा था।

‘‘पोलिक्लीज, जल्दी करो!’’ मेतास ने चीखकर कहा, ”मेरा घोडा अगले कुंज में बंधा है। वह भूरे रंग का है और उसका साज लाल है। जितनी जल्दी हो सके उस पर सवार हो कर भाग जाओ वरना बड़ी बुरी मौत मरोगे।’’

‘‘बड़ी बुरी मौत! तुम्हारा क्या मतलब है? मेतास, वह आदमी कौन है?’’

"जुपिटर की कसम, क्या तुम्हें पता नहीं था? इतने दिन कहाँ रहे? वह रोमन सम्राट नीरो है। तुमने उसकी जितनी बुराई की है, उसके लिए वह तुम्हें कभी क्षमा नहीं करेगा। जल्दी भागो वर्ना सिपाही तुम्हें अभी पकड़ लेंगे।"

एक घंटे में पोलिक्लीज अपने पहाड़ी झोपड़े के पास पहुँच गया था। लगभग उसी समय अपने अतुलनीय संगीत के लिए ओलिम्पिया का सेहरा पाकर सम्राट नीरो अपनी भृकुटी ताने उस बद्तमीज व्यक्ति के बारे में पूछ-ताछ कर रहा था, जिसने उसकी नीच और कुटिल आलोचना करने का दुस्साहस किया था।

‘‘उसे फौरन मेरे सामने उपस्थित करो। और मार्कस को भी अपना छुरा और दाग लगाने वाली सलाख लेकर यहाँ आने का हुक्म दो।’’

आर्सेनिअस प्लेटस नाम के एक अफसर ने तभी कहा, ‘‘महान सीजर, उस मनुष्य का कहीं पता नहीं चल रहा, और उसके बारे में कई विचित्र अफवाहें फैल रही हैं।’’

‘‘अफवाहें!’’ नीरो क्रोध से चिल्ला उठा, ‘‘तुम क्या कहते हो, आर्सेनिअस? वह मोर जैसी आवाज वाला आदमी कोई मूर्ख देहाती था। दर्शकों में उसके कई मूर्ख प्रशंसक थे- मैंने स्वयं उन्हें उसके बेहुदे गाने की प्रशंसा करते सुना है। मेरा तो दिल करता है कि इनके शहर को जलाकर राख कर दूँ ताकि इन्हें मेरे यहाँ आने की बात याद तो रहे।’’

‘‘सीजर, यदि उस गायक को उनका समर्थन मिल गया तो आश्चर्य की बात नहीं,’’ आर्सेनिअस ने कहा, ‘‘क्योंकि जो कुछ मैंने सुना है उसके अनुसार आप यदि हार भी जाते तो अपमान नहीं होता।’’

‘‘मैं हार जाता! आर्सेनिअस, तुम पागल हो! तुम्हारा मतलब क्या है?’’

‘‘महान सीजर, उसे कोई नहीं जानता। वह पहाड़ियों से आया था और पहाड़ियों में विलीन हो गया। आपने भी उसके चेहरे की प्रचंडता और तेजस्विता पर ध्यान दिया होगा। कहते हैं कि वह स्वयं संगीत के देवता पैन थे जो एक मानव से मुकाबला करने आये थे।’’

नीरो की तनी हुई भृकुटी ढीली पड़ गयी। ‘‘सच, आर्सेनिअस! यही तो मैं सोच रहा था कि किसी आदमी की मेरे सामने आने की हिम्मत कैसे हो सकती है। ओह, इस कहानी को सुनकर तो रोम वाले गदगद हो उठेंगे! आर्सेनिअस, आज रात कोई एक दूत रोम भेज दो जो उन्हें बताये कि कैसे उनके सम्राट ने ओलिम्पिया में उनके सम्मान की रक्षा की है।’







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